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JAIPUR. राजस्थान की पिछली कांग्रेस सरकार ने अपने अंतिम वर्ष में कई लोक लुभावन योजनाएं लागू की और जनता तक उनका फायदा पहुंचाने के लिए सरकारी खजाने का पूरा इस्तेमाल किया, लेकिन इन लोक लुभावना योजनाओं को लागू करने के चक्कर में खजाने की हालत ये हो गई कि सरकारी कर्मचारियों को वेतन के अलावा अन्य सभी तरह के भुगतान या तो मिल ही नहीं पा रहे हैं और मिल भी रहे हैं तो उनमें काफी देरी हो रही है। सरकारी कर्मचारियों के लिए लागू की गई राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम यानी RGHS के तहत दवा विक्रेता को भुगतान नहीं हो रहा है और उन्होंने सरकारी कर्मचारियों को दवाइयां देना बंद कर दिया है। वहीं जो कर्मचारी रिटायर हो रहे हैं उन्हें भी सिर्फ पेंशन मिल पा रही है रिटायरमेंट के साथ होने वाले सारे भुगतान अटके हुए हैं।
तेल तो तिल से ही निकलेगा
राजस्थान में पिछली कांग्रेस सरकार ने पिछले 1 वर्ष के दौरान 500 रुपए में सिलेंडर एक करोड़ से ज्यादा लोगों को नि:शुल्क राशन बिजली के बिल में कटौती जैसी कई लोक लुभावन योजनाएं लागू की। पूरे प्रदेश में बड़े पैमाने पर महंगाई राहत कैंप लगाएं गए और इन सब पर जमकर पैसा खर्च किया गया। लेकिन तेल तो तिलों में से ही निकलेगा यानी योजनाओं के लिए पैसा तो सरकारी खजाने से ही निकलना था तो इसका रास्ता यह निकल गया कि जरूरी भुगतानों को छोड़कर अन्य सभी भुगतान या तो रोक दिए गए या विलंबित यानी देरी से कर दिए गए और इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हुए सरकारी कर्मचारी। यानी अब प्रदेश में बनने वाली नई सरकार के लिए सबसे पहली चुनौती राजस्थान के राज्य कर्मचारी होंगे जिनके करोड़ों रुपए के बिल और भुगतान अटके हुए हैं और सरकार को सबसे पहले इन्हें राजी करना होगा। क्योंकि 4 महीने बाद ही लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं और चुनाव में राज्य कर्मचारियों की भूमिका बहुत अहम होती है।
यह है स्थिति
राज्य कर्मचारियों का कहना है कि हम नियमों से बंधे हुए हैं इसलिए ऑन रिकॉर्ड तो कुछ नहीं बोल रहे लेकिन सचिवालय में कार्यरत एक कर्मचारी ने बताया कि उन्होंने उपार्जित अवकाश भुगतान के लिए अगस्त के महीने में आवेदन किया था, लेकिन उन्हें अब तक इसका भुगतान नहीं मिल पाया है। इसी तरह एक पेंशनर्स ने बताया कि उन्हें रिटायर हुए 4 महीने से ज्यादा का समय हो गया है, लेकिन रिटायरमेंट के समय मिलने वाले विभिन्न तरह के भुगतानों में उपार्जित अवकाश का पैसा उन्हें अभी तक नहीं मिला है। पेंशन विभाग से ही जुड़े रहे एक पूर्व कर्मचारियों ने बताया कि सरकार की ओर से सिर्फ पेंशन का भुगतान किया जा रहा है। जो कर्मचारी रिटायर होते हैं उन्हें रिटायरमेंट के समय उपार्जित अवकाश, कॉम्यूटेशन, ग्रेच्युटी सहित कई तरह के भुगतान किए जाते हैं, लेकिन यह सभी भुगतान बहुत धीमी गति से किया जा रहा हैं।
कर्मचारियों के अटके हुए हैं पेमेंट्स
पेंशन विभाग भुगतान देने से मन नहीं कर रहा है लेकिन अलग-अलग तरह के बहाने बनाकर इनमें देरी जरूर की जा रही है, जबकि नियम ये है कि जब कर्मचारी रिटायर होता है तो रिटायरमेंट के दिन ही उसे सभी तरह के रिटायरमेंट बेनिफिट्स का भुगतान करना होता है। राजस्थान राज्य मंत्रालय संयुक्त कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष मनोज सक्सेना ने बताया कि कर्मचारियों को सिर्फ वेतन मिल पा रहा है। उनके अन्य सभी तरह के बिलों का भुगतान रुका हुआ है। कर्मचारी अपने बिल सबमिट तो कर रहे हैं लेकिन वित्त विभाग की ओर से अघोषित रोक लगी हुई है। मनोज सक्सेना ने बताया कि सबसे ज्यादा दिक्कत दवाइयां के मामले में हो रही है। सरकार हमारे वेतन से पैसा तो काट रही है लेकिन जो नई योजना लागू की गई है उसके तहत हमें दवाइयां नहीं मिल रही है।
सबसे बड़ी समस्या दवाइयों की
राज्य कर्मचारियों के समक्ष सबसे बड़ी समस्या दवाइयां को लेकर हो गई है। राजस्थान की पिछली सरकार ने कर्मचारियों के मेडिकल बिलों के पुनर्भरण की जगह एक नई कैशलैस व्यवस्था लागू की थी, जिसे राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम कहा गया था। यह केंद्र सरकार की सीजीएचएस स्कीम के तर्ज पर लागू की गई थी जिसके तहत प्रदेश भर में कुछ दुकानें और अस्पताल चिन्हित कर दिए गए थे जहां से कर्मचारियों को सरकारी दरों पर दवाइयां और उपचार मिल जाता है। यह व्यवस्था सभी सरकारी कर्मचारियों अधिकारियों और विधायकों आदि के लिए लागू की गई है। लेकिन अब इस योजना के तहत आने वाले केमिस्ट यानी दवा विक्रेता और अस्पताल कर्मचारियों को इस योजना का लाभ नहीं दे रहे हैं। इसका कारण यही है कि पिछले करीब ढाई महीने से इन दवा विक्रेताओं को सरकार से भुगतान नहीं मिल पा रहा है। जबकि सरकार ने जब यह योजना लागू की थी तो दवा विक्रेताओं के साथ किए गए अनुबंध में यह वादा किया था कि बिल सबमिट होने के 21 दिन के अंदर भुगतान कर दिया जाएगा।
लगभग 300 करोड़ रुपए का भुगतान है अटका
अखिल राजस्थान आरजीएचएस दवा विक्रेता संघ से जुड़े सचिन गोयल ने बताया कि आरजीएचएस के तहत पूरे प्रदेश के 3600 दवा विक्रेता पंजीकृत है और ढाई महीने पहले तक हमें नियमित रूप से भुगतान मिल रहा था लेकिन अब हमारा पैसा अटका हुआ है। गोयल ने कहा कि हमें बाजार से उधार माल लेना पड़ता है। अब सरकार की ओर से पेमेंट नहीं मिलने के कारण हमें माल मिलने में दिक्कत हो रही है और इसी के चलते हम सरकारी कर्मचारियों को भी दवाई नहीं दे पा रहे हैं। गोयल ने बताया कि लगभग 300 करोड़ रुपए का भुगतान सरकार में अटका हुआ है। हम पिछले दिनों अधिकारियों से मिले थे तो उन्होंने आश्वासन तो दिया है। अब देखते हैं क्या होता है। इस मामले में वित्त विभाग के अधिकारी ऑन रिकॉर्ड कुछ भी कहने से मना कर रहे हैं लेकिन यह जरूर मान रहे है कि हालत टाइट है और नई सरकार को आते ही सबसे पहले इस चुनौती का सामना करना पड़ेगा।