MPPSC 2019 में फिजिकली फिट कैंडिडेट 2020 में हो गए दिव्यांग, एक दिव्यांग सर्टिफिकेट से सब-इंजीनियर के लिए सिलेक्ट, परिजन क्या बोले

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Rahul Garhwal
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MPPSC 2019 में फिजिकली फिट कैंडिडेट 2020 में हो गए दिव्यांग, एक दिव्यांग सर्टिफिकेट से सब-इंजीनियर के लिए सिलेक्ट, परिजन क्या बोले

नीरज सोनी, BHOPAL/CHHATARPUR. मध्यप्रदेश में इन दिनों भर्ती परीक्षा और इसकी प्रक्रिया को लेकर खासा बवाल मचा हुआ है। ओबीसी के 27 प्रतिशत आरक्षण के चक्कर में अन्य पिछड़ा वर्ग के मेरिट होल्डर कैंडिडेट की सब इंजीनियर के पद पर भर्ती अटक गई है। इसी बीच सब इंजीनियर की भर्ती को लेकर सोशल मीडिया पर एक और कथित फर्जीवाड़े का किस्सा वायरल हो रहा है। नेशनल एजुकेटेड यूथ यूनियन (NEYU) ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक पोस्ट कर छतरपुर के 2 भाइयों हृदेशकांत और तरुणकांत अग्रवाल के दिव्यांगता प्रमाण पत्र पर सवाल खड़े किए हैं।




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ह्रदेश कांत अग्रवाल और तरुण कांत अग्रवाल के दिव्यांगता प्रमाण पत्र




NEYU के ट्वीट में क्या है ?




— National Educated Youth Union (@NEYU4INDIA) July 26, 2023



एनईवाययू के अनुसार इन दोनों भाइयों ने एमपीपीएससी-2019 के अंतर्गत राज्य वन सेवा परीक्षा दी थी। उस समय ये दोनों शारीरिक रूप से पूरी तरह फिट थे, लेकिन जब 2020 में जब परीक्षा दी तो दिव्यांग हो गए। इनमें से हृदेशकांत अग्रवाल ने 2022 में सब इंजीनियर की परीक्षा दी और दिव्यांग सर्टिफिकेट के आधार पर चयनित भी हो गए। उनकी पोस्टिंग सागर की गई है। हालांकि अभी उनकी जॉइनिंग नहीं हो पाई है।




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हृदेश कांत अग्रवाल का दिव्यांगता प्रमाण पत्र





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तरुण कांत अग्रवाल का दिव्यांगता प्रमाण पत्र




भाई ने बताया कार एक्सीडेंट और कोविड वैक्सीन दिव्यांगता का कारण



सोशल मीडिया में तेजी से वायरल हो रही नेशनल एजुकेटेड यूथ यूनियन की पोस्ट की हकीकत जानने के लिए द सूत्र ने छतरपुर निवासी ह्रदेश कांत अग्रवाल के परिवार से संपर्क किया। परिवार के सदस्यों ने कैमरे के सामने बातचीत करने से साफ इनकार कर दिया। यहां हृदेश के भाई तरुणकांत अग्रवाल ने द सूत्र संवाददाता को बताया कि दरअसल वर्ष 2010 में भोपाल से लौटते समय रायसेन के पास उनकी कार एक पेड़ से टकरा गई थी। इस दुर्घटना में दोनों भाई और पिता को चोटें आई थीं और तीनों के कान खराब हो गए थे। डॉक्टर के पर्चे दिखाते हुए तरुण बताते हैं कि कोरोना काल से पहले तक उन सभी का इलाज चलता रहा, लेकिन कोरोना महामारी के बाद परेशानी ज्यादा बढ़ गई। कोरोना का बूस्टर डोज लगवाने के बाद कान से सुनाई देना बंद हो गया। इसके बाद उन्होंने छतरपुर के सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों की टीम से परीक्षण करवाकर अपना और भाई का दिव्यांगता का सर्टिफिकेट बनवा लिया।



चयन के बाद नहीं किया जॉइन



तरुण ने बताया कि उनके छोटे भाई हृदेशकांत का दिव्यांगता सर्टिफिकेट के आधार पर सब इंजीनियर पद के लिए चयन हुआ है। उन्होंने इस आरोप से साफ इनकार किया कि उनका दिव्यांगता का सर्टिफिकेट फर्जी है। इस पर उन्होंने कहा कि ये सच नहीं है। हम किसी भी जांच के लिए तैयार हैं। जब उनके भाई ह्रदेश का चयन लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग में सब इंजीनियर के पद के लिए हो गया है तो फिर उन्होंने अभी तक जॉइन क्यों नहीं किया ? इसका कारण बताते हुए तरुण ने कहा कि उनकी नौकरी संविदा वाली थी और उन्हें ग्रामीण क्षेत्र में पोस्टिंग मिली थी, उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता, इसलिए उन्होंने जॉइन नहीं किया। ह्रदेश के बारे में पूछने पर बताया कि वो अभी छतरपुर में नहीं सागर में हैं।



पिता बोले- खानदानी है कान की बीमारी



सरकारी विभाग में सब इंजीनियर पद के लिए चयनित हुए हृदेशकांत से द सूत्र का संपर्क नहीं हो पाया, लेकिन उनके भाई तरुण और पिता केशव अग्रवाल द्वारा दिव्यांगता के लिए बताई गई कहानी में जमीन आसमान का अंतर है। पिता केशव अग्रवाल के अनुसार कान की उनकी ये बीमारी खानदानी है। उनकी पत्नी और सभी बच्चों को ठीक से सुनाई नहीं देने की बीमारी है। जबकि उन्हीं के एक बेटे तरुण ने इसकी वजह एक कार दुर्घटना और कोविड वैक्सीन को बताया। तरुण ने ये भी बताया कि दोनों भाइयों को कान की मशीन के बिना सुनाई नहीं देता है। तरुण ने कहा कि जो भी लोग और संगठन उन्हें बदनाम करने का प्रयास कर रहे हैं, वे उन सभी के खिलाफ वैधानिक कार्रवाई करने जा रहे हैं, इसके खिलाफ हमने थाने में लिखित शिकायत दर्ज कराई है।


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