Raipur. शराब घोटाला मामले में ईडी की कार्रवाई पर शीर्ष अदालत ने रोक लगा दी है। शीर्ष अदालत ने यह रोक तीन याचिकाओं की सुनवाई के बाद लगाई है। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धुलिया की बेंच ने यह कहा है कि, फ़िलहाल शराब घोटाला मामले में ईडी के पास कार्रवाई करने के लिए प्रेडिकेट अफेंस नहीं है, इसलिए ईडी को इस मसले में किसी भी कार्रवाई से रोका जाता है। जिन याचिकाओं को सुनते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश दिए हैं उनमें यश टुटेजा, करिश्मा ढेबर और सिद्धार्थ सिंघानिया की याचिका शामिल थी।याचिकाकर्ताओं के लिए तीस हज़ारी कोर्ट में बीते 13 जुलाई का आदेश ब्रम्हास्त्र साबित हुआ है।
क्या है मसला
ईडी ने शराब घोटाला मामले में कार्रवाई करते हुए अनवर ढेबर समेत पाँच को गिरफ़्तार किया है। ईडी की इस कार्रवाई का आधार तीस हज़ारी कोर्ट के सीजेएम अनुराग ठाकुर की कोर्ट में पेश परिवाद था। ईडी की ओर से यह दलील थी कि, यदि कोई परिवाद अदालत में लंबित है और उसमें प्रेडिकेट अफेंस हैं तो उसे कार्रवाई का अधिकार है।
तीस हज़ारी कोर्ट में हुआ क्या है
आयकर विभाग की ओर से एक परिवाद तीस हज़ारी कोर्ट के सीजेएम अनुराग ठाकुर की कोर्ट में पेश किया गया था।इसमें प्रेडिकेट अफेंस याने वे धाराएँ शामिल थीं जिनके होने से ईडी को कार्रवाई की अधिकारिता मिलती है। इस परिवाद में क़रीब पंद्रह लोगों को अभियुक्त बताया गया था। बीते छ अप्रैल को सीजेएम ने परिवाद के केवल एक हिस्से को स्वीकार किया और कहा
“यह अदालत केवल उस मामले का विचारण कर सकती है, जो उसके न्यायालय क्षेत्र में आता है।परिवाद में रायपुर कलकत्ता का भी ज़िक्र है, याचिकाकर्ता को वहाँ घटित अपराध के लिए वहाँ की अदालत के पास जाना होगा।”
परिवाद के जिस हिस्से को सीजेएम कोर्ट ने स्वीकारा, उसमें यश टुटेजा, अनिल टुटेजा और सौम्या चौरसिया अभियुक्त बने लेकिन उनके विरुद्ध परिवाद के उस हिस्से में प्रेडिकेट अफेंस की धाराएँ प्रभावी नहीं थी। अनिल टुटेजा सीजेएम अनुराग ठाकुर के आदेश के खिलाफ एडीजे कोर्ट चले गए, और स्टे माँगा। सत्रह अप्रैल को एडीजे धीरज मोर ने आवेदन स्वीकार करते हुए स्टे दे दिया।इस स्टे का अर्थ यह निकाला गया कि, स्थगन मूलतः सीजेएम कोर्ट में पेश परिवाद पर आए निर्णय पर लिया गया है।इस आधार पर ईडी ने छत्तीसगढ़ में शराब घोटाला मामले में कार्रवाई शुरु कर दी।
सीजेएम कोर्ट के खिलाफ आयकर और टूटेजा दोनों की उपरी अदालत गए
तीस हज़ारी कोर्ट के सीजेएम अनुराग ठाकुर के आदेश के खिलाफ केवल अनिल टूटेजा ही उपरी अदालत नहीं गए थे। आयकर विभाग भी दिल्ली हाईकोर्ट पहुँचा।आयकर विभाग की ओर से तर्क दिए गए कि, सीजेएम कोर्ट का यह आदेश ग़लत है कि, वह परिवाद के केवल उस हिस्से की सुनवाई कर सकता है जिस क्षेत्र तक उस अदालत का क्षेत्र है। आयकर विभाग ने माँग रखी कि, सीजेएम कोर्ट को डायरेक्शन दिए जाएँ कि वह परिवाद को मूलतः यथारूप स्वीकार करे। वह परिवाद का परीक्षण गुण दोष पर करें ना कि क्षेत्र के आधार पर।इस पर हाईकोर्ट ने आगामी 31 जुलाई की तारीख़ देते हुए कहा
“आप हमारे पास सीधे आ गए हैं, फिर भी इस मामले में एडीजे कोर्ट ने स्टे दे ही दिया है। आप प्रक्रिया का पालन करते हुए आईए।”
क्या था तेरह जुलाई का आदेश जो शीर्ष अदालत में बचाव पक्ष के लिए वरदान बना
ईडी की शराब घोटाले की कार्रवाई का आधार यह था कि, ईडी ने एडीजे धीरज मोर के स्टे के आदेश को संपूर्ण परिवाद पर प्रभावी माना था। एडीजे धीरज मोर की कोर्ट में बीते 13 जुलाई को अनिल टुटेजा की याचिका पर सुनवाई हुई। अदालत में अनिल टुटेजा के अधिवक्ताओं ने कहा
“अदालत का स्टे का आदेश पूरे परिवाद पर प्रभावी माना जा रहा है। जबकि हम केवल उस अंश पर उपरी अदालत आए थे, जिसमें हमारे ख़िलाफ़ कार्रवाई को सीजेएम कोर्ट ने स्वीकृति दे दी थी।अदालत यह स्पष्ट कर दें कि स्टे किस पर प्रभावी माना जाएगा”
बचाव पक्ष के अधिवक्ताओं के इस आग्रह पर 13 जुलाई को ही एडीजे धीरज मोर ने आदेश में लिखा
“हालाँकि यह अपने आप में स्पष्ट है, यह लिखना जरुरी नहीं है, फिर भी बचाव पक्ष की ओर से किए गए आग्रह को ध्यान में रखते हुए अदालत यह स्पष्ट करती है कि,स्थगन पूरे परिवाद पर प्रभावी नहीं है।”
अदालत के इस स्पष्ट निर्देश के साथ ही ईडी के लिए क़ानूनी पेचीदगियों ने अपनी जगह बना ली, क्योंकि इस स्पष्टीकरण के साथ ही पूरे परिवाद पर प्रभावी माना जा रहा स्टे शून्य हो गया। ईडी की कार्रवाई का आधार ही इस आदेश के बाद ही सवालों में घिर गया।
क्या है प्रेडिकेट अफेंस
ईडी बेहद शक्तिशाली जाँच एजेंसी है। लेकिन वह किसी भी मामले का स्वतः संज्ञान नहीं ले सकती। ईडी को कार्रवाई के लिए किसी एफ़आइआर या कि किसी परिवाद ( भले वह केवल विचाराधीन हो) की जरुरत पड़ती है। यहाँ यह भी जानिए कि ईडी किसी भी एफ़आइआर या परिवाद पर सक्रिय नहीं हो सकती। आईपीसी की कुछ विशेष धाराएँ हैं यदि वे धाराएँ किसी एफ़आइआर या कि परिवाद का हिस्सा होंगी तो ही ईडी कार्रवाई करने के लिए क़ानूनी रूप से सक्षम होती है। इनमें अलग अलग प्रकृति की धाराएँ शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट में आज क्या हुआ
शीर्ष अदालत में जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धुलिया ने दोपहर क़रीब बारह बजे के आसपास इस मामले में पेश याचिकाओं पर सुनवाई शुरु की। सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ अभिषेक मनु सिंघनी, पुनीत बाली, गोपाल शंकर नारायण,अर्षदीप सिंह, हर्ष श्रीवास्तव और मालक मनीष भट्ट पेश हुए। छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल पेश हुए। जबकि केंद्र सरकार की ओर से असिस्टेंट सॉलीसिटर जनरल एस वी राजू पेश हुए।
सुप्रीम कोर्ट को याचिकाकर्ताओं क्रमशः यश टुटेजा, श्रीमती करिश्मा ढेबर और सिद्धार्थ सिंघानिया की ओर से तीस हज़ारी कोर्ट के एडीजे धीरज मोर की ओर से जारी आदेश को पेश करते हुए बताया कि, ईडी के पास कार्रवाई का आधार ही नहीं है। कोई प्रेडिकेट अफेंस नहीं है।
छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने शीर्ष अदालत से राज्य के आबकारी अधिकारियों द्वारा राज्य सरकार को दिए आवेदनों का मसला उठाया जिसमें आबकारी अधिकारियों ने ईडी पर दबाव बना कर बयान लेने के आरोप लिखे थे।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
सुप्रीम कोर्ट ने सभी के तर्कों को सुनने के बाद यह माना कि, इस वक्त ईडी के पास कार्रवाई करने के लिए प्रेडिकेट अफेंस नहीं है। शीर्ष अदालत ने ईडी से कहा है
“आप के पास फिलहाल विधिक अधिकारिता नहीं है। जब आपके पास प्रेडिकेट अफेंस आ जाए तो आप इस अदालत में तुरंत आ सकते है।अभी इस समय आपको कार्रवाई करने से रोका जाता है।”