संजय गुप्ता, INDORE. आखिरकार हां-ना के बाद बीजेपी के दो बार के पूर्व विधायक भंवर सिंह शेखवात कांग्रेसी हो गए। शनिवार (2 सितंबर) को उन्होंने कांग्रेसी होते ही सबसे पहला आरोप बीजेपी की सरकार पर 50 फीसदी कमीशन का लगाया। इसके लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक मंत्रियों को जिम्मेदार बताया और कहा कि उन्होंने बीजेपी में गंदगी फैला कर उसे गंदा नाला बना दिया है। आखिर शेखावत बीजेपी से कांग्रेस में क्यों गए? इसकी एक बड़ी वजह बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय है। शेखावत ने हमेशा दावा किया कि वह विजयवर्गीय को राजनीति में लाए और वह उनके राजनीतिक गुरू है। वह समय-समय पर विजयवर्गीय पर गंभीर आरोप लगाते रहे हैं। बीजेपी में फिलहाल विजयवर्गीय जिस तरह से मालवा-निमाड़ के लिए सक्रिय होकर जिम्मेदारी संभाल रहे हैं, शेखावत समझ चुके थे कि उन्हें बदनावर से टिकट नहीं मिलेगा। ऐसे में कांग्रेस का हाथ थामने का यही सही समय है। कांग्रेस से उन्हें टिकट की पूरी गारंटी है और विधायक संजय शुक्ला तो कांग्रेस आने पर उनके मंत्री पद की भी गारंटी दे रहे हैं।
शेखावत और विजयवर्गीय पहली बार 1990 में लड़े विधानसभा चुनाव
शेखावत बीजेपी में जनसंघ से जुड़े नेता है। वह 1991-1992 में बीजेपी के नगराध्यक्ष भी रहे हैं। हालांकि इसके पहले 1990 में वह निर्दलीय प्रत्याशी तौर पर इंदौर विधानसभा पांच से लड़े थे, यही समय था जब इंदौर की राजनीति में विजयवर्गीय की धाक शुरू हुई और वह विधानसभा का चुनाव इंदौर चार से लड़े और भारी मतों से जीते भी, यह जीत का सिलसिला उनके 2013 के चुनाव तक लगातार चलता रहा। शेखावत 1993 के चुनाव में बीजेपी की ओर से इंदौर पांच से लड़े और जीते, लेकिन 1998 में हार गए और फिर बाद में 2013 से बदनावर से चुनाव लड़े और जीते लेकिन 2018 में बदनावर से हार गए।
क्यों बिगड़े गुरू-शिष्य के संबंध
भंवरसिंह शेखावत कई बार खुले मंच से यह कह चुके हैं कि वह कैलाश विजयवर्गीय को राजनीति में लेकर आए थे। विजयवर्गीय भी उन्हें यदा-कदा मौके पर राजनीतिक गुरू बता चुके हैं। शेखावत आरोप लगा चुके हैं कि विजयवर्गीय ने ही उन्हें चुनाव में हराने का काम किया था। शेखावत यह तक आरोप लगा चुके हैं कि विजयवर्गीय ने मुझे ही नहीं बल्कि जीतू जिराती, मधु वर्मा और सुदर्शन गुप्ता को भी हराने के लिए काम किया था। वहीं अपने बेटे को स्थापित करने के लिए उषा ठाकुर को इंदौर शहर से बाहर किया। खुद ठाकुर भी साल 2018 में अपना टिकट इंदौर तीन की विधायक होने के बाद भी काटकर महू किए जाने से खासी नाराज हुई थी और विजयवर्गीय पर निशाना साधा था, उनकी जगह विजयवर्गीय के पुत्र आकाश को वहां से टिकट मिल गया था। शेखावत के यहां तक आरोप थे कि पहले विजयवर्गीय ने इंदौर में हरवाया, फिर उन्हें इंदौर से बाहर करा दिया (बदनावर से टिकट मिला), इसके बाद बदनावर में भी साल 2018 के चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी डमी खड़ा कर वहां से भी हरवा दिया गया, डमी प्रत्याशी को 30 हजार वोट करीब मिले थे। हार के बाद शेखावत ने डमी प्रत्याशी उतरवाने की शिकायत की और इसके लिए जिम्मेदारों पर कार्रवाई की मांग की लेकिन कुछ नहीं हुआ।
एमपीसीए चुनाव के समय 2014 में साथ आए फिर दूर हो गए
एमपीसीए चुनाव में जब दूसरी बार विजयवर्गीय मैदान में सिंधिया के सामने उतर रहे थे, तब शेखावत के रिश्तेदार करणसिंह शेखावत विजयवर्गीय खेमे से एमपीसीए चुनाव में मैदान में उतरे थे। इस दौरान फिर शेखावत और विजयवर्गीय एक साथ आए। होटल में मीडिया के सामने एक-दूसरे को गले लगाया। लेकिन जब चुनाव में विजयवर्गीय की फिर करारी हार हुई, तब दोनों के संबंध फिर से कड़वे हो गए और दूरियां आ गई।
यह भी रही नाराजगी की वजह
बीजेपी से उन्हें टिकट की कोई गारंटी नहीं मिली, उन्होंने बदनावर के अलावा देपालपुर, बड़नगर तक से टिकट लेने की बात कही लेकिन बात नहीं बनी। उनके कांग्रेस में जाने की खबरों के बीच आईडीए चेयरमैन जयपाल सिंह चावड़ा और नगराध्यक्ष गौरव रणदिवे ने मुलाकात की और मनाने की कोशिश की लेकिन बात नहीं बनी। हाल ही में उनके जन्मदिन पर कांग्रेस विधायक शुक्ला भी उनसे मिले। बीजेपी के वरिष्ठ नेता नरेंद्र सिंह तोमर जब वरिष्ठों को मनाने और नाराज लोगों की बात सुनने आए थे, तब शेखावत का नाम इस सूची में था ही नहीं, यह भी उनके लिए इशारा था कि पार्टी उन्हें महत्व नहीं देना चाहती है। पूर्व मंत्री दीपक जोशी के कांग्रेस में जाने, फिर समंदर पटेल के भी जाने और कई लोगों के कांग्रेस के साथ आने से उन्हें हिम्मत मिली और वह समय-समय पर पार्टी के विरोध में मुखर हुए ताकि पार्टी उन्हें टिकट की गारंटी दे दे, लेकिन वह नहीं मिली। इसके बाद कांग्रेस से बात चली, पूर्व मंत्री गोविंद सिंह के साथ ही अन्य नेताओं ने उन्हें भरोसा दिलाया और टिकट की गारंटी मिल गई। इसके बाद वह कांग्रेसी हो गए।
शेखावत का राजनीतिक सफर
- 1983-1984 में नगर निगम इंदौर के उप-महापौर बने। यह इंदौर में पहली बीजेपी परिषद थी। इस दौरान 1 महापौर और 1 उप महापौर बनाया जाता था। 1989-90 और 1991-92 में बीजेपी नगराध्यक्ष हुए।