मनीष गोधा, JAIPUR. राजस्थान में कांग्रेस की पिछली सरकार ने चुनाव से पहले जनता को लुभाने के लिए कई लोक लुभावना योजनाएं लागू की और इसका सीधा असर राज्य की वित्तीय सेहत पर नजर आ रहा है। सरकार का बहीखाता बता रहा है कि सरकार को जितनी कमाई होनी चाहिए थी, उतनी नहीं हुई और योजनाओं को लागू करने के लिए सरकार ने सीमा से ज्यादा कर्ज ले लिया और कर्ज के भरोसे ही योजनाएं लागू की गई।
कितना बढ़ जाएगा कर्ज
सरकार के अधिकृत लेखे बताते हैं कि मौजूदा वित्तीय वर्ष में अक्टूबर तक सरकार की राजस्व आय बजट अनुमानों का 44.80 प्रतिशत थी, जो पिछले वर्ष के मुकाबले 2 प्रतिशत कम थी, जबकि सरकार बजटीय प्रावधान का 60.92 प्रतिशत कर्ज ले चुकी थी, जो पिछले वर्ष के मुकाबले करीब 15 प्रतिशत ज्यादा है। पिछले वित्तीय वर्ष में इसी अवधि में सरकार ने सिर्फ 46.12 प्रतिशत कर्ज लिया था। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने 7 दिसंबर को ही वित्त विभाग को पत्र लिखकर तय लिमिट से ज्यादा कर्ज लेने पर आपत्ति भी की है, क्योंकि पिछली चारों तिमाहियों में राजस्थान सरकार ने निर्धारित सीमा से ज्यादा कर्ज लिया है। राजस्थान पर इस वित्तीय वर्ष के अंत तक कर्ज का भार बढ़कर 5.80 लाख करोड़ रुपए होने की आशंका व्यक्त की जा रही है।
टेंडर्स और वर्क ऑर्डर्स पर रोक
बात सिर्फ कर्ज की ही नहीं है बल्कि केंद्र से मिलने वाली राशि और कर्मचारियों के वेतन से विभिन्न मद में की जा रही कटौती का भी योजनाएं लागू करने में इस्तेमाल किया गया। कर्मचारियों के विभिन्न बिलों और पेंशन के साथ होने वाले अन्य भुगतानों को रोक दिया गया। अब मौजूदा वित्तीय वर्ष की आखिरी तिमाही शुरू हो रही है और नई सरकार को इन सब व्यवस्थाओं को पहले दुरुस्त करना पड़ेगा। इसके बाद ही आगे काम बढ़ सकेगा। हाल ही में मौजूदा सरकार ने पिछली सरकार के समय जारी किए गए टेंडर्स और वर्क ऑर्डर्स पर रोक लगाई है और इस निर्णय को व्यवस्थाएं दुरुस्त करने की दृष्टि से ही किया गया बताया जा रहा है।
सरकारी कार्यालयों के बिल हैं पेंडिंग
सरकारी दफ्तरों के रोजमर्रा के खर्चों के 300 करोड़ के बिल बकाया चल रहे हैं। हालात ये हैं कि सरकारी अस्पताल से लेकर पानी सप्लाई करने वाले पंप हाउस के बिजली कनेक्शन काटने की नौबत आ गई है। पूरे जयपुर को पानी सप्लाई करने वाले पंप हाउस के बिजली कनेक्शन काटने के लिए विद्युत विभाग ने नोटिस जारी कर दिए हैं। जिला अस्पतालों को भी बिजली कनेक्शन काटने के नोटिस मिल रहे हैं।
केंद्रीय योजनाओं के 9500 हजार करोड़ विभागों को समय पर ट्रांसफर नहीं
ये भी सामने आया है कि केंद्रीय योजनाओं के तहत मिले 9500 करोड़ रुपए और 5 हजार करोड़ के मैचिंग शेयर का बड़ा हिस्सा समय पर विभागों को ट्रांसफर ही नहीं किया, इसलिए अगली किश्त रुक गई हैं। केंद्र प्रवर्तित योजनाओं में केंद्र सरकार जो राशि जारी करती है, उसे 30 दिन में विभागों को राज्य सरकार को ट्रांसफर करना होता है। राजस्थान को इस साल करीब 33 हजार करोड़ रुपए मिलने थे, लेकिन पहले जारी हुई किश्त खर्च नहीं हुई तो अगली पर भी रोक लगा दी गई है।
कल्याण कोष में नहीं गया कर्मचारियों का पैसा
गहलोत ने वित्त वर्ष 2020-21 के बजट में 3 हजार करोड़ रुपए के कर्मचारी कल्याण कोष की घोषणा की थी। इस घोषणा की क्रियान्विति के लिए ये तय किया गया कि जीपीएफ के खातों में जो अनक्लेम्ड पैसा है, वो कर्मचारी कल्याण कोष में रखा जाएगा, लेकिन ये राशि कर्मचारी कल्याण कोष में जमा करवाने की जगह वित्त विभाग ने राजस्व घाटे की पूर्ति में खर्च कर दी। अक्टूबर 2023 तक की स्थिति में कर्मचारी कल्याण कोष में एक रुपए भी जमा नहीं हुआ था।
करोड़ों के बिलों का पेमेंट करना होगा
राजस्थान में नई सरकार को सत्ता संभालने के बाद पिछली सरकार के समय के कई करोड़ रुपए के पेंडिंग बिलों का भुगतान करना होगा। ये राशि करीब 30 हजार करोड़ तक की बताई जा रही है। ये बिल फसल बीमा, ई-पंचायत, सोशल सिक्युरिटी पेंशन, एसआईपी, आरजीएचएस, चिरंजीवी, अन्नपूर्णा, सरेंडर बिल, पीएल एनकेशमेंट, कर्मचारी सेवानिवृत्ति परिलाभ, बेरोजगारी भत्ता, ग्रांट और केंद्रीय परियोजनाओं के लिए भारत सरकार से मिले पैसे, ठेकेदारों का आदि से संबंधित हैं।
उधार लिमिट भी लगभग पूरी
राजस्थान को इस वित्तीय वर्ष में दिसंबर तक के लिए जो 45 हजार करोड़ रुपए तक उधार लेने की लिमिट मिली थी। वो लिमिट लगभग पूरी हो चुकी है। इसके अलावा गहलोत सरकार चुनावी वक्त में जिन बड़ी घोषणाओं के लिए वित्तीय स्वीकृति जारी कर गई, उनके बिल तो अभी ट्रेजरी में पहुंचने बाकी हैं। ये राशि भी करीब 10 हजार करोड़ की बताई जा रही है।