BHOPAL. राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान जम्मू में पुलवामा हमले और सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर जब दिग्विजय सिंह ने बयान दिया था। उस समय जयराम रमेश मीडिया को दिग्विजय से दूर करते दिख रहे थे। लेकिन अब एक बयान देकर खुद जयराम रमेश ही घेरे में आ गए हैं। उन्होंने गीता प्रेस गोरखपुर को मिलने वाले गांधी शांति पुरस्कार पर बयान देकर नया विवाद खड़ा कर दिया है। उनके बयान का भाजपा से विरोध होना तो स्वाभाविक ही था, लेकिन कांग्रेस के कई नेताओं ने भी उनसे अलग राय जताई है। इसके साथ ही चुनावी माहौल में नेताओं को अपनी मौजूदगी दर्ज कराने का एक और मौका मिल गया। खास बात यह है कि अपनी गरिमा के अनुरूप गीता प्रेस इन विवादों से दूर रहा।
इस विवाद पर बोलने में मध्य प्रदेश के नेता भी पीछे नहीं रहे। जयराम रमेश की लूज बॉल को बाउंड्री के बाहर करने में उमा भारती, सीएम शिवराज सिंह चौहान और गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने फ्रंट फुट पर खेला। तीनों नेताओं ने इसे धर्म,संस्कृति और इटली की संस्कृति तक से जोड़ दिया। मप्र बीजेपी के नेताओं ने कांग्रेस और उसके नेताओं पर तीखा हमला बोला। कांग्रेस को निशाने पर लेने वालों में सीएम शिवराज सिंह चौहान और उमा भारती फ्रंट फुट पर रहे। शिवराज सिंह चौहान ने कांग्रेस को नसीहत दी। उमा भारती ने इस मुद्दे पर पांच ट्वीट किए। इस विवाद में मप्र के कांग्रेस नेताओं ने दूरी बनाए रखी, लेकिन जयवर्धन सिंह ने ही टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि वे खुद गीता प्रेस की किताबें पढ़ते हैं। उन्होंने कहा कि पूजा पाठ करते वक्त किताबें पढ़ता हूं। कांग्रेस मीडिया विभाग को निर्देश है कि गीता प्रेस पर कोई बयान न दें।
सबसे सख्त रिएक्शन उमा भारती का रहा
बीजेपी की फायर ब्रांड नेता उमा भारती ने ट्वीट कर कहा कि कांग्रेस ने इस्लामीकरण और ईसाईकरण की राह पकड़ ली है। उन्होंने सोनिया गांधी को सलाह दी कि यदि वह अपने नेताओं के प्रति सावधान न रहीं तो कांग्रेस को वोट के बदले सिर्फ घृणा और तिरस्कार ही मिलेगा। उमा ने लिखा कि गीता प्रेस गोरखपुर ने जो किया है उसके लिए नोबेल पुरस्कार भी कम पड़ेगा। अपने बयान में सीएम शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि यह हमारी संस्कृति और परंपरा का अपमान है। गीता प्रेस को सम्मान देने का विरोध करने वालों को जनता कभी माफ नहीं करेगी। बयान देने की कड़ी में नरोत्तम मिश्रा ने कांग्रेस की तुलना इटेलियन कल्चर से कर दी। उन्होंने कहा - इटेलियन कल्चर वाले समझ नहीं सकते, गीता प्रेस भारतीय और सनातन के लिए कितनी आवश्यकता है।
ट्वीट से शुरू हुआ बवाल
जयराम रमेश ने ट्वीट में लिखा- 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार गीता प्रेस गोरखपुर को दिया जाने का निर्णय लिया गया है। गीता प्रेस इस साल अपनी शताब्दी मना रहा है। यह फैसला वास्तव में एक उपहास है। ये सावरकर और गोडसे को पुरस्कार देने जैसा है।
1995 में स्थापित हुआ था पुरस्कार
भारत सरकार की ओर से गांधी शांति पुरस्कार को स्थापित किया गया था। यह एक वार्षिक पुरस्कार है। साल 1995 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 125वीं जयंती के अवसर पर उनके आदर्शों के प्रति श्रद्धांजलि के रूप में इस पुरस्कार की स्थापना की गई थी।
गीता प्रेस को 100 साल पूरे
गीता प्रेस की स्थापना साल 1923 में हुई थी। यह दुनिया में सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक है। संस्था ने 14 भाषाओं में 41.7 करोड़ किताबों का प्रकाशन किया है। इनमें 16.21 करोड़ श्रीमद भगवद गीता शामिल हैं। इस संस्था ने पैसा कमाने के लिए कभी विज्ञापन या दान नहीं लिए। गांधी शांति पुरस्कार से गीता प्रेस को सम्मानित किया जाना है लेकिन संस्था ने पुरस्कार इनाम राशि (एक करोड़ रुपये) लेने से इंकार कर दिया है।