पढ़िए दो दूनी आठ में इस बार अनाड़ी का खेलना..109 आवेदन का क़िस्सा..किसके लिए संदेश..बात का मतलब क्या है..

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Yagyawalkya Mishra
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पढ़िए दो दूनी आठ में इस बार अनाड़ी का खेलना..109 आवेदन का क़िस्सा..किसके लिए संदेश..बात का मतलब क्या है..

अनाड़ी का खेलना खेल का सत्यानाश




महादेव सट्टा एप में एक शख़्स के धराने की खबर से ही कइयों को जूडीताप का बोखार धर लिया था।प्लेटलेट्स डाउन हुए रिमांड नोट में उसी के हवाले से एसपीएस और आईपीएस के आए ज़िक्र से। हाउस के भीतर से लेकर व्हीआईपी रोड के आलीशान पंच सितारा होटल तक नमूदार होने वाले इस बंदे का जलवा ऐसा था कि, उन्हें बड़े बड़े बल्लम भी ‘साहब और सर’ कहते थे। लेकिन यह भी था कि कई अधिकारी बुरी तरह इस शख़्स से बिदकते भी थे। ये अधिकारी मानते थे कि दस पैसा सच और उसमें नब्बे पैसा झूठ की शातिराना मिलावट ऐसी कि सच झूठ का अंतर करना मुश्किल हो जाए उसमें श्रीमान जी माहिर थे। लेकिन ये भी उतना ही सच है कि, कुछ अधिकारियों की सीधी नापसंद के बावजूद इस शख़्स के जलवानगर जलालपुर में कोई कमी नहीं थी। अब ईडी की पूछताछ में तो कहावत है कि गूंगा भी बोल पड़ता है, तो बोल रहा है।लेकिन मसला यही आ गया है कि, दस पैसा वाला सच बोल रहा है अगला या नब्बे पैसा मिला कर।पाटन वाले भईया के राज में ये तो है कि किरदार एक से बढ़कर एक आए, और मज़ेदार यह है कि रोकने के बजाय ऐसे किरदारों को जमकर हवा दी गई, तब ही तो एक सीनियर आईएएस साहेब जूडीताप बुख़ार की वजह बने इस शख़्स का ज़िक्र करते हुए इस सहाफ़ी को बोले, पत्रकार जी एक गाना सुनना, एक फ़िल्म थी वो सात दिन, गायिका थी आशा भोंसले, गाना के बोल थे अनाड़ी का खेलना खेल का सत्यानाश।



अंबिकापुर में 109 आवेदन का मसला क्या है




 कांग्रेस की इस हाई प्रोफ़ाइल सीट पर शुरुआती दो दिन ब्लॉक अध्यक्ष तक सिंगल आवेदन था टी एस सिंहदेव का। अब विरोधियों को लगा कि, सिंगल नाम कैसे आ रहा है, तय हुआ कि,सीएम भूपेश के सरगुजा में सबसे करीबी अमरजीत भगत के मित्र राजू बाबरा का नाम जाए। खाद्य आयोग के अध्यक्ष बाबरा जी ने कहा, कांग्रेस में काम किया है काम के आधार पर पहचान है। अब ये लाईन आई और सिंहदेव समर्थकों ने ताबड़तोड़ आवेदन दे दिया, याने यह बताना था कि कांग्रेस के लिए काम किए हो तो आप अकेले नहीं हो कई हैं उनमें से एक आप भी हो।



नीलकंठ तो उड़ गए लेकिन..




नीलकंठ ब्यूरोक्रेसी से उड़ कर राजनीति की बगिया में चहक रहे हैं लेकिन एक मसले ऐसा है कि थोड़ी या ज्यादा परेशानी हो सकती है। नीलकंठ टेकाम तो यह कह कर बीजेपी में चल दिए हैं कि, मेरा तो व्हीआरएस मंज़ूर हो गया है, लेकिन इंद्रावती महानदी में केंद्र सरकार का कोई पत्र कम से कम शुक्रवार तक तो ही नहीं पहुँचा है। मेल इंटरनेट के दौर में मेल गुम तो होता नहीं है तो केंद्र सरकार का अनुमति वाला पत्र किधर चल दिया है।



ए दे ले




आदिवासी बाहुल्य संभाग के एक ज़िले में माथुर भाईसाब पहुँचे। हर विधानसभा की कोर कमेटी से तीन तीन नाम माँगने थे। इस ज़िले में आने वाली सामान्य विधानसभा के लिए कोर कमेटी के हर सदस्य ने अपने नाम के साथ एक अन्य नाम लिख के लिफ़ाफ़ा तैयार कर लिया है। एक कोर कमेटी में चालीस सदस्य होते हैं तो पैनल कितने का बन गया होगा ?



ब्यूरोक्रेसी में इस संदेश के बारे में पता चला




भूपेश सरकार की ब्यूरोक्रेसी में एक संदेश टॉप टू बॉटम तैर रहा है। भूपेश सरकार के हर फ़ैसले में बेहद प्रभावशाली रहे एक शख़्स को लेकर यह मैसेज तैर रहा है कि अब तवज्जो ना दी जाए।हालिया दिनों केवल इस बात को स्थापित करने के लिए मंत्रालय स्तर की एक लिस्ट जारी हुई और एक काबिल अधिकारी को केवल इसलिए कमतर करने की कोशिश हुई क्योंकि उस अफसर को उस शख़्स का करीबी माना जाता है।



केवल कांग्रेस नहीं बीजेपी में भी लेकिन मसला अलग है




पचास पार दावेदार के आवेदन कांग्रेस में भी आए हैं और बीजेपी में भी। लेकिन सबके मसले अलग अलग हैं। अहिवारा और दुर्ग शहर में बीजेपी के पास सौ से ज़्यादा दावेदार हैं। कांग्रेस में यह आलम बेलतरा कोटा अंबिकापुर कांकेर जैसी सीटों पर है। इनमें अंबिकापुर का मसला सबसे अलग है, लेकिन बाक़ी जगहों पर आवेदन चाहे बीजेपी में आएँ या कांग्रेस में वहाँ आवेदन का मतलब सीधी प्रतियोगिता है।बीजेपी में खैर अनुशासन का डंडा है, याने टिकट जिसे मिला उसके पक्ष में बढ़ चलिए, लेकिन कांग्रेस में ऐसा नहीं है। कांग्रेस के लिए भीतरघात रोकना हमेशा से जटिल रहा है।



इस बात का मतलब क्या है




बीजेपी में प्रदेश प्रभारी ओम माथुर जी बोले हैं कि, टिकट का पैमाना जिताऊ होना है। याने कोई कितना बड़ा अल्लम बल्लम वरिष्ठ गरिष्ठ हो कोई फ़र्क़ नई पड़ता है, जिताऊ होगा तो ही टिकट भेंटाएगा। संघ की पृष्ठभूमि से आते एक वरिष्ठ कार्यकर्ता जिन्हें टिकट की लालसा नहीं है उन्होंने कहा है कि, देखो बात को समझो  अब ऐसे में नतीजा चाहे जो हो लेकिन जिन्हें भी बीजेपी टिकट दे रही है उन्हें लेकर हमें मानना है कि यही जिताऊ था।भले सच चाहे जो हो, लेकिन मानना यही है।



सुनो भई साधो




1- चुनाव आयोग की बैठक के बाद सयाजी में साहबों ने चिंता-चिंतन-मनन किया है? इसमें कितना सच है ?

2- क्या यह सच है कि बीजेपी के एक तीन तूफ़ान मचाने वाले ‘माननीय’ को कहा गया है इस बार आपके यहाँ नया चेहरा ?


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