BHOPAL. कौन होगा मध्यप्रदेश का गृह मंत्री। किसे मिलेगा वित्त विभाग। ये खबरें और उन पर बेस्ड अटकलें तो आप बहुत सुन रहे होंगे, लेकिन फिलहाल सवाल ये है कि कब होगा विभागों का बंटवारा। इससे भी बड़ा सवाल ये है कि कहां से होगा विभागों का बंटवारा।
कब बंटेंगे मंत्रियों के विभाग
मध्यप्रदेश में बीजेपी की सरकार बने 24 दिन का वक्त बीत चुका है। जीतने के 10 दिन बाद बीजेपी सीएम का चेहरा फाइनल कर सकी। फुल सस्पेंस के बाद क्लाइमेक्स मोहन यादव के चेहरे के साथ खत्म हुआ। इसके बाद बीजेपी सरकार की नई फिल्म का सीक्वल आया। पहली कड़ी का नाम था सीएम कौन। दूसरी कड़ी यानी कि सीक्वल का नाम था मंत्री कौन। अब 28 चेहरों के साथ इसका क्लाइमेक्स भी ओवर हो चुका है। अब तीसरी कड़ी का इंतजार है मंत्रियों को मिलेगा कौन सा विभाग। जब 24 दिन गुजरने के बाद भी इसका जवाब सरकार यानी कि मोहन यादव के पास नहीं है कि उनका कौन सा सेनापति जंग के किस मोर्चे पर तैनात होने वाला है। कहने को ये कहा जा सकता है कि क्या हुआ इतनी भी क्या जल्दी है। मुख्यमंत्री बन गए, मंत्री बन गए अब विभाग भी बंट ही जाएंगे, लेकिन ये देरी मध्यप्रदेश को शासकीय और प्रशासनिक स्तर पर कितना नुकसान पहुंचा रही है इसको समझ लेना जरूरी है।
दिल्ली के हाथ में डोर
मंत्रियों के बनने के बाद फिलहाल तो वो खुद इस इंतजार में हैं कि उन्हें क्या मिलेगा। ये जान सकें। मंत्रालय के किसी गलियारे में ही ये मंथन चल रहा होता तो शायद कोई दीवार ही बुदबुदा कर बता देती कि किसे क्या मिलने वाला है। लेकिन मुश्किल ये है कि मंत्रालय में कठपुतलियां भर हैं। जिनकी डोर दिल्ली के हाथ में है। जब तक वो डोर हिलेगी नहीं मंत्रालय में हरकत नहीं होगी। आसान भाषा में कहें कि भोपाल कहने को राजधानी है, फैसले सारे दिल्ली से हो रहे हैं। जैसे केंद्र शासित राज्य में होते हैं। जब केंद्र से डोर हिलेगी तो कठपुतली हाथ-पैर हिलाएगी। जब तक डोर नहीं हिलेगी कठपुतली मंच पर शून्य में एकटक देखने के सिवाय कर भी क्या सकती है। खैर सरकार का जो हाल है सो रहने दीजिए। ये समझिए कि ये देरी किस किस स्तर पर सुस्ती और देरी का कारण बन रही है।
मंत्रालय के कामों की रफ्तार थमी
मंत्रालय के अफसर से लेकर अर्दली तक इस इंतजार में हैं कि उनके विभाग का मंत्री का नाम जान सकें। जिसकी वजह से मंत्रालय के कामों की रफ्तार थम सी गई है। इसकी वजह ये भी है कि जब मंत्री तैनात होंगे तो अपने हिसाब से अफसरों की तैनाती भी करेंगे। सो अफसरों को यकीन है कि मंत्री तय होते ही उनके विभाग भी बदले जा सकते हैं। ऐसे में नया काम शुरू करने का कोई मतलब नहीं है। इसलिए अपर मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव जैसे आला अफसरों से लेकर बाबू भी भी हाथ पर हाथ धरकर बस न्यूज चैनलों पर नजरें गढ़ाए बैठे हैं। कभी-कभार आम जनता की तरह उन अटकलों पर भी नजर डाल लेते हैं जो मंत्रियों के विभाग का ऐलान सा कर देती हैं।
नए मुख्य सचिव का इंतजार
मंत्री मिल जाएंगे तो नए मुख्य सचिव का इंतजार शुरू हो जाएगा। क्योंकि तत्कालीन सीएस इकबाल सिंह बैंस के रिटायर होने के बाद चुनाव आचार संहिता के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सबसे सीनियर महिला आईएएस को कार्यवाहक मुख्यसचिव बनाया था, तब से वीरा राणा इस पद पर हैं, लेकिन उन्हें खुद नहीं पता कि वो इस पद पर रिटायरमेंट होने तक रहेंगी या बीच में ही बदल दी जाएंगी। वीरा खुद मार्च 2024 यानी अगले 3 महीने में रिटायर हो रही हैं।
ऐसे हालात बने क्यों ?
अब ये समझा जा सकता है कि जब मंत्रालय में ही काम की रफ्तार सुस्त है तो बाकी सरकारी दफ्तर और जिला स्तर के कार्यालयों में क्या हाल होगा। हर जगह काम धीमी गति से ही हो रहे हैं। पर ऐसे हालात बने क्यों हैं। ऐसी बंपर जीत, जिसके लिए बीजेपी दावा करती है कि उसे अंदाजा था कि वो सत्ता में वापस लौट रही है। वो जीत मिलने के बाद हर काम में गति धीमी क्यों है। क्या जीत के बाद की कोई प्लानिंग नहीं थी। होती तो सीएम तय करने में ही इतनी देर नहीं लगती। क्योंकि बीजेपी ये तय कर चुकी थी कि शिवराज सिंह चौहान को फिर सीएम नहीं बनाया जाएगा। जब जीत का कॉन्फिडेंस था तो चेहरों के विकल्प पहले ही क्यों तय नहीं किए गए। जब दिग्गजों को मैदान में उतार ही दिया था तो उनकी जीत के बाद उनके पुनर्वास का ख्याल क्यों आया। अब जब दिग्गजों के साथ नए चेहरों को एक साथ खड़ा कर मंत्रिमंडल बना ही दिया है तो फिर विभाग बांटने में देरी क्यों हो रही है।
वेट एंड वॉच वाला हाल क्यों ?
हर सिचुएशन से पहले वेट एंड वॉच वाला हाल क्यों है। क्या ये डर है कि जो दिग्गज जीतकर मंत्री भी बन चुके हैं वो ऐसे-वैसे विभाग को लेकर शांत नहीं बैठेंगे। हर फैसला दिल्ली से होगा तो हर काम भी इसी तरह लेट होगा। ये भी तय मानिए कि वैसे तो प्रदेश में सिर्फ एक मुख्यमंत्री है। लेकिन जो दिग्गज मंत्रिमंडल में शामिल हुए हैं वो अपने आप में मुखिया हैं। जो सीएम से पहले खुद ही दिल्ली फोन घनघना सकते हैं और अपने हक में फैसले करवा सकते हैं।
क्या दिल्ली से चलेगी मध्यप्रदेश सरकार ?
चलते चलते एक सवाल का जवाब और सोचिए, जो सीएम अपनी मर्जी से अपने मंत्री तैनात नहीं कर सकता। वो सीएम कैसे अपने से कहीं साल सीनियर विधायकों से उनका रिपोर्ट कार्ड पूछ सकेगा। उनका परफॉर्मेंस खराब होने पर उन्हें तान सकेगा। तो क्या ये काम भी अब दिल्ली से ही होगा। तो फिर दिल्ली को कठपुतली की डोर हिलाने की भी जरूरत क्यों होगी। सरकार को रिमोट से चलाना तो दूर की बात रिमोट को हाथ लगाने की भी जरूरत नहीं होगी। इंटरनेट के युग में वॉइस कमांड से ही काम चल जाता है, शायद मध्यप्रदेश की सरकार भी दिल्ली की एलेक्सा से संचालित होती रहेगी।