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संजय गुप्ता, INDORE. इंदौर कलेक्टर पद से 13 माह में साल 2009 बैच के आईएएस डॉ. इलैयाराजा टी की विदाई हो गई है। अपनी जनसुनवाई में गरीबों की मदद करने वाले और पीपुल्स डीएम के रूप में पहचान बनाने वाले इलैयाराजा की इतनी जल्द विदाई क्यों हुई? यह सवाल सभी के मन में चल रहा है, जबकि बीजेपी भी इंदौर की सभी नौ सीट जीत चुकी थी। इसकी सबसे बड़ी वजह बनी भोपाल में चर्चा कि इंदौर शहर को अभी वह कलेक्टर चाहिए जो विजनरी हो और शहर को समझता है। ऐसे में इंदौर कलेक्टर पद के लिए सिंगल नाम आगे आया भोपाल कलेक्टर पद पर पदस्थ 2010 बैच के आईएएस आशीष सिंह का। इसके बाद उनके आदेश हो गए।
इलैयाराजा के पक्ष में यह नहीं गया
- इलैयाराजा टी ने गरीबों के लिए खासकर दिव्यांग वर्ग के लिए जनसुनवाई में वाहन वितरण के साथ ही कई समस्याओं के त्वरित निपटान के काम किए। एक साल में रेडक्रास से रिकार्ड मदद की गई। नए सीएम मोहन यादव को भी यह दिखाने के लिए इंदौर के कार्यक्रम में स्कूटी एक साथ बुलाकर रखवाई गई। लेकिन यह उनके पक्ष में नहीं गया।
- इंदौर से उन्हें लेकर फीडबैक गया कि वह नेकदिल अच्छे अधिकारी है लेकिन विकास मामलों में विजनरी अधिकारी के तौर पर आगे नहीं आ रहे हैं। आईडीए हो या नगर निगम, विकास के मुद्दों पर वह लीड नहीं ले रहे हैं और ना ही सभी संस्थाओं के साथ कोर्डिनेशन हो रहा है।
- इंदौर निगम की ब्यूरोक्रेसी अलग चली, आईडीए अपने हिसाब से फैसले ले रहा है और अन्य डेवलपमेंट एजेंसियों के बीच में भी तालमेल नहीं बैठ रहा है, जो इंदौर में कलेक्टर की सबसे प्रमुख जिम्मेदारी मानी जाती रही है। चाहे बात आकाश त्रिपाठी की करें, या मनीष सिंह इन्होंने यह भूमिका प्रमुखता से निभाई।
- कलेक्टोरेट में राजस्व से लेकर अन्य काम की शैली से लोग परेशान है। नामांतरण, बटांकन हो या डायवर्सन जैसे काम, आमजन परेशान हो रहे हैं और निचले स्तर पर जमकर लोगों को चक्कर खिलवाया जा रहा है। कुल मिलाकर कलेक्टोरेट में अधिकांश अधिकारी और निचले स्तर पर अमला मनमानी पर ही है, जिस पर कंट्रोल नहीं हुआ है।
- हालांकि, उनके कार्यकाल में प्रवासी दिवस आयोजन, ग्लोबल समिट,, जी 20 जैसे आयोजन हुए लेकिन इनका श्रेय उन्हें जाने की जगह केंद्र और निगम के खाते में गया।
आशीष सिंह के पक्ष में यह बातें गई
- सिहं इंदौर को भली भांति जानते हैं। वह जिला पंचायत सीईओ से लेकर निगमायुक्त पद पर रहे हैं।
- उन्होंने अपने काम का लोहा तभी मनवा लिया जब इंदौर देश में दूसरा ओडीएफ (खुले में शौच से मुक्त) बना, तब कोई इसे जानता भी नहीं था और स्वच्छता सर्वेक्षण भी नहीं शुरू हुआ था।
- कार्यशैली तेज तर्रार है जिम्मेदारों का सस्पेंड करने और बदलने में देरी नहीं करते हैं और शाबासी देने में भी पीछे नहीं है। काम की मॉनटरिंग तगड़ी है।
- निगमायुक्त रहते हुए कचरे का ढेर खत्म किया, जिसकी कल्पना भी कोई नहीं कर सकता था। नए तरीके से सफाई के नए काम किए, जिसने इंदौर को कई सालों के लिए आगे कर दिया। निगम के जरिए विकास कामों को देखा, कोविड में भी जमकर काम किया चाहे इंदौर निगमायुक्त तौर पर हो या फिर उज्जैन कलेक्टर तौर पर।
- उज्जैन में विकास काम की झलक महाकाल लोक से दिखाई, कि किस तरह से मिशन बनाकर सरकार की नीतियों और योजनाओं को पूरा किया जाता है।
- जब भोपाल गए तो वहां भी कम कार्यकाल में ही अपने काम की मुहर लगा दी और पूरा फोकस शहर के ट्रैफिक से लेकर अन्य विकास काम पर दिया।
- उनका फोकस एक ही बात पर होता कि शासन की योजना, नीति को किस तरह बेहतर तरीके से लागू किया जा सकता है, इसमें जो लापरवाही करे उसे बाहर करो। इसी के चलते सिंह की लीडरशिप में सभी अधिकारी-कर्मचारी आगे बढ़कर जुड़कर काम करते हैं जो शहर के लिए काफी हितकर होता है।