बीजेपी आलाकमान ने क्यों ताक पर रखी मप्र की सर्वे रिपोर्ट, तीन-तीन प्रभारी फिर भी नहीं हो रही सुनवाई

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Harish Divekar
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बीजेपी आलाकमान ने क्यों ताक पर रखी मप्र की सर्वे रिपोर्ट, तीन-तीन प्रभारी फिर भी नहीं हो रही सुनवाई

BHOPAL. एमपी अजब है, सबसे गजब है- इस पंच लाइन का प्रदेश के टूरिज्म को फायदा हुआ या नहीं ये तो पता नहीं। पर, इतना जरूर है कि इस पंच लाइन को प्रदेश बीजेपी ने कुछ ज्यादा ही सीरियसली ले लिया है। क्योंकि, इस बार जो बीजेपी में हो रहा वो अजब गजब ही है। हर बार बीजेपी का काम एक ही प्रभारी से चल जाता था। इस बार तो त्रिदेव प्रदेश के हाल पर नजर रख रहे हैं। उसके बावजूद कार्यकर्ताओं का हाल यूं है कि बस खाली कमरे में शिकायतें सुना रहे हैं और लौट आते हैं। कहने को एक के बाद एक सर्वे भी हुए हैं, लेकिन हर सर्वे के बाद लगता है बीजेपी बंधने की बजाए टुकड़ों में टूटती जा रही है।



बीजेपी में एक नहीं 3-3 प्रभारी, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात



कुछ ही दिन पहले एक घटनाक्रम हुआ। जिसने पूरी बीजेपी को हिलाकर रख दिया। एक ही जिले के दो मंत्री और दो विधायक तीसरे मंत्री की शिकायत के साथ मंत्रालय से लेकर समिधा तक भटके। वैसे तो इस घटनाक्रम के बाद लीपापोती बहुत हुई। पर बीजेपी में पनप रही गुटबाजी और तालमेल की कमी खुलकर सतह पर आ गई। ये हालात उस पार्टी के लिए बिलकुल नागवार है जहां गुटबाजी पर चर्चा करना तो दूर गुटबाजी का जिक्र करना भी गुनाह है। उस पार्टी में सीनियर मंत्री को शिकायत लेकर भटकना पड़ा। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जमीनी स्तर पर बीजेपी अब किस दौर से गुजर रही है। इन घटनाक्रम की जानकारी आलाकमान के दरबार तक पहुंची और शिव प्रकाश ने नाराजगी भी जाहिर की। इस तरह के हालातों पर काबू रखने के लिए बीजेपी ने एक नहीं इस बार तीन-तीन प्रभारी तैनात किए हैं, लेकिन नतीजा वही है ढाक के तीन पात।



गुटबाजी की शिकार बीजेपी दो फाड़ नहीं चार टुकड़ों में बटीं



एक प्रभारी मुरलीधर राव, एक प्रभारी शिवप्रकाश और सबसे ऊपर अजय जामवाल। जामवाल खुद वो प्रभारी हैं जो जिले जिले घूमकर हालात का जायजा ले चुके हैं। उनकी रिपोर्टिंग सीधे अमित शाह और जेपी नड्डा जैसे नेताओं को होती है। जिसके बाद उम्मीद थी कि प्रदेश में हालात बदलने पर बीजेपी फोकस करेगी, लेकिन हुआ उल्टा। बीजेपी की बड़ी बैठक में जामवाल भी इन हालातों के बाद दिल में छुपा दर्द छिपा नहीं सके। गुटबाजी की शिकार बीजेपी दो फाड़ नहीं चार टुकड़ों में बंट चुकी हैं। उन्हें एक करने में तीन-तीन प्रभारी कोई कमाल नहीं दिखा सके। उस पर डिजिटाइजेशन का भूत भी सवार है। प्रभारियों की लाइव लोकेशन की ट्रेकिंग, उनकी बैठकों की फोटो, जनसंपर्क का अपडेट सब कुछ अपडेट हो रहा है, लेकिन पार्टी तालमेल और अनुशासन के मामले में लगातार डिग्रेड होती नजर आ रही है। 



प्रदेश बीजेपी पर तीन-तीन प्रभारियों की नजर, फिर भी असंतोष



नरेंद्र मोदी, वैंकेया नायडू, अरूण जेटली, अनंत कुमार, विनय  सहस्त्रबुद्धे- ये वो नाम है जिन्होंने मध्यप्रदेश की जिम्मेदारी अकेले ही संभाली और हालात मुट्ठी से बाहर नहीं होने दिए। अब एक नहीं तीन-तीन प्रभारी हैं। इन प्रभारियों में अजय जामवाल को छोड़ दें तो मुरलीधर राव और शिवप्रकाश काफी हद तक सत्ता में मिलने वाली सुविधाओं का लाभ भी उठा रहे हैं, लेकिन हालात बेकाबू हुए जा रहे हैं। ये प्रभारी आलाकमान के लिए सीसीटीवी का काम करते हैं और ब्लूटूथ हेड फोन का भी। आसान भाषा में ये मान लें कि जमीनी स्तर के कार्यकर्ता से लेकर आलाकमान तक एक ब्रिज का काम करते हैं ये प्रभारी। तो, इस बार त्रिदेव, दो सेट त्रिनेत्र के साथ प्रदेश पर नजर बनाए हुए हैं। फिर भी पार्टी के भीतर असंतोष का ऐसा तूफान उठा, जिसका कोई पूर्वानुमान भी नहीं लग सका। ये तूफान इस बात का गवाह है नाराज बीजेपी, शिवराज बीजेपी, महाराज बीजेपी और अब पनप रही वीडी बीजेपी को एक करने में तीन-तीन महारथी फेल हो रहे हैं।



जामवाल की रिपोर्ट पर भी अब तक कोई एक्शन नहीं हुआ



प्रभारियों की गिनती इतने पर ही खत्म नहीं हो रही। तीन प्रभारियों के बाद जिला प्रभारी, हारी हुई सीटों पर आकांक्षी सीट प्रभारी, हर बूथ पर प्रभारी। इस तरह बीजेपी के पास प्रभारियों की लंबी लिस्ट है। इन प्रभारियों की ट्रैकिंग के लिए हाई टैक सिस्टम भी है। हर प्रभारी को अपनी रिपोर्ट पार्टी की एप पर अपलोड करनी होती है। कौन  सा प्रभारी कहां है क्या कर रहा है। जो किया है उसकी सेल्फी अपलोड करना। इस लंबी चौड़ी कवायद के बावजूद आलाकमान किसी ठोस नतीजे  पर नहीं पहुंचा। पहुंचा भी हो तो उसका कोई असर प्रदेश में नजर नहीं आ रहा। सुनने में ये भी आया कि जामवाल भी अपनी रिपोर्ट सब्मिट कर चुके हैं पर उस पर भी कोई एक्शन अब तक नहीं हुआ। आलाकमान की इस चुनावी उदासीनता ने कार्यकर्ताओं को भी निराश करना शुरू कर दिया है। 



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कांग्रेस को उम्मीद नहीं वहां भी बीजेपी की गुटबाजी से मिल सकती है सीट



बीजेपी के बिखरे हुए हालात गुटबाजी के आरोप झेलती आ रही कांग्रेस के लिए फायदेमंद साबित हो सकते हैं। मुमकिन है कि कांग्रेस को जहां जीत की उम्मीद नहीं भी है, गुटबाजी के चलते बीजेपी खुद वो सीट कांग्रेस की झोली में डाल दें। वैसे भी कांग्रेस अपनी ताकत से ज्यादा बीजेपी की कमजोरियों का फायदा उठाने के मूड में ज्यादा नजर आ रही है।



बीजेपी के लिए इस बार चुनावी जीत हासिल करना आसान नहीं होगा। हालात यही रहे तो नतीजे उम्मीद से परे भी रह सकते हैं।



बीजेपी संगठन का हाल चौबे जी जैसा जो छब्बे बनने चले और दुबे बनकर लौटे



प्रदेश में इस बार मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के अलावा नाराज बीजेपी वर्सेज महाराज बीजेपी वर्सेज शिवराज बीजेपी के बीच ज्यादा नजर आ रहा है। जो खुद को बेस्ट साबित करने के लिए अपनी ही पार्टी के दूसरे धड़े को मात देने पर अमादा है। इधर संगठन का हाल चौबे जी जैसा है जो छब्बे बनने चले और दुबे बनकर लौटे। ऐप और सोशल मीडिया की वर्चुअल दुनिया में धमक बनाए रखने के चक्कर में असल हालात से पार्टी बेखबर हो रही है। इन ऐप्स पर किसकी नजर है इसका भी अता पता नहीं है। ये हालात क्या इशारा करते हैं समझना आसान है।

 


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