इंदौर की मिल पर सरकार ने हाईकोर्ट में जवाब नहीं दिया तो होगा चरणबद्ध आंदोलन, पूर्व कर्मचारियों ने कहा, किसी नेता ने नहीं दिया साथ

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Puneet Pandey
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इंदौर की मिल पर सरकार ने हाईकोर्ट में जवाब नहीं दिया तो होगा चरणबद्ध आंदोलन, पूर्व कर्मचारियों ने कहा, किसी नेता ने नहीं दिया साथ

संजय गुप्ता. Indore.इंदौर में दिसंबर 1991 को बंद हुई हुकमचंद मिल के कर्मचारी मिल बंद होने के बाद से ही अपने बकाया भुगतान की लड़ाई लड़ रहे हैं। हर रविवार को यह मिल परिसर में बैठक करते हैं। इसमें फैसला लिया गया कि 19 जून सोमवार को मप्र शासन को हाईकोर्ट में जवाब पेश करना है, यदि वह जवाब पेश नहीं करते हैं या हमारे हित की बात नहीं करते हैं तो अब सड़कों पर उतरकर चरणबद्ध आंदोलन किया जाएगा। सभी ने कहा कि सरकार इस समय सभी वर्गों के लिए योजनाएं लगाकर धन लुटा रही है, लेकिन केवल हमारे ही मामले में हक का पैसा देने के लिए तैयार नहीं है। इसलिए हम केवल सुनवाई का इंतजार कर रहे हैं, इसके बाद हम आंदोलन पर उतरेंगे। साथ ही बैठक में कहा कि 31 साल में किसी जनप्रतिनिधि, नेता ने हमारा साथ नहीं दिया।





यह हुआ रविवार को बैठक मे





हुकुमचंद मिल मजदूर, कर्मचारी और अधिकारी समिति के अध्यक्ष नरेंद्र श्रीवंश ने बताया कि जब मिल बंद हुई तब मिल में 6000 श्रमिक, कर्मचारी कार्य करते थे। अभी तक 2200 से अधिक श्रमिक, कर्मचारियों का निधन हो गया। 69 श्रमिकों ने बेरोजगारी महंगाई से तंग आकर आत्महत्या कर चुके हैं। साथ ही  200 से अधिक बुजुर्ग श्रमिक पैरालिसिस व गंभीर बीमारियों से ग्रस्त हैं और यहां तक की कुछ श्रमिक भीख मांग कर अपना गुजर बसर कर रहे हैं। मिल बंदी के बाद शहर के किसी भी जनप्रतिनिधियों ने मिल श्रमिकों के लिए कुछ भी नहीं किया। श्रीवंश ने बताया की जब मिल चालू थी तब मिल मैनेजमेंट ने बैंकों से मात्र 17 करोड़ रुपए कर्ज लिया था किंतु मिल बंदी के बाद बैंकों ने ब्याज पर ब्याज यहां तक की चक्रवर्ती ब्याज लगाकर अगस्त 2007 तक 169 करोड़ हो गया है। कर्मचारियों  ने सवाल उठाए कि जब बैंकों को ब्याज सहित पैसा मिल रहा है तो मजदूरों को क्यों नहीं। जबकि, उज्जैन की विनोद विमल मिल को सुप्रीम कोर्ट के आदेश से उनकी क्लेम राशि के साथ ब्याज भी दिया जा रहा है।





यह फैसला लिया गया बैठक में





मध्य प्रदेश गृह निर्माण मंडल भोपाल मिल के श्रमिकों को ब्याज नहीं देना की बात कर रहा है। 



पूर्व कर्मचारियों ने कहा कि श्रमिकों की दिन-प्रतिदिन मृत्यु होते जा रही है। अगर प्रदेश सरकार का यही रवैया रहा तो निकट भविष्य में मिल एक भी श्रमिक नहीं बचेगे। प्रदेश सरकार इस समय दोनों हाथों से पैसा लुटा रही है और मिल के श्रमिकों को इनके अधिकार का पैसा देने के लिए पैसे नहीं हैं। बैठक में शामिल पूर्व कर्मियों ने कहा कि सभी ने यही बात कही कि हम ब्याज सहित पैसा लेंगे। अगर 19 जून को शासन की और से न्यायालय मे कोई ठोस जवाब नहीं आता तो फिर श्रमिकों को मैदान में आकर आंदोलन करना पड़ेगा।





अभी तक मिल मामले में यह हुआ 





 हुकुमचंद मिल पर मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश से 20/7/2001 को शासकीय परिसमापक अधिकारी (लिक्विडेटर ऑफीसर) कि नियुक्ति हुई। 6 अगस्त 2007 को मिल के श्रमिकों की ग्रेचुइटी की राशि 229 करोड़ों रुपए स्वीकृत हुई। 3 मई 2017 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश से 50 करोड़ रुपए का चेक शासकीय परिसमापक अधिकारी मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के पास जमा किया गया। अभी तक शासन की और से और सुप्रीम कोर्ट के आदेश से केवल 50 करोड़ रुपए ही श्रमिकों को मिल पाएं हैं। मिल की 42 एकड़ से अधिक जमीन को शासन लेना चाहता है। उसका बाजार मूल्य 1500 करोड़ रुपए है। हालांकि सरकारी वैल्यूशन इसका करीब सवा पांच सौ करोड़ रुपए ही हुआ है। इसके पहले निगम ने यहां आईटी पार्क बनाने का फैसला लिया था, इसमें जो राशि आएगी उससे मजदूरों को भुगतान होगा। लेकिन, बाद में फिर हाउसिंग बोर्ड का प्रस्ताव आया यहां आवासीय टाउनशिप विकसित करने का। अभी हुकम चंद मिल श्रमिकों की देनदारियों के लिए मध्य प्रदेश गृह निर्माण एवं अधोसंरचना विकास मंडल भोपाल, आयुक्त चंद्रमौली शुक्ला ने हुकुमचंद मिल के श्रमिकों केवल श्रमिकों की मंजूर क्लेम राशि देने की है। दिसंबर माह में इंदौर नगर निगम द्वारा हुकुमचंद मिल में एक आयोजन कराया गया था। उस आयोजन में मिलके करीब 2,000 से अधिक मजदूर कर्मचारी, अधिकारी एवं श्रमिकों के परिजन व विधवा बहनों ने भाग लिया था। उस आयोजन में महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने मंच से संबोधित करते हुए कहा था कि जिस तरह उज्जैन की मिल के श्रमिकों को ब्याज सहित पैसा मिला है। उसी तरह हुकम चंद मिलके श्रमिकों को भी ब्याज सहित पैसा अवश्य मिलेगा। लेकिन अब मध्य प्रदेश गृह निर्माण मंडल भोपाल ब्याज नहीं देने की बात कर रहे हैं। मिल नेता श्रीवंश ने बताया कि एक माह पूर्व महापौर के साथ बैठक हुई उस बैठक में यूनियन प्रतिनिधियों और मजदूरों के दौनो वकील गिरीश पटवर्धन, एवं धीरज सिंह पवार भी शामिल थे। उस दिन की चर्चा में महापौर ने कहा था कि शहर हित में आप लोग भी त्याग करो तो हमने केवल मिल पर शासकीय परिसमापक कि नियुक्ति दिनांक 20, जुलाई 2001 तक का ब्याज ही मांग रहे हैं जो 88 करोड़ रुपए बनता है। शासकीय परिसमापक की नियुक्ति के बाद से आज तक का ब्याज 92 करोड़ रुपए से अधिक होता है। वह ब्याज हमने शहर के हित में छोड़ने की बात कही थी। इसके बाद भी वह मंडल हमे ब्याज नहीं देना चाहता है।



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