1980 में हुए मुरादाबाद दंगों की जांच आयोग की रिपोर्ट योगी सरकार ने की सार्वजनिक, RSS को क्लीनचिट, मुस्लिम लीग के नेताओं पर आरोप

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Chandresh Sharma
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1980 में हुए मुरादाबाद दंगों की जांच आयोग की रिपोर्ट योगी सरकार ने की सार्वजनिक, RSS को क्लीनचिट, मुस्लिम लीग के नेताओं पर आरोप

Lucknow. साल 1980 में यूपी के मुरादाबाद में हुए दंगों की जांच के लिए बैठाए गए आयोग की जांच रिपोर्ट को 43 साल बाद योगी सरकार ने सार्वजनिक कर दिया है। इस रिपोर्ट को सरकार ने 8 अगस्त को विधानसभा में पेश किया था। इस रिपोर्ट के आने के बाद सियासत का दौर शुरु हो चुका है। दरअसल रिपोर्ट में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को क्लीन चिट दी गई है वहीं मुस्लिम लीग के नेताओं को साजिशकर्ता बताया गया है। वहीं मुस्लिम लीग जिसे कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सेक्युलर करार दिया था। 43 साल पहले ईद की नमाज के बाद मुरादाबाद में जो दंगे भड़के उसके असली गुनहगार के रूप में मुस्लिम लीग के डॉ शमीम अहमद खान की पहचान जांच आयोग ने की है। साल 1989 में खान जनता दल से विधायक भी निर्वाचित हुए थे। आरोप है कि चुनाव में लगातार मिल रही हार के चलते मुस्लिमों की सहानुभूति पाने के लिए दंगे भड़काए गए थे। 



मुस्लिमों को वोटबैंक समझने वालों को हतोत्साहित करना जरूरी




बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस एमपी सक्सेना ने अपनी जांच रिपोर्ट में यह सुझाव दिया था कि मुस्लिमों को वोट का खजाना समझने वालों को हतोत्साहित करना बेहद आवश्यक है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि पाकिस्तान से वीजा लेकर आए लोगों को समय सीमा समाप्त होते ही तुरंत वापस भेजा जाए। 




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  • जांच रिपोर्ट का मजमून




    जस्टिस खन्ना की अगुवाई में चली जांच की रिपोर्ट यह बयान करती है कि शमीम अहमद खान ने वाल्मीकि, सिख और पंजाबी समाज को फंसाने के लिए 13 अगस्त 1980 को ईद की नमाज के बीच सुअरों को धकेलवा दिया था। इसके बाद यह अफवाह भी फैलाई गई कि मुस्लिम बच्चों और महिलाओं का कत्लेआम किया जा रहा है। जिसके बाद ईदगाह समेत मुरादाबाद के 20 मोहल्लों में दंगे भड़क गए थे। दंगों में पुलिस और हिंदुओं को निशाना बनाया गया था। बाद में यह हिंसा संभल, अलीगढ़, बरेली और इलाहाबाद तक फैल गई थी। 




    वीपी सिंह थे मुख्यमंत्री




    जब 1980 में उत्तरप्रदेश में यह दंगे भड़के उस दौरान विश्वनाथ प्रताप सिंह मुख्यमंत्री थे। सरकार ने दंगों की जांच डीएम बीडी अग्रवाल को सौंपी थी, बाद में न्यायिक आयोग का गठन किया गया था। आयोग ने 3 साल बाद ही राज्य सरकार को रिपोर्ट सौंप दी थी, लेकिन किसी भी दल ने इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया था। कई बार मंत्रिमंडल के सामने रिपोर्ट को पेश कर सदन में रखने की मंजूरी मांगी गई लेकिन तुष्टिकरण की राजनीति के चलते इसे सार्वजनिक नहीं किया गया था। 



    आरएसएस को क्लीन चिट




    बता दें जांच आयोग ने तत्कालीन समय में ही दंगों में आरएसएस की संलिप्तता को खारिज कर दिया था। रिपोर्ट में कहा गया था कि दंगों में कोई भी सरकारी अधिकारी-कर्मचारी या हिंदू उत्तरदायी नहीं था। बीजेपी और संघ की भी संलिप्तता नहीं थी। दंगों में शमीम के नेतृत्व वाली मुस्लिम लीग और हामिद हुसैन अज्जी के समर्थक और भाड़े पर बुलाए गए लोग ही शामिल थे। आयोग ने पीएसी और पुलिस पर लगे आरोप भी खारिज कर दिए। जांच में पाया गया कि ज्यादातर मौतें पुलिस फायरिंग में नहीं बल्कि भगदड़ में हुई थीं। बता दें कि इन दंगों में 84 लोगों की जान गई थी वहीं 112 लोग घायल हुए थे।


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