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- देश की अदालतों में 5.25 करोड़ से अधिक केस लंबित हैं।
- इनमें 85% यानी लगभग 4.5 करोड़ मामले जिला अदालतों में हैं।
- अदालतों के इसी बोझ को कम करने दिल्ली सरकार ने नया मॉडल लागू किया है।
- अब जेल की बजाय सामुदायिक सेवा (Community Service) भी सजा का विकल्प होगी।
दिल्ली सरकार ने भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 के प्रावधानों के तहत छोटे-मोटे अपराधों में दोषी पाए गए लोगों को अब जेल भेजने की बजाय समाज के लिए उपयोगी काम सौंपने की दिशा में एक अहम कदम उठाया है।
गृह विभाग जारी आदेश में 12 तरह की सामुदायिक सेवाओं की सूची जारी की गई है, जिन्हें अदालतें सजा के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल कर सकेंगी।
क्या है सामुदायिक सेवा का मकसद?
देश की अदालतें इस समय करोड़ों ऐसे मुकदमों से जूझ रही हैं जो पहली बार चोरी, सार्वजनिक जगह पर नशा, आत्महत्या का प्रयास, या मानहानि जैसे मामूली अपराधों से जुड़े हैं।
इन मामलों में आमतौर पर आरोपी को जेल भेजा जाता है या जुर्माना लगाया जाता है। इससे न्यायिक प्रणाली पर बोझ बढ़ता है और गंभीर अपराधों की सुनवाई में देरी होती है।
इतना ही नहीं जेलों को भी ऐसे कैदियों पर बड़ा खर्च करना पड़ता है। अब सामुदायिक सेवा के जरिए अदालतों को विकल्प मिलेगा कि वे ऐसे मामलों को जल्दी निपटा सकें — बिना लंबी कानूनी प्रक्रिया और जेल की सजा के।
दिल्ली सरकार ने की पहल
दिल्ली सरकार के गृह विभाग ने 12 सामुदायिक सेवाओं को अधिसूचित किया है, जिन्हें अदालत छोटे-मोटे अपराधों के दोषी व्यक्तियों को सौंप सकती है।
इनमें अस्पताल के वार्डों और परिधीय क्षेत्रों की सफाई और रखरखाव, सड़कों के किनारे की घास-फूस हटाना, सार्वजनिक पार्कों और स्थानों की सफाई और सार्वजनिक पुस्तकालयों में पुस्तकों को व्यवस्थित करना या उन पर जिल्द चढ़ाना आदि शामिल है।
गजट नोटिशिकेशन में विभाग ने कहा कि उच्च न्यायालय ने सामुदायिक सेवा को दंड के रूप में देने के लिए दिशा-निर्देश बनाए हैं।
अधिसूचना में कहा गया है, "इनका उद्देश्य भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 4 (एफ) के तहत सामुदायिक सेवा के किसी अन्य तरीके को देने में न्यायालय के विवेक को कम करना नहीं है।"
विभाग ने इन सामुदायिक सेवाओं यानी कम्युनिटी सर्विस की अवधि भी निर्धारित की है, जो एक दिन से लेकर 31 दिन या 40 घंटे से लेकर 240 घंटे तक है।
कम्युनिटी सर्विस (Community Service) का उद्देश्य
अदालतों में अधिकतर केस मामूली अपराधों से जुड़े होते हैं। जैसे:
- पहली बार चोरी, सार्वजनिक नशा, आत्महत्या प्रयास, मानहानि आदि।
- इन मामलों में जेल या जुर्माना ही सज़ा होती है।
- इससे न्याय व्यवस्था (judicial system) पर अतिरिक्त दबाव बनता है।
- जेलों पर भी अनावश्यक खर्च और भीड़ का बोझ पड़ता है।
- अब अदालतें इन मामलों का निपटारा जल्दी कर सकेंगी।
- इसके लिए लंबी सुनवाई और जेल की ज़रूरत नहीं होगी।
सेवाओं की सूची में शामिल कार्य
- अस्पतालों के वार्डों और क्षेत्रों की सफाई/रखरखाव (maintenance)
- दुर्घटना या बाह्य रोगी प्रबंधन (OPD assistance)
- ट्रॉली और मरीजों को ले जाने में सहयोग
- डॉक्टरों द्वारा दिए गए चिकित्सा सहयोग के कार्य
- कानूनी सहायता क्लीनिक या पुस्तकालय की सफाई
- किताबों की सूची बनाना, जिल्द चढ़ाना या फाइलिंग कार्य
- स्कूलों व प्रयोगशालाओं की सफाई
- नगर सफाई अभियान में भागीदारी
- सड़क किनारे की घास हटाना
- भवनों की सफाई या रखरखाव
- भीड़ और ट्रैफिक नियंत्रण (crowd & traffic regulation)
- पुलिस थाने की सफाई व सामान्य सहायता
सेवा की अवधि क्या होगी?
एक दिन से 31 दिन तक सेवा दी जा सकती है।
या फिर 40 से 240 घंटे तक की सामुदायिक सेवा तय होगी।
सजा देने का आधार क्या होगा?
- BNS की धारा 4(एफ) [Section 4(F)] में यह प्रावधान जोड़ा गया है।
- मजिस्ट्रेट यह तय करेंगे कि आरोपी सेवा के योग्य है या नहीं।
- निर्णय अपराध की प्रकृति और आरोपी की पृष्ठभूमि देखकर होगा।
किन अपराधों पर लागू होगी सामुदायिक सेवा?
- ₹5,000 से कम की पहली बार की चोरी (धारा 303(2))
- आत्महत्या का प्रयास (धारा 226)
- सार्वजनिक नशा और हंगामा (धारा 355)
- मानहानि (धारा 356(2))
- लोक सेवक का गैरकानूनी व्यापार (धारा 202)
- इन मामलों में जेल नहीं, सामुदायिक सेवा दी जा सकती है।
अदालतों पर छोटे केसों का बोझ
देश की अदालतों में छोटे अपराधों (जैसे पहली बार चोरी, सार्वजनिक जगह पर नशा, मानहानि, आत्महत्या का प्रयास, लोक सेवकों द्वारा अनधिकृत व्यापार आदि) के लाखों केस लंबित हैं।
ऐसे मामूली मामलों में अक्सर आरोपी को जेल भेजा जाता है या जुर्माना लगाया जाता है, जिससे अदालतों पर बोझ बढ़ता है और जेलों में भीड़ होती है।
इससे गंभीर मामलों की सुनवाई में देरी होती है और न्यायिक प्रक्रिया धीमी पड़ती है।
राज्यवार लंबित केसों की स्थिति (2025)
नीचे देश के प्रमुख राज्यों और उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों की ताजा स्थिति दी गई है, जो इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2025 और नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड के नवीनतम आंकड़ों पर आधारित है।
राज्य/हाईकोर्ट | लंबित केस (2025) |
---|---|
उत्तर प्रदेश (इलाहाबाद HC) | 11.3 लाख+ (इलाहाबाद बेंच: 9.6 लाख+, लखनऊ बेंच: 2.18 लाख+) |
राजस्थान | 6.8 लाख+ |
महाराष्ट्र | 6.6 लाख+ |
तमिलनाडु | 5.3 लाख+ |
मध्य प्रदेश | 4.8 लाख+ |
पश्चिम बंगाल | 4.2 लाख+ |
गुजरात | 3.9 लाख+ |
कर्नाटक | 3.5 लाख+ |
बिहार | 3.2 लाख+ |
ओडिशा | 2.5 लाख+ |
आंध्र प्रदेश | 2.3 लाख+ |
केरल | 2.1 लाख+ |
पंजाब एवं हरियाणा | 2.1 लाख+ |
दिल्ली | 1.7 लाख+ |
झारखंड | 1.2 लाख+ |
छत्तीसगढ़ | 1.1 लाख+ |
तेलंगाना | 1.1 लाख+ |
असम | 1 लाख+ |
सुप्रीम कोर्ट: 81,413 लंबित मामले (अप्रैल 2025 तक)
देश भर में कुल लंबित केस: 5.25 करोड़ से अधिक, जिनमें से 85% यानी लगभग 4.5 करोड़ मामले जिला अदालतों में हैं।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
यूपी में जिला स्तर पर हर जज पर औसतन 4,300 केस लंबित हैं, जबकि कर्नाटक में 1,750 और केरल में 38 केस प्रति जज लंबित हैं।
कई राज्यों में 40% से अधिक केस तीन साल से ज्यादा समय से लंबित हैं, जबकि दिल्ली में हर पांच में से एक केस पांच साल से ज्यादा समय से लंबित है।
यह सूची देश की न्यायिक व्यवस्था में लंबित मामलों के गंभीर बोझ को दर्शाती है और राज्यों के बीच अंतर भी स्पष्ट करती है।
कम्युनिटी सर्विस कैसे मदद करती है?
मामूली अपराधों में जेल या जुर्माने की जगह सामुदायिक सेवा देने से अदालतों का बोझ कम होता है, क्योंकि ऐसे मामलों का निपटारा जल्दी और बिना लंबी सुनवाई के हो सकता है।
सुधारात्मक दृष्टिकोण: अपराधी को समाज के लिए उपयोगी कार्य करने का मौका मिलता है, जिससे उसका पुनर्वास और समाज में पुनः एकीकरण आसान होता है।
जेलों में भीड़ कम होती है और सरकार के संसाधनों की बचत होती है।
न्यायिक विवेक: जज अपराध की प्रकृति, आरोपी की पृष्ठभूमि और परिस्थितियों के अनुसार सामुदायिक सेवा का आदेश दे सकते हैं, जिससे सजा अपराध के अनुपात में होती है।
समाज को सीधा लाभ: सार्वजनिक स्थानों की सफाई, अस्पतालों में सहायता जैसे कार्यों से समाज को भी लाभ होता है।
🧾 क्या है भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 का प्रावधान?
BNS 2023 की धारा 4(एफ) अदालत को यह छूट देती है कि वह छोटे अपराधों में
जेल, जुर्माना या कम्युनिटी सर्विस में से उपयुक्त सजा चुने।
📊 भारत के लिए क्या फायदे होंगे?
- अदालतों पर से केसों का दबाव घटेगा
- गंभीर मामलों की सुनवाई तेज़ होगी
- जेलों की भीड़ कम होगी
- सरकारी संसाधनों की बचत
- दोषियों को समाज से जुड़ने का मौका मिलेगा
किन देशों में कम्युनिटी सर्विस के ऐसे नियम हैं?
अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका आदि देशों में सामुदायिक सेवा को मामूली और गैर-हिंसक अपराधों के लिए दंड के रूप में व्यापक तौर पर अपनाया गया है।
इन देशों में सामुदायिक सेवा का उद्देश्य अपराधियों का पुनर्वास और जेलों में भीड़ को कम करना है। साथ ही, यह सजा अपराध की गंभीरता के अनुरूप होती है और समाज के लिए लाभकारी होती है।
📝 निष्कर्ष
दिल्ली सरकार की यह पहल केवल कानूनी बदलाव नहीं है, यह न्याय व्यवस्था को मानवीय और व्यावहारिक बनाने की दिशा में एक ठोस कदम है।
छोटे अपराधों के मामलों को सुधारात्मक नज़रिए से देखना — यही असली सुधार है। और यह वही दिशा है, जो एक जिम्मेदार न्याय प्रणाली की ओर इशारा करती है।
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