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भारत में स्वास्थ्य देखभाल के खर्चों को लेकर आम जनता अक्सर चिंतित रहती है। यही कारण है कि भारत सरकार ने जन औषधि योजना (Jan Aushadhi Yojana) शुरू की, जो सस्ती और गुणवत्ता वाली दवाइयों का एक प्रभावी विकल्प प्रदान करती है।
इस योजना ने लाखों लोगों को वह दवाइयां उपलब्ध कराई हैं, जो वे ब्रांडेड दवाइयों की तुलना में बहुत सस्ती कीमत पर प्राप्त कर सकते हैं। बड़ी बात ये है कि धीरे- धीरे लोग जेनरिक दवाओं को अपनाने लगे हैं। आज thesootr Prime में हम इसी विषय पर अपनी समझ को बढ़ाने की कोशिश करेंगे।
पहले मनीकांत ठाकुर का अनुभव जानते हैं
मनीकांत ठाकुर और उनकी पत्नी दोनों मधुमेह (diabetes) और उच्च रक्तचाप (hypertension) के मरीज हैं। पिछले साल तक, वे अपनी दवाओं पर लगभग 2,000 रुपए प्रति माह खर्च करते थे, जो उनके परिवार के लिए एक बड़ा खर्च था। लेकिन, दिसंबर 2021 में ठाकुर की नौकरी चली गई और उन्हें तुरंत नए विकल्पों की तलाश करनी पड़ी।
इससे पहले उनके परिवार के डॉक्टर ने उन्हें जेनेरिक दवाओं से दूर रहने की सलाह दी थी, क्योंकि उनका मानना था कि इन दवाओं की गुणवत्ता ब्रांडेड दवाइयों के मुकाबले खराब होती है। लेकिन जब उनके पास खर्च कम करने का विकल्प नहीं था, तो उन्होंने जन औषधि स्टोर से सस्ती दवाइयां खरीदने का फैसला किया।
ठाकुर ने बताया, "हमने अपने पारिवारिक डॉक्टर की सलाह के खिलाफ जाकर जन औषधि स्टोर से दवाइयां खरीदीं, क्योंकि हर एक पैसा मायने रखता था। अब लगभग छह महीने से हम इन दवाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं और हमारा ब्लड शुगर और रक्तचाप दोनों नियंत्रण में हैं।"
भारत में तीन तरह की दवाओं का कारोबार
दवाओं को तीन प्रमुख श्रेणियों में बांटा जा सकता है:
- जेनेरिक दवाइयां: यह दवाएं विशिष्ट ब्रांड नाम की बजाय उनके रासायनिक नाम से बेची जाती हैं। इनमें वही सक्रिय तत्व होते हैं जो ब्रांडेड दवाइयों में होते हैं, लेकिन इनकी कीमत बहुत कम होती है। क्योंकि इनकी पैकेजिंग और मार्केटिंग में कंपनियां खर्च नहीं करतीं।
- ब्रांडेड जेनेरिक दवाइयां: इनमें वही सक्रिय तत्व होते हैं जैसे जेनेरिक दवाइयों में, लेकिन इन दवाओं को एक ब्रांड नाम के तहत बेचा जाता है। इनकी कीमत ब्रांडेड दवाइयों से कम होती है, लेकिन जेनेरिक दवाइयों की तुलना में थोड़ी अधिक हो सकती है। भारत में सबसे ज्यादा यही दवाएं बिक रही हैं, लेकिन भारी कीमतों पर
- ब्रांडेड दवाइयां: ये दवाएं मूल निर्माताओं द्वारा विकसित और विपणन की जाती हैं। इनकी कीमत काफी अधिक होती है क्योंकि इन पर भारी मार्केटिंग और विज्ञापन खर्च होते हैं।
जन औषधि योजना का महत्व
भारत सरकार ने 2008 में जन औषधि योजना की शुरुआत की थी, जिसका उद्देश्य सस्ती कीमतों पर गुणवत्ता वाली जेनेरिक दवाइयां उपलब्ध कराना था। यह योजना विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है, जिनके पास महंगी दवाइयां खरीदने का बजट नहीं है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस योजना के तहत उपलब्ध दवाइयों की संख्या में 2014-15 तक तेजी से वृद्धि हुई थी। वर्तमान में, देशभर में 1,000 से अधिक जन औषधि स्टोर हैं, जिनकी बिक्री करीब 7.5 करोड़ रुपए तक पहुंच चुकी है।
WHO से तय होती है गुणवत्ता
प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि योजना (पीएमबीजेपी) के सीईओ रहे रवि दधीच बताते हैं कि इस योजना के तहत बिकने वाली दवाइयों का गुणवत्ता परीक्षण विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा प्रमाणित आपूर्तिकर्ताओं से किया जाता है। इसके अलावा, दवाइयों के प्रत्येक बैच का परीक्षण राष्ट्रीय आयोग द्वारा मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं में किया जाता है।
गुणवत्ता में सुधार
जन औषधि स्टोर्स पर बिकने वाली दवाइयों की गुणवत्ता को लेकर शुरुआती दिनों में बहुत शंका थी, लेकिन सरकार ने इस शंका को दूर करने के लिए कई उपाय किए हैं। हाल ही में इन दवाइयों की पैकेजिंग को और आकर्षक बनाया गया है।
इसके अलावा, अब जन औषधि स्टोर पर सैनिटरी पैड, बीपी मॉनिटर, नेबुलाइज़र और थर्मामीटर जैसी अन्य स्वास्थ्य संबंधी चीजें भी उपलब्ध हैं।
सरकार ने डॉक्टरों को भी जेनेरिक दवाइयां लिखने की सलाह दी है, लेकिन कई डॉक्टर अब भी ब्रांडेड दवाइयों को प्राथमिकता देते हैं। डॉक्टरों का मानना है कि ब्रांडेड दवाइयां पहले से परखी और साबित की हुई होती हैं, जबकि जेनेरिक दवाइयां नए विकल्प के रूप में दिखाई देती हैं।
जन औषधि ऐप भी लांच
पीएमबीआई (फार्मास्युटिकल एंड मेडिकल डिवाइसेस ब्यूरो ऑफ इंडिया) ने "जन औषधि सुगम" नामक एक मोबाइल ऐप भी लॉन्च किया है, जो उपयोगकर्ताओं को नजदीकी जन औषधि केंद्र की खोज करने और दवाइयों की उपलब्धता की जानकारी देने में मदद करता है। इस ऐप की मदद से लोग अपने इलाके में उपलब्ध जन औषधि स्टोर को आसानी से ढूंढ सकते हैं और आवश्यक दवाइयां खरीद सकते हैं।
जेनेरिक दवाइयों के फायदे
जेनेरिक दवाइयां ब्रांडेड दवाइयों की तुलना में सस्ती होती हैं, लेकिन इनकी गुणवत्ता पर कोई असर नहीं पड़ता। यह दवाइयां हर मरीज की जरूरत को पूरा करने के लिए समान रूप से प्रभावी होती हैं। उदाहरण के लिए, पैरासिटामोल टैबलेट की बाजार दर ₹33 है, लेकिन जन औषधि स्टोर पर यह ₹15 में मिलती है। इसी प्रकार, एटोरवास्टेटिन गोलियाँ जो कोलेस्ट्रॉल कम करने के लिए इस्तेमाल की जाती हैं, उनकी बाजार दर ₹2147 है, लेकिन जन औषधि स्टोर पर यह ₹12 में उपलब्ध है।
डॉक्टरों और उपभोक्ताओं की प्रतिक्रिया
कई डॉक्टरों का मानना है कि ब्रांडेड जेनेरिक दवाइयां पहले से परखी हुई होती हैं और डॉक्टरों द्वारा इनका उपयोग किया जाता है। लेकिन, डॉ. अनूप मिश्रा, फोर्टिस सी-डॉक के चेयरमैन, का कहना है कि धीरे-धीरे लोगों की सोच में बदलाव आ रहा है और अब 5%-10% मरीज जन औषधि स्टोर से दवाइयां लेने लगे हैं।
क्या बदलने की जरूरत है?
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) के पूर्व अध्यक्ष डॉ. विनय अग्रवाल ने स्पष्ट किया कि डॉक्टर जेनेरिक दवाइयों के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन उनकी गुणवत्ता को लेकर सरकार द्वारा प्रमाणन आवश्यक है। उन्होंने यह भी बताया कि यदि सरकार जेनेरिक दवाइयों के लिए गुणवत्ता सुनिश्चित कर सके, तो इन दवाइयों की स्वीकार्यता और बढ़ सकती है।
जन औषधि योजना ने भारत में दवाइयों के बाजार को सस्ता और सुलभ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि, अभी भी जेनेरिक दवाइयों के प्रति संदेह और नकारात्मकता बनी हुई है, लेकिन सरकारी प्रयासों और जागरूकता अभियानों के साथ, लोग धीरे-धीरे इन्हें अपनाने लगे हैं। आने वाले वर्षों में इस योजना की सफलता और जन औषधि दवाइयों की स्वीकार्यता में और सुधार की संभावना है।
रिफ्रेंस सोर्स:
- प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि योजना (PMBJP)
- स्वास्थ्य मंत्रालय, भारत सरकार
- डॉ. अनूप मिश्रा, फोर्टिस सी-डॉक
- रवि दधीच, पूर्व सीईओ, पीएमबीआई
- महक चंडोक और सरिता गौतम, इंटरनेशनल जर्नल ऑफ फार्मास्युटिकल साइंसेज
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