मांस की बिक्री पर विवाद

author-image
sootr editor
एडिट
New Update
मांस की बिक्री पर विवाद

डॉ. वेदप्रताप वैदिक। दिल्ली की दो नगर निगमों ने अभी एक ऐसी घोषणा की है, जो एकदम नई जरुर है लेकिन तर्कसम्मत बिल्कुल नहीं लगती। उन्होंने आदेश जारी किया है कि नवरात्रि के दिनों में मांस बेचना मना होगा। मांस की बिक्री पर प्रतिबंध इसलिए लगाया जा रहा है कि नवरात्रि के उपवास के दिनों में यह भक्तों के लिए कष्टदायक होता है। मोहल्लों में बनी मांस की दुकानों पर लटके हुए पशुओं के लोथड़ों को देखकर भक्तों के मन में जुगुप्सा पैदा होती है। इसी तरह की मांग मध्यप्रदेश, कर्नाटक और उत्तरप्रदेश की सरकारों से भी की जा रही है। मांस की दुकानें भारत में हो ही नहीं और कोई भी भारतीय मांस न खाए, यह तो मैं तहे-दिल से चाहता हूं लेकिन नवरात्रि के बहाने मांस की दुकानें बंद करवाने की बात बिल्कुल भी गले नहीं उतरती है। 





रोजगार छिनना मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन 





किसी हिंदू त्यौहार पर मांस की दुकानें बंद करवाने में सांप्रदायिक संकीर्णता की बदबू आती है। क्या मुसलमानों की यह मांग घोर सांप्रदायिक नहीं मानी जाएगी कि रमजान के महिने में सारे भारत के भोजनालय दिन के समय बंद रखे जाएं? भारत के जितने मुसलमान मांसाहारी हैं, उनमें दुगुनी-तिगुनी संख्या के हिंदू लोग मांसाहारी हैं। जिन हिंदू और मुसलमानों की मांस की दुकानें हैं, यदि उनका काम-धंधा 8-10 दिन बंद रहेगा तो क्या नगर निगम या सरकारें उसका मुआवजा उन्हें देगी? यदि नहीं तो किसी नागरिक का रोजगार छीनने का हक सरकार को कैसे दिया जा सकता है? यह तो संविधान में प्रदत्त मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन है। यदि इस तरह के मनमाने आदेश का उल्लंघन करने वालों को शासन दंडित करेगा तो वे अदालत के दरवाजे खटखटाएंगे और अदालतें ऐसे आदेशों को रद्द कर देंगी लेकिन इस तरह के आदेश जारी होने पर दो तरह की प्रतिक्रियाएं होती हैं। 





मामले का सांप्रदायीकरण नहीं होना चाहिए





एक तो यह कि डर के मारे मांस-विक्रेता अपनी दुकानें अपने आप बंद कर देते हैं और यदि वे बंद न करें तो अपने आप को हिंदूवादी कहने वाले स्वयंसेवक उन दुकानदारों पर टूट पड़ते हैं। याने सारे मामले का सांप्रदायीकरण हो जाता है। यह बात छोटी-सी है लेकिन यह दूर तलक जा सकती है। यह सांप्रदायिक दंगों का रूप धारण कर सकती है। कोई नागरिक क्या खाता है, क्या पहनता है, क्या सोचता है, क्या यह भी सरकार तय करेगी? इन कामों में किसी भी सरकार को अपनी टांग नहीं अड़ानी चाहिए। मांस की खुले-आम बिक्री के दृश्य कितने भयानक और वीभत्स होते हैं, आपको यह देखना हो तो ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान जैसे देशों में जाकर देखिए। वहां घोड़ों, ऊटों और गायों की चमड़ी उतारकर पूरा का पूरा लटका दिया जाता है। मांस के बाजारों में इतनी बदबू होती है कि उनसे गुजरने में भी तकलीफ होती है। मांस-भक्षण न स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है और न ही नैतिक दृष्टि से उचित है। उसे कानून से नहीं, समझाइश से रोका जाना चाहिए। मेरे हिंदू, मुसलमान, ईसाई, सिख और यहूदी मित्रों से मैं हमेशा पूछता हूं कि बताइए आपके धर्मग्रंथ में कहां लिखा है कि आप यदि मांस नहीं खाएंगे तो आप घटिया धर्मप्रेमी कहलाएंगे? कई मुस्लिम देशों के और भारत के मेरे लाखों परिचितों में से किसी एक ने भी आज तक कानून के डर से मांस खाना नहीं छोड़ा है लेकिन ऐसे सभी धर्मों के हजारों लोगों को मैं जानता हूं, जिन्होंने प्रेमपूर्ण समझाइश के कारण मांसाहार से मुक्ति पा ली है।



Navratri नवरात्रि दिल्ली नगर निगम Muslim Hindu हिंदू डॉ. वेदप्रताप वैदिक Dr. Ved Pratap Vaidik मांस बेचना मना मांस की बिक्री पर प्रतिबंध रमजान का महीना Municipal Corporation of Delhi Forbidden to Sell Meat Ban on Sale of Meat Month of Ramzan