अग्निपथ के लिए देश में पहली जरूरत शिक्षक सेना की

author-image
Praveen Sharma
एडिट
New Update
अग्निपथ के लिए देश में पहली जरूरत शिक्षक सेना की

केंद्र सरकार ने दस लाख लोगों को रोजगार देने की महत्वपूर्ण घोषणा की, लेकिन इनमें से केवल 44 हजार को हर साल सेना में भर्ती के लिए 'अग्निपथ सेवा' योजना को लेकर राजनीतिक आग बरस गई है। इरादा अच्छा रहे, लेकिन उसके पहले विभिन्न स्तरों पर तैयारी की कमी से ऐसे विवाद के खतरे होते हैं। पुराने ढर्रे को बदलना समाज में थोड़ा कठिन होता है। सेना की नौकरी चुनौतीपूर्ण और खतरों से भरी होती है, लेकिन लाखों लोग सेना, अर्द्ध सैनिक बल और पुलिस में भर्ती होते हैं। इसलिए उनके  वेतन, भत्ते, पेंशन और अन्य सुविधाओं में कोई कमी नहीं होती। फिर सेना का एक वर्ग 40 की उम्र में रिटायर होकर अन्य क्षेत्रों में सक्रिय हो सकता है। इस दृष्टि से अग्निपथ योजना में केवल चार साल बाद ही अन्य क्षेत्रों में अनुशासित और ईमानदार जीवन बिताने के प्रस्ताव से एक वर्ग विचलित है। इस योजना के लाभ हानि, समर्थन, विरोध का सिलसिला कुछ समय तो चलने वाला है। समाज और सरकारों या सेना और न्याय पालिका का यह लक्ष्य सही है कि देश  की नई पीढ़ी को ईमानदारी और राष्ट्र सेवा के लिए तैयार किया जाना चाहिए, लेकिन सेना के माध्यम से ही अपेक्षा उचित नहीं लगती। असली आवश्यकता किसी भी क्षेत्र में काम करने के लिए शिक्षा और शैक्षणिक काल से अनुशासन और संस्कार देने की है। तब सड़कों पर अकारण उन्माद, हिंसा, अपराध और आतंकवाद से जुड़ने के खतरे बहुत कम हो सकते हैं।



हमसे अधिक हमारे पिता, दादाजी प्रसन्न होते। बचपन से उन्हें इस बात पर गुस्सा होते देखा-सुना था कि अंग्रेज चले गए, लेकिन हमारी शिक्षा व्यवस्था का भारतीयकरण नहीं हुआ। पिता शिक्षक थे और माँ को प्रौढ़ शिक्षा से जोड़ रखा थां। उनकी तरह लाखों शिक्षकों के योगदान से भारत आगे बढ़ता रहा, लेकिन उनके सपनों का भारत बनाने का क्रांतिकारी महायज्ञ अब शुरू होना है। पहले हम जैसे लोग प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी, उनके मंत्रियों, सचिवों से सवाल कर रहे थे कि नई शिक्षा नीति आखिर कब आएगी? लगभग ढाई लाख लोगों की राय, शिक्षाविदों के गहन विचार विमर्श के बाद हाल ही में नई  शिक्षा नीति घोषित कर दी गई। मातृभाषा, भारतीय भाषाओँ को सही ढंग से शिक्षा का आधार बनाने और शिक्षा को जीवोपार्जन की दृष्टि से उपयोगी बनाने के लिए नई नीति में सर्वाधिक महत्व दिया गया है। केवल अंकों के आधार पर आगे बढ़ने की होड़ के बजाय सर्वांगीण विकास से नई पीढ़ी का भविष्य तय करने की व्यवस्था की गई है।



शिक्षा से जोड़ा जाए समानता का भाव



संस्कृत और भारतीय भाषाओँ के ज्ञान से सही अर्थों में जाति, धर्म, क्षेत्रीयता से ऊंचा उठकर सम्पूर्ण  समाज के उत्थान के लिए भावी पीढ़ी को जोड़ा जा सकेगा। अंग्रेजी और विश्व की अन्य भाषाओँ को भी सीखने, उसका लाभ देश दुनिया को देने पर किसीको आपत्ति नहीं हो सकती। बचपन से अपनी मातृभाषा और भारतीय भाषाओँ के साथ जुड़ने से राष्ट्रीय एकता और आत्म निर्भर होने की भावना प्रबल हो सकेगी। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर को अनुच्छेद 370 से मुक्त करने के बाद यह सबसे बड़ा क्रांतिकारी निर्णय किया है। महायज्ञ होने पर आस पास मंत्रोच्चार के साथ बाहरी शोर भी स्वाभाविक है। सब कुछ अच्छा कहने के बावजूद कुछ दलों, नेताओं अथवा संगठनों ने शिक्षा नीति पर आशंकाओं के साथ सवाल भी उठाए हैं। कुछ नियामक व्यवस्था नहीं रखी जाएगी तब तो अराजकता होगी। राज्यों के अधिकार के नाम पर दुनिया के किस देश में अलग अलग पाठ्यक्रम और रंग ढंग होते हैं। प्रादेशिक स्वायत्तता का दुरुपयोग होने से कई राज्यों के बच्चे पिछड़ते गए। इसी तरह जाने माने लोग भी निजीकरण को बढ़ाए जाने का तर्क दे रहे हैं। वे क्यों भूल जाते हैं कि ब्रिटैन, जर्मनी, अमेरिका जैसे देशों में भी स्कूली शिक्षा सरकारी व्यवस्था पर निर्भर है। निजी संस्थाओं को भी छूट है, लेकिन अधिकांश लोग कम खर्च वाले स्कूलों में ही पढ़ते हैं। तभी वहां वर्ग भेद नहीं हो पता। मजदूर और ड्राइवर को भी साथ में टेबल पर बैठकर खिलाने में किसी को बुरा नहीं लगता। हां यही तो भारत के गुरुकुलों में सिखाया जाता था। राजा और रंक समान माने जाते रहे।



सबसे पहले शिक्षकों की भर्ती पर किया जाए फोकस



हाँ यह तर्क सही है कि नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन के लिए सरकार धन कहां से लाएगी और शिक्षकों का पर्याप्त इंतजाम है या नहीं? एक सरकारी रिपोर्ट में स्वीकारा गया है कि देश में लगभग दस लाख शिक्षकों की जरुरत है। विभिन्न राज्यों में स्कूल खुल गए, कच्ची पक्की इमारत भी बन गई, लेकिन शिक्षकों की भारी कमी है। पिछले महीने एक घोषणा करीब 59 हजार नए शिक्षकों की भर्ती के लिए हुई है। यह संख्या पर्याप्त नहीं कही जा सकती है। इसलिए पहले देश को शिक्षकों की सेना की जरूरत है। अग्निपथ योजना को कुछ लोग इसराइल जैसे कुछ देशों में रही सैन्य शिक्षा के अनुरूप बता रहे हैं। जबकि भारतीय परिस्थिति में थोड़े से परिवर्तन से कई दूरगामी राष्ट्रीय हित पूरे हो सकते हैं | शैक्षिक जीवन से कम उम्र में अनुशासन के संस्कार के लिए एनसीसी (नॅशनल कैडेट कोर)का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वर्तमान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के जीवन और सफलता का एक बड़ा आधार उनका एनसीसी में रहना माना जाता है।



एनसीसी और एनएसएस का ढांचा हो मजबूत



भारत चीन युद्ध के बाद 1963 में शिक्षा के साथ एनसीसी का प्रशिक्षण अनिवार्य किया गया, लेकिन 1968 में व्यवस्था बदली और इसे स्वैच्छिक कर दिया गया। जबकि अनुशासन और एकता का संस्कार बचपन से मिलने का लाभ जीवन भर समाज और राष्ट्र को भी मिलता है। स्कूलों और कालेजों में एनसीसी का प्रावधान अधिक है। क्रिकेट को बड़े पैमाने पर आकर्षक बना दिया गया हैै। एनसीसी में सेना के तीनों अंगों- जल, थल, वायु सेना के लिए प्रारम्भिक प्रशिक्षण की सुविधा है। छात्र जीवन में एनसीसी के किसी भी क्षेत्र से तैयार हुए युवा सेना ही नहीं विभिन्न क्षेत्रों में सफल होते हैं। इसी तरह एक एनएसएस ( राष्ट्रीय सेवा योजना ) भी है। इससे भी छात्र जीवन में सामाजिक क्षेत्र में सेवा का महत्व समझ में आता है। जर्मनी जैसे संपन्न लोकतांत्रिक देश में किसी भी युवा को कालेज की शिक्षा की डिग्री तब तक नहीं मिलती है, जब तक उसने शिक्षा के दौरान एक साल सैन्य प्रशिक्षण या प्रामाणिक ढंग से सामाजिक सेवा नहीं की हो। इस मुद्दे पर मैं स्वयं कई मंचों पर अथवा, नेताओं और अधिकारियों से चर्चा करता रहा हूं। तब एनसीसी अथवा सेना से जुड़े अधिकारी भी यह तर्क देते हैं कि एनसीसी संगठन के पास सभी शैक्षणिक संस्थाओं में एनसीसी के प्रावधान के लिए पर्याप्त बजट नहीं है। तब मेरा तर्क है कि देश की नींव और भविष्य को मजबूत करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के अलावा आर्थिक प्रगति के साथ तेजी से सम्पन कारपोरेट कंपनियों, व्यापारिक संस्थानों और कुछ राज्यों के अति संपन्न धार्मिक ट्रस्टों के आर्थिक सहयोग से किसी भी निश्चित समयावधि में एनसीसी की अनिवार्यता को लागू करने का इंतजाम हो सकता है। इसका लाभ भविष्य में सेना की भर्ती के लिए भी हो सकेगा और अनुशासित युवा विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दी सकेंगे। 

( लेखक आई टी वी नेटवर्क - इंडिया न्यूज़ और आज समाज दैनिक के सम्पादकीय निदेशक हैं )


विचार मंथन राष्ट्रीयता अग्निपथ Agneepath education policy शिक्षा नीति एनसीसी एनएसएस समानता शिक्षकों के पदों पर पूर्ति NCC NSS Equality Nationality Fulfillment on the posts of teachers