ये तो कमाल की बात हुई, पुलिसवालों ने करवा चौथ का पानी उतार दिया। चौराहों पर यातायात के बैनर में लिखा-
हेलमेट पहनिए,
सीटबेल्ट बांधिए..
करवा चौथ के भरोसे मत रहिए।
एक भाई ने लिखा कि साल में एक दिन यही तो है, जब उम्र को रिचार्ज कराने का मौका मिलता है। पुलिस ने भाई की जिजीविषा को धूलधूसरित कर दिया, करवा चौथ के मुकाबले हेलमेट, सीटबेल्ट की बात करके।
बेवजह परेशान पुरुष की दास्तानें
मैंने रिपोर्टर से पूछा- अपनी पुलिस क्या वाकई इतनी प्रोग्रेसिव हो गई है..? रिपोर्टर ने बताया नहीं जी, बात ये नहीं है। बैनर लिखने और लिखवाने वाले दोनों की बीवियां करवां चौथ व्रत थीं। प्राब्लम ये थी कि इस साल के करवाँ चौथ का पैकेज उनकी हैसियत से बाहर का था। दोनों ही अपनी बीबियों से यही तर्क देकर कि तुम्हारे उपासने से अपनी उमर बढ़ने वाली नहीं, झगड़ के आए थे। और चौराहों पर बैनर लगाकर अपना फ्रस्टेशन निकाल लिया। सही बात है- बॉस जिस दिन बीवी से लड़कर आता है, उस दिन मातहतों की दिनभर ऐसी-कम-तैसी करता है। स्कूल में मास्साब की आंखें जिस दिन लाल और हाथ में सड़ाका होता था, हम बच्चे भी समझने देर नहीं लगाते थे कि आज गुरुआइन दाई ने इनकी अच्छे से लू उतारी होगी।
पुराणों के ज्यादातर उपदेश महिलाओं के हिस्से
करवां चौथ की पूजा कराकर लौट रहे पंड्डिज्जी से मैंने पूछा- क्या तीज और करवा चौथ से वाकई पतियों की उमर बढ़ती है..। अचकचाए पंड्डिज्जी ने जवाब दिया कि पुराणों में तो फुल गारंटी के साथ यही लिखा है, बाकी यमराज जानें। हमारी संस्कृति के सभी कर्मकांड, व्रत और उपवास पुराणों में वर्णित हैं। एक दो को छोड़ प्रायः सभी पुराण दूसरी से दशवीं शताब्दी के बीच लिखे गए हैं। पुराणों के सबसे ज्यादा उपदेश महिलाओं के हिस्से आए हैं। मार्कडेय पुराण में कथा है कि एक पतिव्रता अपने कोढ़ी पति को तीर्थयात्रा कराने भ्रमण पर निकलती है। वह बाजार से निकल रही होती है कि उसके कोढ़ी पति का दिल एक वैश्या पर आ जाता है। वह अपनी फरमाइश पत्नी के समक्ष रखता है। पत्नी पतिव्रता जो ठहरी सो वैश्या से पति को यौनतुष्ट करने की गुजारिश करती है। यह तो पराकाष्ठा हुई न।
महिलाओं को हमेशा उपदेश का पाठ, हर जगह बंधन
ऐसी बहुत सी कथाएं हैं जिनमें महिलाओं को उपदेश दिया गया है कि पति भले कितना भी लंपट हो, लेकिन उसे परमेश्वर मानना चाहिए। इंद्र तो लंपटता का चरम था, लेकिन उसकी पत्नी शची से कभी झगड़ा हुआ हो, ऐसा कहीं वर्णित नहीं है। पुरुषों को मौजमस्ती के रास्ते खोले रखने के लिए महिलाओं पर अनुशासन थोपे गए, सरग-नरक की भूलभुलैया में उलझाए रखा गया। आप स्त्रियों के आभूषण तो देखिए, सभी के सभी गुलामी के प्रतीक हैं। ऊँट की तरह नाक छेदा, गैय्या की तरह कान, गले में मंगलसूत्र की जंजीर, तो कलाइयों में हथकड़ीनुमा कड़े, पांव में बेड़ी की भांति पायल (पहले छड़ा गोडहरा)। एक-एक वस्तु गुलामी की प्रतीक, पर उसे आभूषण का नाम देकर ऐसा महिमामंडित किया कि बस इसी गुलामी में उलझी रह गई नारी शक्ति।
वैदिक काल में स्थिति जरा अलग थी, पुरोहितों ने अपने हिसाब से कहानियां गढ़ लीं
मैत्रेयी, गार्गी, भारती, अरुंधती आदि वैदिक काल की महिलाएं इस तरह की गुलामी से मुक्त थीं। वे अपने समकालीन पुरुषों से हर मामले में मुकाबला करने को समर्थ थीं..चाहे शास्त्र से हो या शस्त्र से। पुराण की कथाओं को पुरोहितों और कथावाचकों ने समय-समय पर अपने हिसाब से ट्विस्ट किया। श्रुति और स्मृति परंपरा से आई पुराण कथाओं में समयकाल के हिसाब से क्षेपक जुड़ते गए।
द्रौपदी ने वर्जनाएं तोड़ीं, बाद में स्त्रियों के लिए मानक तय कर दिए गए
डॉक्टर राममनोहर लोहिया नारीमुक्ति के प्रबल पक्षधर थे, इसलिए वे पंच कन्याओं में स्त्री का व्यवहारिक आदर्श देखते थे। द्रौपदी उनकी नजर में सबसे महान और सशक्त महिला थी, जिसने दिलेरी के साथ पुरुष वर्चस्व की वर्जनाएं तोड़ीं और ठप्पे से पांच पतियों के साथ निर्वाह किया। लोहिया कुंती, मंदोदरी, तारा, अहिल्या को भी स्त्री विमर्श के केंद्र पर रखते थे। इसके उलट पुरुषवादी समाज ने ऐसा कथानक रचा कि पत्नी को सती सावित्री या सीता से एक इंच भी कम नहीं होना चाहिए, भले ही पति कितना बड़ा पापी या दुष्कर्मी क्यों न हो।
राम का एकपत्नी व्रत, शंकर सती की लाश लिए तीनो लोकों में घूमते रहे
भगवान राम एक पत्नीव्रत की शपथ लेते हैं। तत्कालीन समाज में जब स्त्री को धन समझा जाता था और राजाओं के अंतःपुर में अनगिनत स्त्रियां रहती थीं, ऐसे में एक पत्नीव्रत की शपथ साधारण बात नहीं थी। राम के आराध्य भगवान शंकर थे जिन्होंने पति और पत्नी के आदर्श को जगत के सामने रखा। शंकर से महान पत्नीव्रता शायद ही सृष्टि में किसी भी धार्मिक मान्यता में कोई हो। सती माता की लाश को कंधे पर टांगे एक विक्षिप्त पति समूचे ब्रह्मांड की परिक्रमा करता है। वह भी देवों का देव महादेव, ईश्वरों का ईश्वर परमेश्वर। नौदुर्गा की सभी देवियां माता सती-पार्वती की अंश हैं। कौन है जो अपनी पत्नी को अपने से भी परमशक्ति के पदपर प्रतिष्ठित करे और स्वयं वीतरागी बना रहे। भवानी-शंकर इसलिए लोक के सबसे करीब और सर्वव्यापी हैं।
पत्नी की लंबी उम्र के लिए पति कोई व्रत रहता है?
समाजवादी चिंतक जगदीश जोशी पति की उम्र और सलामती के लिए पत्नियों के कठिन व्रत के खिलाफ रहते थे। वे हर तीजा-करवा चौथ के अवसर पर विमर्श करते और लेख लिखते थे। जोशी जी का शाश्वत प्रश्न यही रहता था कि क्या पति भी कभी पत्नी की लंबी उमर के लिए कोई धार्मिक यत्न करता है। यदि पति बेइमान, लंपट और चरित्रहीन है तो उसे समय से पहले ही मर जाना चाहिए, उसकी सलामती के लिए व्रत क्यों..? और यदि पति सदाचारी है तो उसे पत्नी के व्रत-उपवास में भी बराबर का भागीदार रहना चाहिए, उसे भी पत्नी की लंबी उम्र की कामना वैसे ही करनी चाहिए। जोशी जी लोहिया की लाइन पर सोचते थे..। विचार आचार-व्यवहार में कभी सहजता से नहीं चढ़ते।
अब तो बाजार ही त्योहार निर्धारित करता है
अपने सभी त्योहार विचार नहीं बाजार से संचालित हैं। बाजार तय करता है कि नौदुर्गा, दशहरा और गरबा कैसे मने। करवा चौथ, छठ और तीजा के मेन्यू भी यही बाजार तय करता है। करोड़ों अरबों का व्यापार इन त्योहारों के मार्फत होता है। टीवी फिल्मों में बॉलीवुड की गणिकाएं अब सती सावित्री और सीता की भूमिका में रोल मॉडल बनकर प्रस्तुत होती हैं। आर्थिक मंदी और भविष्य को लेकर हताशा के इस दौर में करवां चौथ जैसे पर्व एक साधारण नौकरीपेशा व्यक्ति को थरथरा देते हैं। जिस किसी पुलिसिये ने यह लिखा कि लंबी उमर की गारंटी हेलमेट और सीटबेल्ट हैं न कि करवाँ चौथ, शायद ठीक ही लिखा...भगवान उस पुलिसिए को धरमधुरंधरों के कोप से बचाए रखे, मेरी यही प्रार्थना है।