किसी गुट में शामिल हुए बिना आतंकवाद या सीमा के अतिक्रमण को रोकना है लक्ष्य

author-image
एडिट
New Update
किसी गुट में शामिल हुए बिना आतंकवाद या सीमा के अतिक्रमण को रोकना है लक्ष्य

आलोक मेहता। भारतीय सेना के आधुनिकीकरण और कई गुना सशक्त होने और सीमाओं के थल, वायु और जल मार्गों को सुरक्षित करने के लिए हाल के वर्षों में अच्छी प्रगति हुई है। फिर भी चीन, अमेरिका, रूस और यूरोप के बीच राजनीतिक समीकरण निरंतर बदल रहे हैं। वे अपने क्षेत्रीय और आर्थिक हितों के आधार पर भारत के साथ संबंधों में कभी बहुत उत्साहित दिखते हैं, तो कभी दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं, तभी तो रूस के साथ हथियारों के नए समझौतों पर अमेरिका को बड़ी मिर्ची लगी। दूसरी तरफ अमेरिका से पहले हुए सामरिक समझौतों और बढ़ते आर्थिक संबंधों पर रूस को कष्ट हो रहा है...

सुरक्षा तंत्र की गंभीर समीक्षा जरूरी

रूस रक्षा संसाधनों के लिए भारत का बहुत महत्वपूर्ण साझेदार रहा है। इसलिए वह आर्थिक और व्यापारिक क्षेत्र में भी अधिक साझेदारी चाहता है, लेकिन इस समय सबसे नाजुक मुद्दा पाकिस्तान के साथ अफगानिस्तान के तालिबान के प्रति चीन के साथ रूस की सहानुभूति और सहयोग। इतना ही नहीं आतंकवाद के विरुद्ध सारे दावों के बावजूद अमेरिका ने तालिबान से समझौता कर अपने लिए सुरक्षा की गारंटी लेली, लेकिन उसे सत्ता सौंपकर भारत के लिए गंभीर खतरा बढ़ा दिया है। इस दृष्टि से भारत के सुरक्षा तंत्र के लिए नई चुनौतियां आने वाली हैं।
इसमें कोई शक नहीं कि सारे शांति प्रयासों के बावजूद चीन और पाकिस्तान से खतरे कम होने के बजाय बढ़ते जा रहे हैं। इन खतरों से मुकाबले के लिए भारतीय गुप्तचर सेवाओं और सेना के तीनों अंगों के बीच अधिकाधिक तालमेल की आवश्यकता है। सेना में तालमेल और संयुक्त रूप से दुश्मनों का मुकाबला करने के लिए बीस वर्षों तक विचार— विमर्श और आंतरिक खींचातानी के बाद 2019 में जनरल बिपिन रावत को संयुक्त सेना प्रमुख बनाया गया। उन्होंने दो वर्षों में सम्पूर्ण व्यवस्था को एक नई दिशा दी। इन प्रयासों से जम्मू कश्मीर और लद्दाख , अरुणाचल सीमाओं पर चीन तथा पाकिस्तान की घुसपैठ की गतिविधियों को रोकने तथा करारा जवाब देने में सहायता मिली, लेकिन उनके आकस्मिक निधन से इस प्रक्रिया में कुछ गतिरोध आ सकता है। यही नहीं हाल ही में नगालैंड में सेना की असावधानी से 14 सामान्य मजदूरों को मौत का शिकार बनना पड़ा। इस भयावह कांड की जांच और दोषियों को दण्डित करने की कार्रवाई के साथ इस मुद्दे की समीक्षा जरूरी है कि सैन्य टुकड़ी को उग्रवादियों की वहां से आने की गलत सूचना कैसे मिली और उसी मार्ग से सामान्य नागरिकों की गाड़ियां निकलने संबधी सूचनाएं भी स्थानीय प्रशासन से क्यों नहीं मिली ? सीमावर्ती और संवेदनशील इलाकों में विभिन्न सुरक्षा एजेंसियां और गुप्तचर एजेंसियां काम करती हैं। फिर स्थानीय प्रशासन और जनता से सहयोग की आवश्यकता होती है।

गुप्तचर संस्थाओं और सेना में समन्वय जरूरी

इस सन्दर्भ में मुझे करगिल में 1999 में हुई पाकिस्तानी घुसपैठ की घटना पर प्रारम्भिक सूचना याद आती है। तब मैं दिल्ली के एक प्रमुख हिंदी दैनिक का संपादक था। हमारे जम्मू स्थित संवाददाता सुरेश डुग्गर ने सबसे पहले करगिल में घुसपैठ की एक एक्सक्लूसिव खबर भेजी। हमने पहले पृष्ठ पर लगभग तीन चार सौ शब्दों की खबर प्रकाशित कर दी। अगले दिन केंद्र सरकार के रक्षा मंत्रालय ने गहरी आपत्ति के साथ खंडन भेजा। हमने उस खंडन को भी छापा और मैंने अपने संवाददाता को फ़ोन करके नाराजगी के साथ चेतावनी दी। उस समय संवाददाता ने अपने स्पष्टीकरण में यह अवश्य बताया कि उसे यह खबर सेना की अपनी  गुप्तचर सेवा यानी मिलेट्री इंटेलिजेन्स के एक अधिकारी से मिली थी। उस अधिकारी को करगिल में एक गड़रिये से यह सूचना मिली थी। बहरहाल कुछ सप्ताह बाद घुसपैठ की खबर न केवल सही साबित हुई, बल्कि लगभग दो महीने की युद्ध जैसी सैन्य कारवाई - के बाद पाकिस्तानी सैनिकों को मारकर हटाया गया। तब भी यह बात सामने आई थी कि सैन्य इंटेलिजेन्स और अन्य गुप्तचर सेवा में समन्वय नहीं होने से केंद्र की सरकार को ही समय पर सूचना नहीं मिली। फिर अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने के. सुब्रह्मण्यम की अगुवाई में एक समिति का गठन किया। दिसंबर 1999 में समिति ने विस्तृत रिपोर्ट दी। उसी रिपोर्ट में अन्य सिफारिशों के साथ सेना के तीनों अंगों के लिए एक प्रमुख नियुक्त करने की सलाह दी थी। गुप्तचर एजेंसियों में तालमेल का मुद्दा तो पचास वर्षों से चलता रहा है। हम जैसे पत्रकारों को तो ऐसे तथ्य तक मिलते रहे थे, जब एक गुप्तचर सेवा के अधिकारी दूसरी गुप्तचर एजेंसी के अधिकारियों के खिलाफ खबरें तक प्रकाशित करवा देते थे। अपने देश के गुप्तचर तंत्र में अनेक स्रोत हैं। स्थानीय पुलिस, इंटेलिजेंस ब्यूरो, रॉ, आयकर विभाग गुप्तचर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय, कस्टम, सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस और मिलेट्री इंटेलिजेंस... आंतरिक सुरक्षा ही नहीं सीमा सुरक्षा के लिए अन्तर्राष्ट्रीय गुप्तचर सेवा इंटरपोल और मित्र कहे जा सकने वाले देशों की गुप्तचर सेवा से तालमेल की आवश्यकता होती है। इसलिए पहले अपनी एजेंसियों में तालमेल की अनिवार्यता है। जनरल रावत की हेलीकॉप्टर दुर्घटना की जांच में एक बिंदु यह जरूर हो सकता है कि उस क्षेत्र के सुरक्षित होने और मौसम के लिए भी स्थानीय प्रशासन से कितनी सही सूचनाएं मिली या नहीं? 

खुफिया एजेंसियों को मजबूत करने की जरूरत

नगालैंड की घटना एक और बात की याद दिलाती है। पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल जेजे  सिंह ने अपनी आत्मकथा में लिखा है - "हमने वर्षों पहाड़ों और जंगलों की खाक छानी है। हमें कई बार उच्चतर मुख्यालयों के अस्पष्ट, व्यर्थ और अव्यवहारिक आदेशों का पालन करने पड़े, जिसका नुकसान भी हुए। ये प्रयास अधिकांश सटीक सूचना के अभाव में होते थे। हमें आदेश मिलते थे- जंगल को छान मारो, आतंकवादियों को निकाल बाहर करो, क्षेत्र पर कब्ज़ा करो, ढूंढो और तबाह कर दो। मतलब यह कि स्थिति और स्थान की समुचित जानकारी और रणनीति न होने से न केवल सैन्य कार्रवाई विफल होती है , स्थानीय लोग भी अकारण विचलित और सरकार - सेना से नाराज होते हैं | इसलिए ख़ुफ़िया एजेंसियों को अधिक मजबूत करने की जरूरत है। "  (लेखक आई टी वी नेटवर्क - इण्डिया न्यूज़ और दैनिक आज समाज के सम्पादकीय निदेशक हैं)  

Income Tax Department Enforcement Directorate police RAW Customs intelligence bureau Intelligence Department Serious Fraud Investigation Office Military Intelligence