विश्व स्वास्थ्य के किले पर भारतीय पताका का महत्व 

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विश्व स्वास्थ्य के किले पर भारतीय पताका का महत्व 

आलोक मेहता. दुनिया ही नहीं भारत के भी बहुत से लोगों को यह नहीं पता कि जन स्वास्थ्य सुविधा भारत की प्राचीन परंपरा है। विश्व में यह पहला देश है, जहां लगभग 2 हजार साल पहले कानून बनाकर सुनिश्चित किया गया था कि केवल मान्यता प्राप्त डॉक्टर ही अपने आप को डॉक्टर कह सकते हैं। यह पहला देश था जहां मुफ्त सार्वजनिक औषधालयों और अस्पतालों की व्यवस्था की गई थी। ऐसा सम्राट अशोक ने अपने शासनकाल में किया। उन्होंने ही पहले पशु चिकित्सा अस्पताल की स्थापना की थी। इसलिए अब विश्व स्वास्थ्य संगठन में केवल कोरोना महामारी ही नहीं कई संक्रामक रोगों की रोकथाम और जन सामान्य के लिए अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करने के अभियान में हमारी भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है। कोरोना से विचलित दुनिया ने चीन को कटघरे में खड़ा कर दिया। अमेरिका के राष्ट्रपति ने तो चीन पर गुस्सा उतरने के साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन का फंड रोकने की चेतावनी तक दे दी थी। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव ने उन्हें सलाह दी है कि कोरोना के खिलाफ संघर्ष के समय इस तरह का असहयोग-विरोध ठीक नहीं है। इस दृष्टि से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका, रुस, यूरोप, एशिया और अफ्रीका के राष्ट्राध्यक्षों से रहे संबंध और इन देशों के स्वास्थ्य संगठनों से रहे संवाद का लाभ मिल सकेगा। मजेदार बात यह है कि अपने अपराध बोध के कारण चीन को विश्व स्वास्थ्य संगठन के लिए विशेष अनुदान की घोषणा करनी पडी। नहीं तो संगठन के 194 सदस्य देशों में चीन का वार्षिक अनुदान अंश मात्र 0. 21 प्रतिशत है। भारत का अंश उससे अधिक 0.48 प्रतिशत है। चीन पर निर्भर पाकिस्तान तक अपने आका से अधिक अंशदान देता है। अमेरिका संगठन के करीब 444 मिलियन डॉलर के बजट में केवल 15 प्रतिशत योगदान देता है। फिर भी अमेरिका-चीन दादागिरी दिखाते हैं।



विश्व स्वास्थ्य संगठन में सुधार की जरूरत



इसमें कोई शक नहीं कि संयुक्त राष्ट्र के साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन में सुधार की बहुत जरुरत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर यह बात उठाते रहे हैं कि इस संगठन के वर्तमान स्वरुप में सुधार के साथ इन्हें अधिक प्रभावशाली और पूरे मानव समाज के लिए ज्यादा प्रभावशाली उपयोगी बनाने की जरूरत है। कोरोना के विश्व संकट ने अब सबको सोचने का मौका दे दिया है। तभी तो इस बार रूस, ब्रिटेन, दक्षिण कोरिया समेत 10 देशों के कार्यकारी बोर्ड का नेतृत्व भारत को सौंपा गया है। अब तक इसकी कमान जापान के पास थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन की महत्ता इस तथ्य से समझी जा सकती है कि इसके बजट में अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा अनुदान बिल मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन का होता है। इसके बाद ब्रिटेन, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, नार्वे, चीन, कनाडा, दक्षिण कोरिया, फ्रांस और संयुक्त अरब अमीरात का अंशदान होता है। असल में प्रावधान यह है कि हर देश अपनी अर्थ व्यवस्था और आबादी के अनुसार अंशदान देगा। संगठन का मुख्य लक्ष्य इन्फ्लुएंजा, एड्स और कोरोना जैसी संक्रामक बीमारियों के अलावा कैंसर, ह्रदय रोग जैसी गंभीर विश्वव्यापी बीमारियों से निजात के लिए अंतर्राष्टीय स्तर पर काम करना है। इसी तरह पोलियो जैसे संक्रामक रोगों के लिए वेक्सिनेशन के अभियान में उसकी अहम भूमिका है। इस काम में रोटरी इंटरनेशनल जैसे संगठन भी उसके साथ जुड़े हुए हैं। लेकिन यह मानना होगा कि यह भी राजनीति का शिकार रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के वर्तमान महानिदेशक टेडरोस एडानोम ने सार्वजनिक रूप से मानना है कि उन्हें चीन की कृपा से यह पद मिला है। वह जुलाई 2017 में इस पद पर नियुक्त हुए थे। फिर कोरोना संकट आने की शुरूआत में ही उन्होंने चीन के अच्छी कोशिशों की सराहना कर दी थी। तभी तो अमेरिका समेत कई देशों ने कोरोना वायरस फैलाने में चीन की संदिग्ध भूमिका की व्यापक जांच की मांग की। संगठन के प्रमुख ने सारे मामले की गहराई से समीक्षा का आश्वासन दिया



देश की स्वास्थ्य सेवाओं में भी करना होगा सुधार 



अब दुनिया के स्वास्थ्य की देखभाल के साथ भारत को अपनी स्वास्थ्य सेवाओं में भी व्यापक सुधार पर ध्यान देना होगा। कोरोना संकट से निपटने के तात्कालिक कदमों के लिए अतिरिक्त धनराशि का प्रावधान, कम समय में अधिकाधिक जिलों का कोरोना मुक्त होना और हर संभव प्रयासों की देश-दुनिया में सराहना हुई है। लेकिन यह स्वीकारा जाना चाहिए कि स्वास्थ्य क्षेत्र के केंद्रीय और प्रादेशिक बजट प्रावधान देश की बड़ी आबादी और स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए कम है। आयुष्मान भारत निश्चित रूप से विश्व की सबसे नई और अच्छी योजना है। हाल ही में इससे करीब 1 करोड़ लोगों के लाभान्वित होने की खबर आई है। फिर भी जिला और ग्रामीण क्षेत्रों में अस्पतालों की हालत सुधारना सबसे बड़ी प्राथमिकता होना चाहिए। मोदी सरकार ने पोलियो की तरह 2025 तक देश को टी.बी. जैसे भयानक रोग से मुक्त करने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए महानगरों से लेकर सुदूर इलाकों तक सफाई और स्वास्थ्य की सुविधाओं पर राज्य सरकारों, स्थानीय सरकारी-गैर सरकारी संस्थाओं के सक्रिय प्रयासों की जरुरत होगी | 



अपने लोगों के कल्याण से हम दुनिया के कल्याण का निकाल सकेंगे रास्ता 



हम वैसे यह दावा करते हैं कि दुनिया की सबसे प्राचीन सफाई प्रणाली हमारे पास रही है। अंदरूनी पाइपों और नालियों से बने स्नान गृह और शौचालय मोहनजोदड़ों में इस बात के प्रमाण हैं। दुःख यह है कि 5 हजार साल बाद अभी दिल्ली मुंबई की अनेक बस्तियों में सफाई, गंदे पानी के निकास, कूड़े-करकट, सीवर, घरेलू और औद्योगिक कचरे के निपटान की समुचित व्यवस्था नहीं है। गरीब बस्तियों में आधी बीमारी इसी कारण से होती है। पीएम मोदी का स्वच्छता अभियान कई इलाकों में प्रभावशाली रहा, लेकिन स्थानीय राजनीतिक कीचड़ ने गंदगी कम नहीं होने दी है। इसका इलाज नए नियम-कानून बनाकर दोषियों के तत्काल दंडित किए जाने पर शायद संभव हो। सिंगापुर जैसे देशों में बहुत कड़े दंड हैं। इसी तरह कैंसर, मधुमेह, ह्रदय रोग या आनुवंशिक विकृतियों जैसी बीमारियां असाध्य नहीं रह गई हैं। अच्छे वातावरण, जीवन शैली और समय पर उपचार की जागरूकता से इन पर रोकथाम हो सकती है। क्षय रोग, मलेरिया, डायरिया आज भी मौत का कारण बन जाते हैं। टीकाकरण के अभियानों के साथ पहले डॉक्टरों, वैद्यों, होम्योपैथी और यूनानी चिकित्सा के शिक्षित लोगों की भारी कमी है। सरकारी और निजी अस्पतालों के लिए चिकित्सक अनिवार्य हैं। कोरोना तो अभी आया, सामान्य दिनों में भी डॉक्टर मिलना मुश्किल होता है। मोबाइल अस्पतालों को बढ़ाना होगा। हम विश्व को सुधारने निकले हैं, कई देशों में छह सौ की आबादी पर एक डॉक्टर उपलब्ध है। हमारे यहां दो हजार पर भी एक नहीं मिलता। इसलिए डॉक्टरों, पारा मेडिकल कर्मियों, टेलीमेडिसिन के 50 हजार और मोबाइल टेलीमेडिसिन के 20 हजार केंद्र से समस्याओं पर काबू पाना सुगम हो जाएगा। अपने लोगों के कल्याण से हम दुनिया के कल्याण का रास्ता निकाल सकेंगे।


There is a need to improve the World Health Organization the health services of the country will also have to be improved the ancient tradition of public health facility India विश्व स्वास्थ्य संगठन में सुधार की जरूरत देश की स्वास्थ्य सेवाओं में भी करना होगा सुधार जन स्वास्थ्य सुविधा भारत की प्राचीन परंपरा