आलापल्ली से लगभग छह-सात किलोमीटर की दूरी पर तलवारा नर्सरी थी। दौरा कार्यक्रम में मुझे तलवारा नर्सरी का निरीक्षण करना था। एसडीओ एनके जोशी ने एक फॉरेस्टर (वनपाल) को मेरे साथ जाने के निर्देश दिए। तलवारा नर्सरी का रास्ता घने जंगलों के बीच में से गुजरता था। हम दोनों तलवारा नर्सरी पैदल ही निकल पड़े। वहां निरीक्षण कर पूरा लेखा-जोखा तैयार किया। नर्सरी के निरीक्षण में अधिक समय लगने के कारण हम लोगों को आलापल्ली वापस लौटने में देर हो गई। फिर भी हम लोग आल्लापल्ली के लिए निकल पड़े। जब हम लोग निकले तब बारिश शुरू हो चुकी थी। रास्ते की मिट्टी गीली हो गई। कीचड़ बूट में चिपकने लगा, जिससे हम लोगों की चलने की गति भी धीमी पड़ गई। घने जंगल के भीतर रात हो गई और अंधेरा हो जाने के कारण रास्ता दिखना बंद हो गया। हम लोगों के पास ऐसे समय टार्च भी नहीं थी। वह ऐसा क्षेत्र था जिसमें जंगली जानवर जैसे बाघ, चीते विचरण करते ही रहते थे। फॉरेस्टर (वनपाल) ने सलाह दी कि हम लोगों को जोर-जोर से आपस में बात करते हुए आगे बढ़ना चाहिए, ताकि हमारी आवाज सुन कर जंगली जानवर हमारी तरफ न आएं। यदि आएं भी तो आवाज सुन कर दूसरी तरफ बढ़ जाएं। घना जंगल और अंधेरा होने के कारण हम लोग जंगल में भटक सकते थे। फॉरेस्टर अनुभवी था, इसलिए उसने सुझाव दिया कि जहां जंगल का रास्ता होता है, वहां के वृक्ष कटे होने के कारण ऊपर की ओर देखने पर आसमान स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। इस सूत्र को पकड़ कर हम लोग आगे बढ़ते चले गए। कुछ डर और कुछ बारिश की ठंडक के कारण अंदर ही अंदर कंपकंपी छूट रही थी। ऐसे समय मैं ईश्वर को याद कर रहा था। गिरते-पड़ते, लड़खड़ाते हुए जब हम लोग आलापल्ली के पास स्थित नदी के पास पहुंचे तो हमारी जान में जान आई। नदी के उस पार एसडीओ जोशी स्टाफ के साथ पेट्रोमेक्स जला कर हमारा इंतजार कर रहे थे। उन लोगों ने हमारा स्वागत एक हीरो की तरह किया। वह कभी न भूलने वाली बरसात की रात थी।
सागौन और सतकटा पेड़ों का आपसी संबंध
सागौन प्रजाति के वृक्षारोपण हेतु अच्छी ऊंचाई वाले सतकटा एवं अन्य प्रजातियों के स्वाभाविक वन क्षेत्रों को चुना जाता था। ऐसे क्षेत्रों में क्लियर फैलिंग (सभी वृक्षों को काट देना) कर सभी वृक्षों के सूखने के बाद राजपत्रित वन अधिकारी की उपस्थिति में जलाए जाने के निर्देश थे। एसडीओ एनके जोशी इसी तरह के एक जंगल के इलाके में अपने नियंत्रण में काम करवाने के लिए मुझे साथ ले कर गए। मैंने देखा कि उस इलाके के चारों ओर बीस फुट चौड़ी लाइन साफ कर तैयार की गई थी। यह बीस फुट चौड़ी लाइन जंगल में आग फैलने से रोकने में कारगर मानी जाती थी। उस इलाके में काफ़ी संख्या में वन कर्मचारी व मजदूर मौजूद थे। जंगल विभाग के अमले के साथ मजदूर आग को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। यह काम मई माह में ही करवाया जाता था। अच्छी ऊंचाई वाले सतकटा के प्राकृतिक जंगल क्षेत्र को चुनने का यही कारण प्रतीत होता है कि सागौन के पेड़ भी तैयार होने पर वही ऊंचाई प्राप्त कर सकें। प्रस्तावित वृक्षारोपण क्षेत्र में वृक्षों को जलाने की प्रथा भी शायद इसलिए प्रचलित हुई होगी कि वह क्षेत्र उपजाऊ व पोरस (पोला व हवादार) हो सके और सागौन के पौधे तीव्र गति से बढ़ सकें। सागौन के पौधे नर्सरी में बीज बोकर तैयार किए जाते हैं। जब इनकी मोटाई अंगूठे के बराबर हो जाती, तो पौधे निकाल कर उनकी सभी पत्तियां काटकर अलग कर दी जाती और उनके रूट शूट बनाए जाते हैं, जिसमें शूट का लगभग एक इंच हिस्सा ऊपर होता और रूट का सात आठ इंच का हिस्सा भीतर की ओर रखा जाता है। ये रूट शूट प्रस्तावित वृक्षारोपण क्षेत्र में दो मीटर बाय दो मीटर की दूरी पर लगाए जाते हैं। कुछ दिन पश्चात शूट में पत्तियां निकलना शुरू हो जाती हैं।
शिफ्टिंग कल्टीवेशन से हुआ जंगलों को नुकसान
कई आदिवासी क्षेत्रों में एक प्रथा प्रचलित थी जिसे शिफ्टिंग कल्टीवेशन कहा जाता है। इसमें जंगल क्षेत्र में वृक्षों की कटाई कर उन्हें सुखाने के बाद जला दिया जाता है। बिना कोई हल बखर चलाए और बगैर अधिक मेहनत किए बारिश होने के साथ ही दानों को फेंक कर बो दिया जाता है और अच्छी फसल ली जाती है। अगले वर्ष यही प्रक्रिया नए वन क्षेत्र में अपनाकर पुनः अच्छी फसल प्राप्त की जाती है। इस तरह हर वर्ष नए वन क्षेत्र में कटाई करने के कारण इस तरीके को शिफ्टिंग कल्टीवेशन कहा जाता है। इस तरीके से जंगलों को अत्यधिक हानि होती है। यह कार्य ज्यादातर वनों की ढलान पर किया जाता है। जैसे ही कटाई का एक पेच तैयार होता, वैसे ही अन्य लोग उसे देखकर कटाई करना शुरू कर देते हैं और देखते ही देखते ढलानों पर इस तरह के कटाई किए हुए कई पेच दिखाई देने लगते हैं लेकिन इससे प्रतिवर्ष वनों की अत्यधिक हानि होती रहती है।
चटाई के पंखों से मिलती थी ठंडी हवा
फॉरेस्ट कंजरवेटर आफिस नागपुर के अंतर्गत साउथ चांदा फॉरेस्ट डिवीजन आता था। नागपुर आफिस के नियंत्रण में पांच छह डिवीजन आते थे। कंजरवेटर बीआर मिश्रा आलापल्ली के दौरे में आने वाले थे। उनके पहुंचने के पूर्व ही साउथ डिवीजन चांदा के जीबी दशपुत्रे व असिस्टेंट कंजरवेटर बीआर नीले अल्लापल्ली पहुंच गए। उनको फॉरेस्ट रेस्ट हाउस में ठहराया गया। बीआर मिश्रा के पुत्र रवि मिश्रा फॉरेस्ट इंस्टीट्यूट देहरादून में मेरा बैचमेट था। आलापल्ली में उस समय तक बिजली नहीं पहुंची थी, इसलिए रेस्ट हाउस में सुसज्जित लंबी लकड़ी में सजाई हुई चटाई बांध कर लंबे हाथ के पंखे तैयार किए जाते थे। इन पंखों को छत से लटका कर बीचों बीच एक रस्सी बांधी जाती और दीवार में छेद कर इस रस्सी को कमरे के बाहर निकाल दिया जाता था। रस्सी को लगातार खींचते रहने के लिए बाहर एक पंखा पुलर स्टूल में बैठता था। वह रस्सी खींचता रहता था और कमरे में पंखा चलता रहता। कमरे में ठहरे हुए अधिकारी को ठंडी हवा मिलती रहती थी। इस तरह की व्यवस्था उस समय के उन फॉरेस्ट रेस्ट हाउस में की गई थी, जहां बिजली नहीं पहुंची थी। यह व्यवस्था अंग्रेजी शासन में समस्त फॉरेस्ट रेस्ट हाउस में अपनाई गई थी। वैसे भी अंग्रेजों को गर्मी सहन नहीं होती थी।
जब कंजरवेटर ने डायरी में देखी झनक- झनक पायल बाजे
कंजरवेटर बीआर मिश्रा ने उपस्थित अन्य सभी अधिकारियों को छोड़कर मेरी ओर सबसे ज्यादा ध्यान दिया। उनहोंने मुझसे अनेक प्रश्न किए। मेरे द्वारा किए गए कार्यों के बारे में जानकारी ली। उन्होंने अचानक मुझसे प्रश्न किया कि मैं नियमित रूप से डायरी लिखता हूं कि नहीं? जब मैंने मैंने उत्तर हां में दिया तो उन्होंने मुझसे डायरी मांग ली। डायरी में लिखी गई जानकारी पढ़ते ही वे जोर-जोर से हंसने लगे और वहां मौजूद उपस्थित अन्य अधिकारी मेरी ओर विस्मय से प्रश्नवाचक मुद्रा में देखने लगे। मैंने डायरी में लिख रखा था कि कब फिल्म 'झनक झनक पायल बाजे' देखी और अपने उपयोग में आने वाली वस्तुएं जैसे टूथब्रश, टूथपेस्ट, हेयर ऑयल आदि कब और कितने रूपए में खरीदे। कंजरवेटर बीआर मिश्रा ने मुझे समझाया की डायरी किस तरह लिखी जाना है। उन्होंने बताया कि सबसे ऊपर शासकीय सेवा किस तारीख को प्रारंभ की, लिखना है। उसके बाद तारीखवार क्या काम किया उसका लेखा जोखा लिखना है। अगर कार्यालयीन कार्य किया तो उसका उल्लेख करना है। अगर मैदानी क्षेत्र में जा कर काम किया है, तो उसका पूरा विवरण देना ज़रूरी है। इस तरह पूरे माह में किए गए काम का ब्यौरा तारीखवार दर्शाकर डायरी डीएफओ को भेजना है। डीएफओ उस डायरी को कंजरवेटर को फारवर्ड करेंगे। डीएफओ व कंजरवेटर प्रत्येक माह किए गए कार्य का मूल्यांकन कर अपनी टिप्पणी एवं निर्देश जारी करेंगे। कंजरवेटर बीआर मिश्रा की समझाइश के बाद मैंने उनके द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुसार डायरी लिखना और उसे प्रस्तुत करना शुरू कर दिया। यह क्रम मेरे रिटायरमेंट तक लगातार जारी रहा। जंगल मुहकमे में न केवल अधिकारी डायरी लिखते हैं बल्कि फील्ड में पदस्थ सभी कर्मचारियों के लिए डायरी प्रस्तुत करना अनिवार्य है। जंगल मुहकमे के अधिकारी एवं कर्मचारी जब अपना टीए बिल प्रस्तुत करते हैं, तो उसके साथ डायरी लगाना जरूरी होता है। इसके बाद ही टीए बिल पास किये जाते हैं और संबंधित अधिकारी या कर्मचारी को उसके दौरे में व्यय की गई राशि प्राप्त होती है। (क्रमश:)
(लेखक मध्यप्रदेश सेवानिवृत्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक हैं)