इस ‘उड़ान’ की ऊंचाई को गणित से नहीं, मनोविज्ञान से समझने की जरूरत

author-image
एडिट
New Update
इस ‘उड़ान’ की ऊंचाई को गणित से नहीं, मनोविज्ञान से समझने की जरूरत

अनिल कर्मा। बात रतन टाटा के शब्दों से ही शुरू करते हैं। एयर इंडिया को फिर अपनी कॉरपोरेट फैमिली का हिस्सा बनाते हुए उन्होंने दो महत्वपूर्ण बातें कही। एक, ‘टाटा समूह का एयर इंडिया की बोली जीतना एक बड़ी ख़बर है।’ और दूसरी, ‘जेआरडी टाटा अगर हमारे बीच होते तो उन्हें बेहद खुशी होती।’ जिम्मेदारी और चुनौती की पथरीली गर्म जमीन पर भावुकता की दो बूंदें। मानो इससे निकलने वाली भाप ही वह रसायन हो, जो किसी उद्योगपति को टाटा बनाता है। और फिर आगे इसे एक परंपरा का रूप देता है।

एयरलाइंस को लेकर जुनूनी थे जेआरडी टाटा

बेशक यह बड़ी खबर है। देश के लिए ही नहीं, दुनिया के लिए। यह जीत के जज्बे से ज्यादा भाने और पाने के जुनून की खबर है। जिस तरह से जेआरडी टाटा के बाल-मन में आकाश की उड़ान ने तरंगे पैदा की थीं और फिर जिस तरह उन्होंने उस ‘आकाश’ को ‘जमीन’ पर उतारा था, वह बताता है कि यह सब दुनिया के किसी भी गणित से बहुत ऊपर का मामला था। जेआरडी टाटा पर लिखी गई किताब 'द टाटा ग्रुप- फ्रॉम टॉर्चबियरर टु ट्रेलब्लेजर्स' में बताया गया है कि मुंबई के जुहू के पास स्थित एक मिट्टी के मकान में शुरू हुई एयर इंडिया (उस समय नाम टाटा एयरलाइंस होता था) को टाटा अपनी 'माशूका' की तरह प्यार करते थे। दीवानगी का ऐसा आलम कि विमानों के टॉयलेट से लेकर एयरलाइंस के काउंटर पर गंदगी दिखने पर खुद सफाई में जुट जाते थे। एयरलाइन के स्टाफ के ड्रेस से लेकर हेयर स्टाइल तक में जेआरडी की दिलचस्पी रहती थी। उनको पता था कि वो पैसा ख़र्च करने के मामले में विदेशी एयरलाइंस का मुकाबला नहीं कर सकते, इसलिए ज़ोर हमेशा समय की पाबंदी पर रहता था।  

अफसरों की लापरवाही ने बना दिया दुधारू गाय

कालांतर में जब नेहरू सरकार के समय इस एयरलाइंस का राष्ट्रीयकरण हो गया और जेआरडी को एयर इंडिया का चेयर पर्सन बना दिया गया, तब भी उनकी रुचि और उनके समर्पण में रत्ती भर कमी नहीं आई। तब भी वो एयरलाइंस के जहाज़ों की खिड़कियों के पर्दे तक चुनने के लिए खुद जाते थे। ताउम्र अपनी किताबों, कविताओं, फूलों और पेंटिंग से प्यार करने वाले इस शख्स के लिए विमान वस्तु या यंत्र से अधिक मंत्रमुग्ध कर देने वाली कोई रचना हुआ करती थी। कदाचित यही कारण रहे कि सीमित संसाधनों के बावजूद एयर इंडिया ने उनके नेतृत्व में अल्प समय में दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित एयरलाइंस में से एक का रुतबा हासिल कर लिया था। खासे समय तक इसे मेंटेन भी रखा। मुनाफा भी कमाया। बाद में ‘सरकारीकरण की सोच’ ने इसका जिस तरह से बेड़ा गर्क किया, वो किसी से छुपा नहीं है। सेवा निकृष्ट होती गई, घाटा बढ़ता गया, कर्ज चढ़ता गया। इन सबकी एक ही बड़ी वजह रही। किसी को इस उपक्रम से लगाव नहीं था। इतना पैसा, इतना बड़ा सरकारी तंत्र, लेकिन सब फेल। क्योंकि सभी के लिए यह ‘सर्विस’ थी, ‘सखी’ नहीं। दुधारू गाय थी, 'अपनी गौरी' नहीं। ‘संज्ञा’ थी, ‘विशेषण’ नहीं। अब परिपक्व रतन टाटा ने कर्ज में गले-गले तक डूबे ‘महाराजा’ को फिर अपने सिंहासन पर बैठाने की ठानी है तो निश्चित ही यह भी किसी ‘कैलकुलेशन’ का नहीं, ‘क्ले आर्ट’ का हिस्सा लगता है। जहां गणनाएं हांफने लगती हैं, वहां से भावनाएं चलना शुरू करती हैं। कदाचित इसीलिए नमक से लेकर सॉफ्टवेयर तक बनाने वाले टाटा समूह ने एयर इंडिया को वापस पाने के लिए इतना ( 18000 करोड़ रु.) खर्च करने में ज्यादा नहीं सोचा। इसकी तुलना सिर्फ 1932 में दो लाख रुपए का निवेश कर टाटा एयरलाइंस की शुरुआत करने जैसे जोखिम भरे रोमांच से की जा सकती है। 

यह व्यापारिक सौदा नहीं, व्यावहारिक प्रेरणा है

उड़ना दरअसल एक क्रिया से ज्यादा स्वभाव है। पक्षी महज इसलिए नहीं उड़ते कि उन्हें पंख मिले हुए हैं, बल्कि वे पंख फड़फड़ाते ही इसलिए हैं कि उड़ सकें। उड़े बिना वे अधूरे हैं। मन और मनुष्य का विज्ञान भी इसी सिद्धांत को प्रतिपादित करता है। और भी प्रभावी तरीके से। जेआरडी से ही समझें तो टाटा एयरलाइंस की शुरुआत तो 1932 में हुई थी, मगर जेआरडी ने वर्ष 1919 में ही पहली बार हवाई जहाज़ शौकिया तौर पर उड़ा लिया था। तब वो सिर्फ 15 साल के थे। यानी स्वभाव ही उड़ने का रहा। उम्मीद की जाना चाहिए कि अब रतन टाटा के नेतृत्व में  एयर इंडिया इसी स्वाभाविक परंपरा के साथ देश के आम आदमी के मन की उड़ान को नई ऊंचाई देगा। रतन टाटा के ही शब्दों में बात को मुकाम तक पहुंचाते हैं। उन्होंने कहा- ‘शुरुआती सालों में एयर इंडिया का जो साख और सम्मान था, टाटा समूह को उसे फिर से हासिल करने का एक मौक़ा मिला है...।’   बेशक ऐसा ही एक मौका एयर इंडिया को मिला है।...और हां, इंडिया को भी। क्योंकि  उड़ान सिर्फ विमान की नहीं होती, विचारों की भी होती है। आकाश सिर्फ एक नहीं, सबका अपना आकाश है। क्योंकि यह ‘व्यापारिक सौदे’ से ज्यादा ‘व्यावहारिक प्रेरणा’ है। क्योंकि यह बार-बार, लगातार उड़ते रहने की आदत को अपने खून में शुमार करने का संदेश है। आप क्या सोचते है? (लेखक प्रजातंत्र समाचार पत्र के संपादक हैं)

Tata AIR INDIA rata tata jrd tata