आखिर क्यों नहीं लग पाता हुक्काबारों पर अंकुश!

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Dr. Girija Kishor Pathak
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आखिर क्यों नहीं लग पाता हुक्काबारों पर अंकुश!

लगभग डेढ़-दो दशक से भारत के महानगरों, यहां तक कि छोटे-मोटे कस्बों तक में हुक्का बार का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। होटल और रेस्तरां वाले ऐसे लॉन्ज बनाते हैं जिनमें नशे के शौकीन हुक्का गुड़गुड़ाने वाले युवक-युवतियों की भीड़ बढ़ती जाती है। यह बहुत फायदेमंद व्यवसाय बन गया है। लोगों का मानना है कि हजारों युवक-युवतियां यहीं से नशे की चपेट में आ रही हैं। लगभग हर साल पुलिस इन पर रेड डालती है कानूनी कार्रवाई करती है पुन: ये बार शुरू हो जाते हैं।





मध्यप्रदेश में चलते हैं 800 हुक्का बार





एक सर्वे के अनुसार अकेले मध्यप्रदेश में लगभग 800 इस तरह के बार चलते हैं। हुक्का लॉन्ज चलाने वालों की तगड़ी लॉबी है। मध्यप्रदेश में अनेक बार मुख्यमंत्री सीधे इन पर कार्रवाई का निर्देश देते हैं। ताबड़तोड़ रेड, गिरफ्तारी, जब्ती अखबारों की बड़ी-बड़ी सुर्खियां बटोरती हैं लेकिन धीरे-धीरे फिर ये बार शुरू हो जाते हैं। प्रश्न उठता है आखिर इस धंधे के फलने-फूलने में कमजोर कड़ी कौन है? प्रशासन! पुलिस! सरकार, राजनेता, इनकी कमजोर इच्छाशक्ति या कमजोर और लचर कानून !





हुक्का बार को लेकर मध्यप्रदेश में लचर कानून





पहली बात, हुक्का बार संचालकों पर अंकुश के लिए पुलिस सिगरेट व तंबाकू उत्पाद वितरण विनियम अधिनियम 2003 के तहत धारा-4, 21(2) एवं 24 के तहत कार्रवाई करती है। यह लचर कानून है। इस प्रावधान में हुक्का पीने-पिलाने वाले को महज 500 से 800 रुपए के जुर्माने पर छोड़ दिया जाता है। इस कानून की स्थिति मध्यप्रदेश आबकारी अधिनियम की धारा 34, 36 या 34 पुलिस एक्ट की तरह है जिसमें पुलिस अधिकारी की केस डायरी लिखने, मेडिकल कराने में काफी मेहनत के बाद अपराधी 100 रुपए से 400-500 रुपए का दंड भरकर आरोपमुक्त हो जाता है। दूसरे दिन सड़क पर वही भीड़, वही दृश्य।‌





MP में हुक्का बार के लिए लाइसेंस का प्रावधान नहीं





दूसरा, हुक्का बार के लिए लाइसेंस का प्रावधान नहीं है। गुमाश्ता और नगर निगम से व्यवसायिक लाइसेंस लेकर इनकी आड़ में हुक्काबार चलाए जा रहे हैं। थाने से मुचलके पर जमानत मिल जाती है। सख्त कानून नहीं होने से संचालक वापस नशे का धंधा चालू कर देते हैं।





तीसरा, ब्रह्मास्त्र के रूप में जिला दण्डाधिकारी 144 दण्ड प्रक्रिया संहिता के तहत प्रदत्त अधिकार को लेते हैं। इस धारा के तहत कार्यपालक मजिस्ट्रेट किसी भी व्यक्ति को कानूनी रूप से नियोजित, या मानव जीवन, स्वास्थ्य या सुरक्षा के लिए खतरा, या सार्वजनिक शांति की गड़बड़ी, या दंगा, या झगड़ा की संभावना की स्थिति में निषेधाज्ञा जारी करते हैं जो 2 माह के लिए लागू रहती है। विशेष परिस्थिति में 6 माह तक बढ़ सकती हो।‌ पुलिस इसके उलंघन पर 188 भादवि में अपराध दर्ज करती है। इस निषेधाज्ञा की अपनी सीमा है। ‌न्यायालय ने एक ही विषय में पुनरावृति को अवैध माना है। जिला मजिस्ट्रेट, भोपाल ने दिनांक 22.9.2014, सीआरपीसी की धारा-144 के तहत जारी निशेधाज्ञा जिसमें हुक्का बार/शीशा लॉन्ज को जब्त करने तथा आदेशों की अवहेलना पर आईपीसी की धारा-188 के तहत कार्रवाई के निर्देश जारी किए थे। इसके विरूद्ध 2014 में रेस्तरां और लॉन्ज व्यापारी एसोसिएशन, भोपाल के नाम से पंजीकृत एसोसिएशन द्वारा मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय जबलपुर में याचिका दायर की। उच्च न्यायालय, जबलपुर के जस्टिस जेके माहेश्वरी की सिंगल बेंच ने रेस्टोरेंट और लॉन्ज व्यापारी बनाम मध्यप्रदेश राज्य की याचिका में 21 अगस्त, 2015 में धारा-144 दण्ड प्रक्रिया संहिता के तहत बार-बार निकाले गए ऐसे पुनरावृति परक आदेश को कानून के विरूद्ध माना। मतलब जिला दण्डाधिकारी-144 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत बार-बार ऐसे आदेश नहीं निकाल सकता।





छत्तीसगढ़ में हाईकोर्ट ने लगाई थी प्रशासन की कार्रवाई पर रोक





इसी प्रकार दिसंबर 2021 छत्तीसगढ़ में भी हुक्का बार प्रतिबंध लगाने को लेकर प्रशासन की कार्रवाई को बिलासपुर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी। कोर्ट ने विशेष टिप्पणी करते हुए कहा कि बिना कानून लाए आप इस पर रोक नहीं लगा सकते हैं। रायपुर के राजेन्द्र नगर थाना प्रभारी ने एडिक्शन कैफे समेत 6 हुक्का बार संचालकों को कारोबार बंद करने के संबंध में नोटिस जारी किया था। इस नोटिस को चुनौती देते हुए कैफे संचालकों ने याचिका दायर की थी।





इस तरह आज की तारीख में सिगरेट व तंबाकू उत्पाद वितरण विनियम अधिनियम 2003 के तहत धारा-4, 21(2) एवं 24, 144 दण्ड प्रक्रिया संहिता, 188 भारतीय दण्ड संहिता तथा अन्य लघु अधिनियमों के तहत की जाने वाली वैधानिक कार्रवाई पर इस व्यापार पर अंकुश लगाने में असफल रही है। कारण पूरी प्रक्रिया मात्र तात्कालिक समाधान है एक तरह से लचर है।





छत्तीसगढ़ सरकार ने उठाए कदम





इस समस्या के समाधान में छत्तीसगढ़ सरकार ने सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम 2003 की धारा 3, 4, 12, 13, 21 और 27 में संशोधन कर कुछ कठोर कदम उठाने का काम किया है। इसके अनुसार धारा चार (हुक्का बार संशोधन विधेयक) में संशोधन कर धारा 4-ए और 4-बी को जोड़ा गया है। धारा 4-ए के अनुसार, "हुक्का बार पर प्रतिबंध"। हुक्का बार के प्रमुख अधिनियम की धारा-21 में संशोधन कर नई धारा 21-ए और 21-बी जोड़ी गई है। धारा 21-ए के तहत हुक्का बार चलाने वालों के लिए सजा का प्रावधान होगा। यदि कोई व्यक्ति धारा 4-ए के प्रावधानों का उल्लंघन करता है तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसे 3 साल तक बढ़ाया जा सकता है। साथ ही एक साल की कैद और 50 हजार रुपए जुर्माने का प्रावधान भी होगा। इस अधिनियम पर राज्यपाल के हस्ताक्षर हो चुके हैं। राष्ट्रपति के अनुमोदनोपरान्त यह लागू हो जाएगा।





अगर मध्यप्रदेश में भी सरकार की नीयत हुक्का बार संचालन पर कठोर अंकुश लगाने की हो तो





इस अधिनियम के धारा 21-ए और 21-बी में दण्ड का प्राविधान को और कठोर बनाना चाहिए। दूसरा, इस कानून को संज्ञेय अपराध के साथ, गैरजमानती, नॉनकंपाउंडेबल बनाया चाहिए। तीसरा, इस अपराध की पुनरावृति को एमपी राज्य सुरक्षा अधिनियम, 1990 धारा-5 के अधीन जिला बदर की परिधि में लाना चाहिए। चौथा, अनवरत कानून के उल्लंघन की स्थिति में ऐसे होटल और रेस्तरां का लाइसेंस निरस्त कर देना चाहिए। पांचवां, ऐसे अपराधों पर अंकुश लगाने का उत्तरदायित्व रजिस्ट्रेशन, नियमन, संचालन एक विभाग विशेष को देना चाहिए। किसी काम में अनेक विभागों के लिप्त होने से समन्वय की कमी परिलक्षित होती है और विभागीय दायित्वबोध कमजोर पड़ जाता है। इसका एक उदाहरण सशक्त आबकारी अधिनियम के बावजूद अवैध शराब पर अंकुश लगाने में व्यवस्था की विफलता है। कारण इस कानून के नियमन और नियंत्रण में अनेक विभागों की सामूहिक जिम्मेदारी है-प्रशासन, आबकारी, पुलिस। सबको समान अधिकार है, अवैध शराब पर अंकुश लगाने का लेकिन हर साल सैंकड़ों मौतें अवैध शराब की बिक्री के कारण होती हैं। अन्ततः इस निष्कर्ष पर पहुंचना उचित होगा कि एक संवेदनशील सरकार की पहचान यह है कि वह समाज में जनहित और जीवन रक्षा के खतरों से भली-भांति परिचित रहे और आवश्यकतानुसार समय-समय पर उत्पन्न विसंगतियों के विरुद्ध त्वरित कठोर कानून बनाने से न चूके। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार इस समस्या पर अंकुश लगाने के लिए एक कठोर कानून बनाएगी।





( डॉ. गिरिजा किशोर पाठक, सेवानिवृत भापुसे अधिकारी, स्तंभकार एवं एक आदिम चरवाहा गांव की दास्तान (2021) पुस्तक के लेखक )



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