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दिल्ली विधानसभा चुनाव। Photograph: (the sootr)
वरिष्ठ पत्रकार राकेश शुक्ला
क्या कोई कल्पना कर सकता है कि 54 प्रतिशत वोट पाने वाली पार्टी को 5 प्रतिशत वोट वाली पार्टी से खौफ हो सकता है। लेकिन यह नजारा दिल्ली में देखने को मिल रहा है। पिछले तीन चुनाव से दिल्ली विधानसभा में अपना परचम लहराने वाले अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) इस बार बहुत डरे हुए हैं। उन्हें डराने वाली पार्टी कांग्रेस (Congress) है। लिहाजा, अपनी डगमगाती चुनावी नैय्या को संभालने के लिए अरविंद केजरीवाल कभी हिन्दुत्व का तो कभी इस्लाम का चप्पू चलाकर मझधार से निकलने की जद्दोजहद में लगे हैं।
केजरीवाल को वोट खिसकने की टेंशन...
अरविंद केजरीवाल के कांग्रेस से डरने का कारण है, वोट खिसकने का भय। 2012-13 में केजरीवाल ने बड़े रणनीतिक तरीके से कांग्रेस को खलनायक साबित किया और उसका वोट हथिया कर सत्ता पर काबिज हो गए। कांग्रेस का वोट खिसका और वह रसातल में चली गई। 12 साल के वनवास के बाद कांग्रेस केजरीवाल के सामने इस तरह चुनौती बनकर खड़ी हो जाएगी, यह कोऊ सोचा नहीं था। लाभार्थी वर्ग बनाकर दिल्ली की सत्ता पर काबिज रहने की रणनीति लेकर चल रहे केजरीवाल को झटके पर झटका लग रहा है। लाभार्थी से लालची वर्ग तैयार करने की उनकी रणनीति को पलीता लग गया है।
परवान नहीं चढ़ पाई महिला सम्मान योजना
उनकी तरफ से मार्च, 2023 में मध्य प्रदेश सरकार की तर्ज पर महिलाओं को एक हजार रूपए देने की योजना परवान नहीं चढ़ पाई, वह सोचकर चल रहे थे कि पहले की तरह चुनाव के एनवक्त पर यह राशि देकर वोट कबाड़ लेंगे। लेकिन मामला फंस गया। दिसंबर में कैबिनेट ने मंजूरी तो दे दी गई, लेकिन प्रक्रिया पूरी करने का समय नहीं था। लिहाजा, अपने पूर्ववर्ती स्वभाव की तरह दिल्ली की महिलाओं को 2100 का प्रलोभन लेकर मैदान में उतर गए। उन्हें कतई अंदाजा नहीं था कि इस बार उनकी दाल नहीं गल पाएगी। एक तरफ दिल्ली सरकार ने नोटिस देकर उन्हें कठघरे में खड़ा कर दिया, तो दूसरी तरफ कांग्रेस ने उपराज्यपाल को शिकायत थमा दिया।
उलटी पड़ी केजरीवाल की रणनीति
केजरीवाल घिर तो गए, लेकिन वह कहा मानने वाले थे। सो, पुजारी और ग्रंथियों को वेतन देने का दूसरा लालची पांसा लेकर वह फिर मैदान में आ गए। यह दांव भी उनका उल्टा पड़ गया। इधर, 17 माह से वेतन से वंचित मौलाना कूद पड़े तो दूसरी तरफ बीजेपी द्वारा चुनावी हिंदू होने का दांव चल दिया गया। दलित और मुस्लिम वोट पर कांग्रेस पहले से खतरा बनकर मंडरा रही थी, ऊपर से हिंदू वाले दांव ने उनके माथे पर बल डाल दिया।
RSS को पत्र लिखने का दांव भी फेल
आनन-फानन में मैं हिंदुत्ववादी नहीं होने का संदेश देने के लिए उनकी तरफ से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संघचालक डॉ. मोहन भागवत को कड़ा पत्र लिख दिया गया। लेकिन उनकी यह चाल भी उल्टी पड़ गई। कारण, आरोप लगाओ, सवाल खड़ा करो और भाग जाओ की केजरीवाल द्वारा अपनाई जाने वाली नीति दिल्ली के लोगों की समझ में आ गई है। इस पत्र से वह खुद सवालों से घिर गए। दिल्ली के लोगों ने सवाल दाग दिया कि वो कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित के सवालों का जवाब क्यों नहीं दे रहे।
दिल्ली की 25 सीटों पर कांग्रेस का असर
दरअसल, केजरीवाल को कांग्रेस इसलिए डरावनी लग रही कि उसके ताल ठोकने से दिल्ली की 25 सीटों पर सीधा असर पड़ा है। दिल्ली की 12 सीटें दलित प्रभाव वाली हैं। 9 सीटें मुस्लिम बहुल हैं। नई दिल्ली सहित चार वह सीटें हैं जहां किसी भी स्थिति में कांग्रेस कभी नहीं हारी। लोकसभा चुनाव में देश का मुस्लिम और दलित वर्ग का झुकाव कांग्रेस की तरफ अच्छा खासा रहा है। यदि इस 21 सीटों पर कांग्रेस 10 प्रतिशत मत भी झपट लेती है तो केजरीवाल की नैय्या फंस जाएगी। अपनी पुरानी चार सीटों पर कांग्रेस ने इस बार बहुत मजबूत उम्मीदवार उतारकर आम आदमी पार्टी की सांसे अटका दी है। पिछले दो चुनाव से केजरीवाल को वाकओवर देने वाली कांग्रेस का रूख बता रहा है कि वह सरकार बनाने के लिए नहीं बल्कि केजरीवाल की लुटिया डुबोने का मन बना लिया है।
दिल्ली चुनाव को लेकर सक्रिय हुई कांग्रेस
सबसे अहम सवाल ये है कि आखिर कांग्रेस दिल्ली चुनाव को लेकर इतनी सक्रिय क्यों हुई? इसके पीछे दो कारण देखे जा रहे हैं। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को जिस तरह की संजीवनी मिली है, उससे उसे लगने लगा है कि क्षेत्रीय दलों के दबाव से मुक्त होने का यही सही समय है। क्योंकि लोकसभा चुनाव के बाद क्षेत्रीय दल जिस तरह से कांग्रेस को आंख तरेरने लगे हैं, उससे कांग्रेस की समझ में आ गया है कि आनेवाले राज्यों के विधानसभा चुनाव में यह क्षेत्रीय दल उसे फिर पिछलग्गू बनाना चाहते हैं।
दूसरा कारण ये है कि बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने के लिए उसने जिस तरह से केजरीवाल की दिल्ली में मदद की, उससे मिली ताकत के चलते केजरीवाल कांग्रेस को दूसरे राज्यों में नुकसान पहुंचाने लगे हैं। लिहाजा, कांग्रेस को लग रहा है कि यदि इसी तरह क्षेत्रीय दल उसके वोट से ताकतवर बनते गए तो कांग्रेस एक दिन इतिहास बन जाएगी।
केजरीवाल और क्षेत्रीय दलों के लिए नया संकट
दिल्ली में कांग्रेस की आक्रामक नीति ने इंडी गठबंधन से उसे बाहर करने के क्षेत्रीय दलों के स्वर को भी मंदित कर दिया है। कांग्रेस ने केजरीवाल के जरिए क्षेत्रीय दलों को संदेश दे दिया है कि वह उनके लिए भी केजरीवाल की तरह मुसीबत बन सकती है। कांग्रेस के इस संदेश का ही प्रभाव है कि केजरीवाल के साथ खड़े क्षेत्रीय दल अपने कदम पीछे खींच लिए हैं। हर दिन नया नेरेटिव बनाकर राजनीतिक हित साधने वाले केजरीवाल अब कांग्रेस से अकेले लड़ते दिख रहे हैं।
यह कहना गलत नहीं होगा कि इस समय केजरीवाल की स्थिति एक तरफ कुंआ तो दूसरी ओर खायी वाली बन गई है। क्षेत्रीय दलों को लग रहा है कि कांग्रेस का साथ यदि छूट गया तो बीजेपी से मुकाबला करना आसान नहीं होगा। दिल्ली की राजनीति इस तरह से बदलेगी, इसका अंदाजा किसी को नहीं था। इसलिए कोई सोच भी नहीं सकता था कि 5 प्रतिशत वोट वाली कांग्रेस 54 प्रतिशत वोट वाले केजरीवाल को सकते में डाल देगी।
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