भारत गाथा: देश की पहली बड़ी लड़ाई के महानायक: परशुराम भार्गव

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भारत गाथा: देश की पहली बड़ी लड़ाई के महानायक: परशुराम भार्गव

सूर्यकांत बाली। हमें महाभारत के नाम से प्रसिद्ध एक भयानक संग्राम की याद है जो आज से करीब पांच हजार साल पहले लड़ा गया था। पर दाशराज युद्ध नामक जो पुरुवंशी सुदास और दस विरोधी राजाओं के महासंघ के बीच सरस्वती, परुष्णी और दृषव्दती नदियों के बीच महाभारत से करीब साढ़े आठ सौ वर्ष पहले लड़ा गया था, जिसमें सुदास जीते एवं दस राजाओं का महासंघ हारा। हम जानते हैं कि दाशराज युध्द से भी करीब डेढ़ सौ वर्ष पहले (यानी आज से छह हजार वर्ष पहले ) राम ने दक्षिण भारत की वनवासी जातियों की एक विराट सेना का नेतृत्व कर रावण से भयानक संग्राम किया था और जीते थे। ऐतिहासिक राम-रावण युध्द से भी करीब (एक हजार साल पहले) भगवान परशुराम ने उत्तर और पूर्व के राजाओं का एक महासंघ बनाकर आधुनिक गुजरात के हैहय राजाओं के खिलाफ एक महासंग्राम को नेतृत्व प्रदान किया था। यानी महाभारत युध्द आज से 5000वर्ष पूर्व, राम-रावण युध्द आज से 6000 वर्ष पूर्व और हैहय- परशुराम युध्द आज से करीब 7000 वर्ष पूर्व लड़े गए। अगर महाभारत युद्ध द्वापर युग के अंत में, राम-रावण युध्द और दाशराज युद्ध त्रेतायुग के अंत में लड़े गए तो परशुराम के नेतृत्व में हैहयों के विरुद्ध यह युद्ध सत्ययुग अर्थात कृतयुग के अंत में लड़ा गया। भारत के आठ हजार वर्षों के मनुपरवर्ती ज्ञात इतिहास का यह पहला महासंग्राम था, जिसके विजेता महानायक परशुराम को इस देश का बच्चा-बच्चा जानता है तो उस युध्द के कारण नहीं बल्कि अन्य कारणों से...



तो कौन थे परशुराम जिन्हें हमारा पुराना साहित्य भगवान परशुराम के नाम से पूरी इज्जत और श्रद्धा के साथ याद करता है। इतिहास में कई परशुराम हुए हैं, मगर हमनें सभी को एक कर दिया। दरअसल... एक परशुराम वो थे, जिन्होंने भीष्म के साथ इसलिए युद्ध किया था ताकि उनके (भीष्म) अपहरण करके लाई गई अम्बा (अम्बा, अम्बिका, अम्बालिका वाली अम्बा) के साथ विवाह करें, पर वे भीष्म को आजीवन विवाह न करने की प्रतिज्ञा से डिगा नही सके। इनसे एक हजार साल पहले के एक परशुराम वे थे, जिन्होंने शिव धनुष तोड़ने वाले राम के साथ विवाद किया। हैहयों से लड़ने वाले परशुराम इससे भी करीब एक हजार साल पहले हुए। हैहयों से हुए इस महासंग्राम में परशुराम ने हैहयों को एक के बाद एक इक्कीस बार पराजित किया। पर तब से हमारी स्मृतियों के इतिहास में दर्ज यह हो गया कि परशुराम ने भारत भूमि को इक्कीस बार क्षत्रियों से रहित कर दिया। क्या क्षत्रियों का इक्कीस बार विनाश कोई एक ही योद्धा कर सकता है? क्या यह संभव है? नहीं! इसलिए हमारा कहना है कि हैहयों के साथ हुए इस महायुद्ध की इस अजीब गरीब व्याख्या के कारण देश का बच्चा-बच्चा परशुराम के बारे में जितना जानता है, उसके अलावा भी परशुराम के बारे में कुछ और जरूरी बातें जान लेनी चाहिए।





परशुराम जिस कुल में जन्मे उसके आदिपुरुष का नाम भृगु था। ये वही भृगु हैं जिनके किसी वंशज के प्रयासों से वह भृगु संहिता रची गई, जिसे पढ़कर लोग अपना भविष्य जानने को उत्सुक रहते हैं। इसी भृगु के कारण उनके सभी वंशज भार्गव कहलाए। परशुराम भार्गव के पिता का नाम जमदग्नि था, इस लिए हमारी इस गाथा के कथानक के नायक को परशुराम भार्गव के अलावा परशुराम जमदग्नि भी कह दिया जाता है। इनकी माता का नाम रेणुका था और हम भारतीयों को गाथा याद है कि किसी बात पर रुष्ट अपने पिता जमदग्नि के आदेश का पालन करते हुए परशुराम ने अपने परशु (फरसा) से मां का वध कर दिया। जब प्रसन्न पिता ने वर मांगने को कहा तो उन्होंने अपनी मां का ही पुनर्जीवन मांगकर मां को फिर से पा लिया। भार्गवों को अगर (कौशिकों और कश्यपों की तरह) प्रामाणिक ब्राह्मण कुल न मानने की परम्परा चल पड़ी है तो इसका कारण परशुराम द्वारा किया गया मातृ-वध ही नजर आता है।




परम्परा से भार्गव लोग नर्मदा नदी के किनारे रहा करते थे और आनर्त (गुजरात) के हैहय राजवंश के कुलगुरू थे। परशुराम भी अपने पिता जमदग्नि के साथ नर्मदा नदी के तट पर बने अपने आश्रम में रहा करते थे। अब तो परशुराम नाम का रिश्ता ही फरसे और दूसरे कई तरह के शस्त्रों से तथा हैहयों के साथ लड़े गए युद्ध के साथ बन गया है। पर मूलतः भार्गव आयुधजीवी ब्राम्हण नहीं थे और जमदग्नि का नाम भी शस्त्र के बजाय ज्ञान और विद्या के साथ ही जोड़ा जाता है। एक विचारधारा यह भी है कि भार्गव और आंगिरस कुल के परवर्ती आचार्यों ने ही रामायण, महाभारत और पुराणों का संपूर्ण नव-संस्कार किया था और कई बाद की परम्पराओं को पुराणों में जोड़कर इन्हें लगातार नवीनतम बनाने का प्रयास किया था। भार्गव कुल इस हद तक विद्यानुरागी था कि हैहयों से मनमुटाव हो जाने के कारण अपने तिरस्कर्ता राजाओं से झगड़ने के बजाय वे लोग कभी कान्यकुब्ज में जाकर रहने लग गए थे। पर जमदग्नि के साथ हुए अपमान को उनके पुत्र परशुराम सहन नहीं कर पाए और शास्त्र विद्या का परमज्ञान प्राप्त कर वे कई राजाओं का महासंघ बनाकर हैहयों से उलझ पड़े और एक महासमर को नेतृत्व दिया जिसमें हैहय जगह-जगह हारे। उसके बाद तो कुछ ऐसा हुआ कि भार्गव की जगह परशुराम ही मानो कुल नाम पड़ गया और वह हर वंशज जो युद्ध विद्या में प्रवीण हो गया, खुद को परशुराम कहलाना ही पसंद करने लगा। इसलिए जो राम से उलझे वे भी परशुराम और जो भीष्म से लड़े वे भी परशुराम। परशुराम ने हैहयों को इक्कीस जगह पराजय दी। जाहिर है कि युध्द लंबा और भयानक चला होगा। यह अनुमान भी लगा सकते हैं कि महाभारत की तरह यह युद्ध भी कई दिन यानी इक्कीस दिन चला और इसमें हैहयों को भारी हार का सामना करना पड़ा हो। जहां युद्ध का कोई बड़ा कारण हमारे इतिहास के स्मृति पटल से लगभग पुछ चुका है। वैसे ही इक्कीस संख्या के असली अर्थ से भी हम करीब-करीब वंचित हो चुके हैं। 

( सूर्यकांत बाली की पुस्तक भारतगाथा से साभार ) 


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