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संदीप सोनवलकर, दिवंगत समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव निजी बातचीत में अक्सर कहा करते थे कि नेता तब तक ही सामयिक है, जब तक उसके बारे में चर्चा और पर्चा दोनों होते रहें। यानी मीडिया में खबर छपे और लोगों मे चर्चा हो। नेताजी ने ये बात अपने ठेठ अंदाज में कही थी लेकिन राजनीति का यही सौ आना सच है। ये सच अब शायद राहुल गांधी ने समझ लिया है। लगातार हार के बाद मेनस्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया में ट्रोल होने के बाद राहुल गांधी को समझ में आ गया है कि अगर उनको लोगों के बीच अपनी छवी बदलनी है तो कुछ तो करना ही होगा। इसलिए वो भारत यात्रा पर निकल पड़े हैं।
असल में नेशनल मीडिया और सोशल मीडिया ने लगातार ट्रोल करके राहुल की छवि एक नासमझ युवा और राजनीति में बेमन से शामिल हुए युवराज की बना दी। ऊपर से बार-बार की हार और कांग्रेस की आपसी कलह भी। राहुल का अचानक छुट्टी पर चले जाना, इसमें सबसे तगड़ा तड़का लगाता रहा। इसलिए बीजेपी और उनके समर्थक राहुल के बारे में सब सही गलत कहते रहे और धीरे-धीरे उनकी छवि नाकारा और नासमझ की बना दी गई। मजे की बात ये कि राहुल ने जब इसे बदलने के लिए कोशिश करनी शुरू की तो चुनाव प्रबंधक प्रशांत किशोर ने ही अपने प्रेजेंटेशन में इस भारत ज़ोड़ो यात्रा का नाम और पूरा फ्रेमवर्क दिया। किशोर इसे खुद लागू करना चाहते थे लेकिन पार्टी के बड़े नेताओं ने उनको बाहर का रास्ता दिखा दिया और राहुल खुद यात्रा पर निकल पड़े।
अब जाहिर है कि कदम-कदम पर सवाल किया जा रहा है कि क्या राहुल की यात्रा के फायदे होंगे या फिर सिर्फ दिखावा है। राहुल अब भी नेशनल मीडिया पर तभी दिख रहे हैं, जब कोई विवादित बयान दे रहे हैं। लेकिन इस यात्रा के जरिए सोशल मीडिया पर जरूर छाए हुए हैं। असल में सोशल मीडिया की मजबूरी यही है कि इसमें नया कंटेंट हो तभी उसे लोग देखते हैं। पीए मोदी प्रिंट से लेकर नेशनल मीडिया पर लगातार छाए रहते हैं। ऐसे में उनको सोशल मीडिया पर भी देखना बोर करता है। नया युवा जो तुरत-फुरत कमेंट और लगातार बदलाव चाहता है, उसे राहुल का ये अंदाज लुभा रहा है। उसे राहुल की टी-शर्ट से लेकर किसी का भी हाथ पकड़कर चलना बुरा नहीं, बल्कि सही लग रह है। कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार सही कह रहे हैं कि ये चुनावी नहीं राजनीतिक यात्रा है। इस यात्रा का चुनाव में अभी फायदा भले तुरंत नहीं मिले लेकिन लगातार चर्चा के कारण कांग्रेस को राजनीतिक फायद जरूर मिलेगा।
अभी राहुल के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि पहले खुद की छवी बदले और पार्टी की राजनीतिक सामयिकता बनाए रखें। ये यात्रा दोनों मायने में उनके लिए फायदेमंद है। पहला तो ये कि वो रोज नया कंटेंट दे रहे हैं, जिसे खूब देखा जा रहा है। दूसरा पार्टी के उस कैडर से मिल रहे हैं जो लगातार हार के कारण निराश हो चुका है। जरूरत सिर्फ इतनी है कि राहुल इस यात्रा के बाद भी इसी तरह मिलते रहें तो बहुत कुछ हो सकता है।
जहां तक महाराष्ट्र में राहुल की यात्रा का सवाल है तो वो राज्य में 13 दिन बिता रहे हैं, जिसमें वो मराठवाड़ा, विदर्भ और उत्तर महाराष्ट्र के इलाकों से निकलेंगे। यहां बहुत राजनीतिक फायदा तो तब दिखेगा, जब चुनाव होगा। लेकिन यात्रा के बहाने ही सही राहुल गांधी महाराष्ट्र कांग्रेस के नेताओं को एक साथ लाने में तो कामयाब हो ही गए हैं। इतना ही नहीं सरकार जाने के बाद भी गठबंधन को आगे चलाने के लिए जरूरी संवाद के तौर पर वो शरद पवार , सुप्रिया सुले और आदित्य ठाकरे के साथ भी बात कर चुके हैं। इससे ये संदेश तो गया है कि ये गठबंधन आगे भी चलता रहेगा। इसका फायदा तुरंत के तौर पर स्थानीय निकाय चुनाव में मिल सकता है। इसके साथ ही अगले चुनाव की तैयारी की ऊर्जा भी पार्टी के कैडर को मिल सकती है।
राहुल की पदयात्रा से इतना तो साफ दिख रहा है कि अगर राहुल अपने और पार्टी के लिए लोगों का नजरिया बदलने में कामयाब हो जाते हैं तो लोकसभा के चुनाव आते-आते कांग्रेस राष्ट्रीय तौर पर फिर से अपनी खोई हुई जमीन पर कुछ फसल उगाने में कामयाब हो सकती है।