भारत गाथा-10 : पहली बार हुआ किसी राजा का राज्याभिषेक, प्रजा के लिए पृथ्वी का नाश करने जा रहे राजा की कहानी

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भारत गाथा-10 : पहली बार हुआ किसी राजा का राज्याभिषेक, प्रजा के लिए पृथ्वी का नाश करने जा रहे राजा की कहानी

सूर्यकांत बाली। हमारे देश के इतिहास में राजाओं को कोई खास महत्व की दृष्टि से नहीं देखा गया, बल्कि ऋषि-मुनि-सन्त-कवि-अध्यात्म पुरुषों को ही प्रायः इतिहास पुरुष माना गया है। क्योंकि देश की सभ्यता को बनाने और बढ़ाने में इन्हीं का योगदान बहुत ज्यादा रहा है। पर इस मनोभूमिका के साथ इतिहास लिखने वालों ने अगर मनु, ऋषभ, भरत, पृथु, राम, युधिष्ठिर और जनक जैसे राजाओं को अद्भुत सम्मान दिया है तो महज इसलिए कि उनके कामकाज को राजाओं के सामान्य कर्तव्य-प्रजापालन से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण मानकर आंका गया। तो क्या किया पृथु ने? इसको सही मायनों में समझाने के लिए सबसे पहले हमारा परिचय उस कहानी से होना चाहिए जो अलग-अलग शब्दों में अलग-अलग रंगों में, अलग-अलग बलाबल के साथ वेदों से लेकर पुराणों तक किसी न किसी तरह, कहीं संक्षेप में तो कहीं विस्तार से हमें मिल जाती है।

जब पृथु ने पृथ्वी का नाश करने का निश्चय किया

कहानी छोटी सी है पर गाय को अवध्य और पूजा के लायक मानने वाले इस देश को अजीब जरूर लगती रही होगी। पृथु जब राजा बने तो इनके राज्यकाल में एक बार प्रजा के पास न खाने को अन्न रहा और न जीवन यापन का कोई साधन बाकी बचा। परेशान पृथु इस पृथ्वी का ही नाश करने की सोचने लगे और उन्होंने धनुष पर बाण चढ़ा लिया। पृथु को गुस्से में देख पृथ्वी ने गाय की शक्ल बना ली और डर के मारे वहां से भागी। आगबबूला बना पृथु गाय के पीछे भागा, पर एक जगह जाकर गाय खड़ी हो गई और पृथु से कहने लगी कि मेरा वध मत कर, मेरा दोहन कर, यानी तू मुझे मारने के बजाए, मुझे दुह ले तो मैं तेरी सारी प्रजा को उदरपूर्ति और जीवन के साधनों से भर दूंगी। पृथु ने पृथ्वी की यह पुकार सुन ली, उसे अपनी कन्या स्वीकार किया, फिर उसका दोहन कर प्रजा को सुख-सम्पन्नता से भर दिया।

पहला राजा, जिसने प्रजा को जमीन का उपयोग करना सिखाया

तो क्या है इस कहानी का मतलब? बताने की जरूरत नहीं और मामला काफी साफ है। यह कि पृथु ने अपनी प्रजा को अपने जीवन— यापन के लिए उपलब्ध जमीन का तरीके से उपयोग करना सिखाया। स्थिति कुछ वैसी ही बनती नजर आ रही है कि भारत की सम्पन्नता के शुरुआती दौर में पृथु ने कुछ वैसा ही बन्दोबस्त किया, जैसा बन्दोबस्त अकबर के राज्यकाल में राजा टोडरमल ने किया और जो हमारे मध्यकालीन इतिहास में 'बन्दोबस्त' इस नाम से ही एक बड़ी और ऐतिहासिक घटना के रूप में दर्ज है और उत्तर भारत की कृषि जमीन का बन्दोबस्त आज भी टोडरमल के बनाए तंत्र के आधार पर ही कमोबेश चल रहा है। इसलिए हैरानी नहीं कि हमारे पुराणों ने यह कहानी बताकर फिर खुद ही इसकी व्याख्या कई तरह से कर दी है। कहा कि पृथु ने लोगों को खेती करना सिखाया, उन्हें गांव और शहर बनाकर रहना सिखाया, पृथ्वी के गर्भ में छिपी औषधियों का पता लगाने का तरीका बताया और इस तरह अपनी प्रजा को तमाम तरह की दैविक और दैहिक आपदाओं से बचाया। पर पृथु का इस देश को वास्तविक योगदान कुछ और भी था। हो सकता है कि ऋषभदेव की तरह पृथु ने भी लोगों को कृषि करने या कृषि योग्य जमीन का सही इन्तजाम करने की आदत डाली हो। दोनों चूंकि करीब- करीब समकालीन हैं। इसलिए देश में कृषि को लेकर चल रही नई व्यवस्था में दोनों ने खूब हाथ बटाया तो हैरानी क्या? पर पृथु का इसके अलावा एक खास योगदान यह रहा कि उन्होंने इस देश को राज्यशासन का, सरकार चलाने का, प्रशासन का तरीका पहली बार दिया। समाज को अव्यवस्था के प्रलय से निकालकर अगर मनु ने राजा की संस्था की शुरुआत की तो उस संस्था को बाकायदा सरकार चलाने का एक तंत्र देकर पृथु ने एक वह बड़ा काम किया कि जिसके कारण वे मनु के ऊंचे आसन के बराबर मान लिए गए।

इस तरह हुआ पृथ्वी पर सबसे पहले राजा का राज्याभिषेक

ऋषि लोग पृथु के काम से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने परम्परा से राजा मान लिए गए इस वेन पुत्र को अपने नए शासन तंत्र का, अपनी सरकार का बाकायदा राजा बनाकर स्थापित करने की सोची और उसका राज्याभिषेक करने का निश्चय किया। शतपथ ब्राह्मण (5.3.5.4) में इस बात का उल्लेख है कि इस राज्याभिषेक के बाद पृथु गांवों और जंगलों में रहने वाले सभी मनुष्यों और पशुओं के राजा बन गए। अर्थात् अगर मनु ने समाज को सभ्य तरीके से रहने के नियम दिए तो पृथु के साथ नई धारणा यह बनी राजा न केवल शासक है, बल्कि सभी प्राणियों और भूमियों का स्वामी भी है। जाहिर है कि वह शासक के साथ-साथ प्रभु और स्वामी भी हो गया। आश्चर्य यह देखकर होता है कि कुछ ही पीढ़ियों में राज्य संस्था का विकास कितनी तेजी से हो गया। शतपथ ब्राह्मण ने ही बताया है कि पृथ्वी पर सबसे पहले राजा पृथु का ही राज्याभिषेक हुआ।   

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