सीपी एन्ड बरार के चीफ फॉरेस्ट कंजरवेटर लखपत राय थे। रिटायर होने के बाद वे दयालबाग स्थित राधास्वामी मठ विचारधारा से प्रभावित होकर वहीं रहने लगे थे। उनकी पत्नी का निधन हो चुका था और वे अकेले ही मठ में अपना जीवन बिता रहे थे। बाहरी दुनिया से उन्होंने सम्पर्क समाप्त कर लिया था। यहां तक कि वे अखबार भी नहीं पढ़ते और न ही रेडियो सुना करते थे। धार्मिक पुस्तकें पढ़ने लीन रहा करते थे। लखपत राय ने अपनी पत्नी विद्या देवी की स्मृति में उन सभी स्थानों में जहां वे शासकीय सेवा में पदस्थ रहे थे, वहां एक-एक कुआं खुदवाने के लिए प्रति कुआं दो हजार रुपए की राशि संबंधित डीएफओ को उपलब्ध करवाई थी। उनका निवेदन रहता था कि कुआं खुदवाने के बाद उसका फोटो उन्हें जरूर भेजा जाए। बिलासपुर फॉरेस्ट डिवीजन में भी लखपत राय पदस्थ रहे थे। मुझे भी उनका पत्र मिला। पत्र में उल्लेख किया गया था कि उनके द्वारा काफी समय पहले राशि भेज दी गई लेकिन कुआं खुदवाने का काम अभी तक अधूरा है। काम पूरा करवा कर उसकी फोटो उन्हें शीघ्र भेजी जाए।
जिन्हें कुआं खुदवाना था वे सस्पेंड हो गए
इस संबंध में जब तहकीकात की गई तो जानकारी मिली कि लखपत राय द्वारा भेजी गई राशि संबंधित रेंज ऑफिसर को सौंप दी गई थी, लेकिन रेंज ऑफिसर विभिन्न अनियमितता के कारण सस्पेंड हो गए थे। लखपत राय की भेजी राशि उनके पास ही थी। रेंज ऑफिसर के सस्पेंड होने के कारण कुआं खुदवाने का काम पूरा नहीं हो पाया था। मुझे अहसास हुआ कि कुआं निर्माण से लखपत राय की भावनाएं जुड़ी हुई थीं, इसलिए इस काम को किसी भी हालत में पूरा करने का निश्चय किया। सस्पेंड होने के कारण रेंज ऑफिसर आसानी से उपलब्ध नहीं हो पा रहे थे। किसी तरह उनको ढूंढकर समझाया गया कि एक रिटायर सीनियर ऑफिसर की भावनाओं से जुड़ा हुआ काम है इसलिए इसमें ढिलाई और विलंब उचित नहीं होगा। रेंज ऑफिसर इस बात से सहमत हुए और उन्होंने उस समय के रेंज ऑफिसर कटघोरा को राशि सौंप दी। यह कुआं बिलासपुर-कटघोरा मार्ग पर स्थित चटुआ भौना प्लांटेशन क्षेत्र के मुख्य सड़क के बाजू में खुदवाया गया। कुएं की चारों ओर प्लेटफॉर्म बनाकर पैराफिट वॉल पर लोहे के एंगल की रॉड में घिर्री लगाई गई जिससे बाल्टी की मदद से पानी खींचा जा सके। इस कुएं के खुदने से प्लांटेशन क्षेत्र के मजदूरों को पानी की सुविधा उपलब्ध हुई, बल्कि सड़क से गुजरने वाले राहगीरों को भी आसानी से पानी मिलने लगा। कुएं की दीवार पर लखपत राय की पत्नी की स्मृति का पटल लगाया गया। कुएं की तस्वीरें जब लखपत राय को भेजी गई तब उन्होंने धन्यवाद स्वरूप एक भावभीना पत्र भेज कर अपनी खुशी जाहिर की।
गांव के प्रत्येक घर में हुई अवैध लकड़ी की जब्ती
पेन्ड्रा रेंज के एक ग्रामीण से मुझे शिकायत मिली कि उसके गांव में एक अन्य ग्रामीण द्वारा फॉरेस्ट एरिया से भारी मात्र में अवैध रूप से लकड़ी काट कर छिपाई गई है। एक एसीएफ को इसकी जांच के लिए भेजा गया। जब यह अधिकारी उस गांव में पहुंचे तो उनको एक काश्तकार के यहां भारी मात्रा में अवैध लकड़ी मिली। फॉरेस्ट ऑफिसर जब कार्रवाई में व्यस्त थे, तब ग्रामीणों ने जानकारी दी कि अगले 2 घरों को छोड़कर बने घर में भी अवैध लकड़ी रखी गई है। ऑफिसर वहां तुरंत गए तो वहां भी उन्हें अवैध लकड़ी मिली जिसे उन्होंने जब्त कर लिया। इसके बाद पास के दूसरे गांव से उन्हें ऐसी शिकायतें मिली। फॉरेस्ट ऑफिसर ने वहां पहुंचकर लकड़ी की जब्ती बनाने लगे। उस समय पेन्ड्रा से विधायक मथुरा प्रसाद दुबे थे। वे मध्यप्रदेश शासन के मंत्री थे। जब्ती की कार्रवाई जब चरम पर थी तब ग्रामीणों ने फोन से मथुरा प्रसाद दुबे को इसकी सूचना दे कर जब्ती की कार्रवाई रोकने का अनुरोध किया।
अवैध लकड़ी की जब्ती बनी मुसीबत
मथुरा प्रसाद दुबे ने इस संबंध में बिलासपुर के फॉरेस्ट कंजरवेटर को फोन किया और तुरंत अवैध लकड़ी की जब्ती रोकने के निर्देश दिए। कंजरवेटर ने मुझे बुला कर मेरे अधीनस्थ एसीएफ द्वारा की जा रही कार्रवाई रोकने के निर्देश देते हुए कहा कि आप लोगों ने एक मंत्री की नाराजगी मोल ली है और इसका खामियाजा भुगतने के लिए आप लोग तैयार रहें। कंजरवेटर साहब की बात सुन कर मैं अंचभित रह गया। फॉरेस्ट विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी होने के नाते उन्हें हम लोगों का बचाव करना चाहिए था लेकिन उल्टे वे हम लोगों पर दोषारोपण करने लगे। उनका व्यवहार अप्रत्याशित था।
अन्य क्षेत्रों ने नहीं किया सीपी एंड बरार के अनुशासन का अनुसरण
पूर्व सीपी एंड बरार प्रदेश में यह प्रथा प्रचलित थी कि यदि कोई जूनियर ऑफिसर अपने से सीनियर ऑफिसर के उच्चाधिकारी से मिलना चाहता था, तब उसे अपने तत्कालिक सीनियर ऑफिसर से अनुमति लेती पड़ती थी। अनुमति मिलने के बाद ही वह उच्चाधिकारी से मिल पाता था। सीपी एंड बरार में अनुशासन उच्च स्तर का था। जब भी कोई कनिष्ठ अधिकारी उच्चाधिकारी से मिलने जाता था, तब उच्चाधिकारी सबसे पहले यह ही प्रश्न करते थे कि क्या उनसे मिलने के लिए उन्होंने अपने तत्कालिक वरिष्ठ अधिकारी से अनुमति ली कि नहीं। यह व्यवस्था अनुशासन स्तर के पालन के लिए जरूरी थी। दरअसल यह व्यवस्था ब्रिटिश शासन की परम्परा थी। नवनिर्मित मध्यप्रदेश में अन्य क्षेत्र शामिल तो हुए लेकिन वहां ऐसा अनुशासन नहीं था। हमारे कंजरवेटर साहब विंध्य प्रदेश से आए हुए अधिकारी थे। विंध्य प्रदेश के कनिष्ठ अधिकारी अपने तात्कालिक सीनियर ऑफिसर से बिना अनुमति लिए हुए कंजरवेटर साहब से मिलते थे। ये अधिकारी कंजरवेटर साहब के वार्तालाप अपने वरिष्ठ अधिकारी के सामने बखानते थे। इसका सीधा तात्पर्य यह था कि वे कंजरवेटर साहब के निकट हैं और उनके वरिष्ठ अधिकारी उनकी इस अनुशासनहीनता का कुछ बिगाड़ नहीं सकते। कंजरवेटर साहब ने इस प्रकार की अनुशासनहीनता को खूब बढ़ावा दिया।
फॉरेस्ट महकमे के बड़े और छोटे भैया
कंजरवेटर साहब के दो पुत्र थे, जिन्हें बड़े भैया और छोटे भैया के नाम से बिलासपुर का पूरा फॉरेस्ट महकमा पहचानता था। बड़े भैया ने एक बार शासकीय जीप की मांग करते हुए कहा कि एरोड्रम के पास हुए हवाई जहाज एक्सीडेंट को देखने के लिए वे जीप को ले जाना चाहते हैं। शासकीय नियम का हवाला दे कर उन्हें जीप देने से मना कर दिया गया। उन्हें समझाया गया कि शासकीय वाहन का उपयोग सिर्फ दौरे या घर से ऑफिस आने-जाने के लिए ही किया जाता है, घूमने-फिरने के लिए नहीं। बड़े भैया इस बात को सुनकर नाराज हो गए। पिताजी के पास पहुंचकर उन्होंने खूब हाय-तौबा मचाई लेकिन कंजरवेटर पिता शासकीय नियम के कारण चुप ही रहे।
टाइगर को जंगल का राजा यूं ही नहीं कहा जाता
बिलासपुर में दौरे के समय बेलघाना के पास स्थित फॉरेस्ट रेस्ट हाउस पुणू में कैंप कर रहा था। यह रेस्ट हाउस घने जंगल के बीच था। पास के ही घने जंगल में एक कूप निकाला गया था जिसमें पेड़ों की मार्किंग कर नीलाम में रखा जाना था। इस कूप के निरीक्षण के लिए ही पुणू में रुका था। कूप तक जीप से पहुंचने के लिए खड़े पेड़ों के बीच छोटी मोटी झाड़ियों की सफाई कर बहुत ही संकरा रास्ता बनाया गया था। मेरे साथ गर्मी के मौसम में एक रेंज ऑफिसर और दो फॉरेस्ट गार्ड जीप में बैठकर निरीक्षण करने के लिए दोपहर के 12 बजे इसी रास्ते से जा रहे थे। अचानक हम लोगों की निगाह जीप की दांयी ओर लगभग 10-15 फीट दूरी पर गई। एक हष्ट-पुष्ट टाइगर पेड़ की घनी छाया में बैठकर आराम कर रहा था। जीप की आवाज सुनकर टाइगर सतर्क और चौकन्ना होकर थोड़ा ऊपर की ओर उठा लेकिन वह खड़ा नहीं हुआ और न ही वहां से भागा। संभवत: यह उसकी शान के खिलाफ था। टाइगर के इस तरह के व्यवहार को देखकर मुझे आभास हुआ कि उसे यूं ही जंगल का राजा नहीं कहते।
टाइगर को देखकर फॉरेस्ट गार्ड बौराकर बघवा-बघवा बुदबुदाने लगा
हम लोग उसे बहुत नजदीक से देख ही रहे थे कि जीप में पीछे बैठे हुआ एक फॉरेस्ट गार्ड टाइगर को देखकर बौरा गया। वह इतना डर गया कि वह धीरे-धीरे ‘बघवा-बघवा’ बुदबुदाने लगा। रेंज ऑफिसर ने धीरे से उसे धकियाते और डांटते हुए चुप रहने को कहा लेकिन उसकी घिग्गी बनती जा रही थी। बड़ी मुश्किल से वह चुप हुआ। हम लोग टाइगर को देखते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे लेकिन टाइगर अपने स्थान से हिला-डुला तक नहीं। मैंने रेंज ऑफिसर को संकेत दिया कि जीप को मोड़ वापस ले लें ताकि टाइगर को पुन: एक बार और नजदीक से देखा जा सके। रेंज ऑफिसर अनुभवी व्यक्ति थे। उन्होंने कहा कि जीप को वापस लेना उचित नहीं होगा क्योंकि संकरा रास्ता पेड़ों के बीच से ही बनाया गया है। टाइगर यदि अटैक कर देगा तो हम लोग कुछ भी नहीं कर पाएंगे। जीप को दांयी या बांयी ओर भी कहीं भी नहीं ले जा पाएंगे। एक हष्ट-पुष्ट टाइगर को इस तरह प्राकृतिक रूप से देखना मेरे लिए सुखद अनुभूति थी जो मेरे स्मृति पटल पर अनमोल धरोहर के रूप में स्थायी रूप से अंकित हो चुकी थी।
( लेखक मध्यप्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक रहे हैं )