कला संस्कृति, प्राकृतिक संसाधनों एवं धर्म आध्यात्म दर्शन से परिपूर्ण मां नर्मदा की समृद्ध ऋषि परंपरा को अपने हृदय में समेटे हुये मध्यप्रदेश का आविर्भाव 1 नवंबर 1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग के अंतर्गत हुआ । महाकौशल, विन्ध्य, मध्यभारत, भोपाल राज्य तथा सी.पी. बरार एवं विदर्भ का कुछ भाग मिलाकर नये मध्यप्रदेश का जन्म हुआ । भारत देश की धड़कन कहे जाने वाले इस प्रदेश को मध्यप्रदेश कहना ही अपने आप मे महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि शरीर में जैसे हृदय का स्थान है वैसे मेरे देश में मध्यप्रदेश का स्थान है । यहां से प्राप्त शक्ति संपूर्ण देश को ऊर्जा प्रदान करती है। इसलिए इसे संभावनाओं का प्रदेश भी कहा जाता है ।
समृद्ध विरासत में श्रीरामपथगमन के चिन्ह
अतीत में भी अपनी समृद्ध विरासत में श्रीरामपथगमन के चिन्ह, प्रतीक और मान्यताएं जन-जन में बसी हुईं हैं । गोस्वामी तुलसीदास ने भी मध्यप्रदेश की जीवन रेखा मां नर्मदा को श्रीराम कथा से तुलना करते हुए शिव पुत्री कहा है और इसकी फलश्रृति को श्रीराम कथा की फलश्रृति से जोड़ते हुए ‘सकल सिद्धि सुख संपति रासी’ कहकर हम सबके भाग्य की सराहना की है । हम मध्यप्रदेशवासियों को मां नर्मदा के रूप में महाकाल का आशीर्वाद प्राप्त है । जिसका हम प्रत्यक्ष प्रभाव भी देख रहे हैं । प्राकृतिक परिवार विकास की परम्परा में नवम्बर 2000 में हमारा लघुभ्राता छत्तीसगढ़ हमसे अलग होकर अब विकास की स्पर्धा में रत है ।
आर्थिक समृद्धि के पथ पर लगातार अग्रसर
हम सबकी आर्थिक समृद्धि के लिये मध्यप्रदेश की नर्मदा सागर परियोजना, बालघाट में मलाजखंड की ताप परियोजना, विजयपुर उर्वरक कारखाना, गांधी सागर बांध, विंध्याचल सुपर ताप बिजली घर, तवा, बारना, कोलार, पुनासा, ओंकारेश्वर जैसे शक्ति ऊर्जा और उर्वरकता के स्रोत विकास के नये आयाम दे रहे हैं तो धर्म, संस्कृति, अध्यात्म के स्थल भी न केवल भारत बल्कि वैष्विक स्तर पर श्रद्धा विश्वास के केन्द्र के रूप में हैं । इनमें उज्जैन का महाकाल मंदिर, चित्रकूट, ओंकारेश्वर, नेमावर का नाभि स्थल तीर्थ मां नर्मदा का उद्गम स्थल मां नर्मदा के उभय तट ओरछा के राजाराम मंदिर प्रमुख हैं ।
आदिमानव का विकास हमारे ही प्रदेश में
पुरातात्विक के अध्ययन से भी स्पष्ट हुआ कि जबलपुर से हंडिया तक नर्मदा के उत्तर और दक्षिण पर पाये जाने वाले शिलालेख एवं जीवाश्म बताते हैं कि आदिमानव का विकास हमारे ही प्रदेश में हुआ है । मध्यप्रदेश की राजधानी ‘‘भोपाल का ताल और सब तलैया’’ एक प्रसिद्ध मुहावरा हो गया। अपनी गौरवशाली परंपराओं जनजीवन, संस्कृति संस्कार, समृद्धि एवं प्राकृतिक सौन्दर्य के शिखर सतपुड़ा, विंध्याचल जैसे पर्वत श्रृंखला पचमढ़ी, माण्डु जैसे अनेक दुर्गम दुर्ग से सजे संवरे प्रकृति दर्शन के स्थानों की सुन्दरता प्रदेश की पुष्टता पर चार चांद लगा देती है ।
साहित्य और संस्कृति के बेजोड़ उदाहरण
साहित्य और संस्कृति की दृष्टि से कालीदास, राजाभोज, राजा भृर्तहरि जैसे चिंतक मौलिक विचारक जिनकी रचनाएं एवं कृतियां संस्कृत साहित्य के मूल्यवान कोष में भारतवर्ष की अमर धरोहर है। राष्ट्र को दिशा देने वाले राष्ट्रकवि माखनलाल चतुर्वेदी, शिवमंगलसिंह सुमन एवं श्रीकृष्ण सरल ने मध्यप्रदेश की गौरव गाथाओं का मान बढ़ाया है । राजा विक्रमादित्य की न्यायप्रियता, रानी दुर्गावती का शौर्य चन्द्रशेखर आजाद, तात्याटोपे, राजा भाऊ महाकाल जैसे मध्यप्रदेश की माटी के लालों क्रांतिकारी देशभक्तों से भरा कर्तृत्व भारत के इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों पर अंकित है ।
सभी वर्गों के लिए कल्याणकारी योजनाएं
इन्ही देशभक्तों का त्याग और तपस्या का प्रतिफल है कि मध्यप्रदेश ने सुशासन और जनकल्याण नीतियों के लिये देश को दिशा देने वाली सकारात्मक सोच वर्तमान पीढ़ी को प्रदान किया है। इसी प्रकार रचनात्मक योजनाओं जिनमें लाडली लक्ष्मी योजना, कन्या विवाह योजना, प्रतिभा किरण योजना, प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक गरीब वर्ग के विद्यार्थियों को दी जाने वाली छात्रवृत्तियां, प्रतिभा प्रोत्साहन योजनाएं अन्नपूर्णा योजना, मजदूर सुरक्षा योजना, स्वास्थ्य के क्षेत्र में गरीब वर्ग को सुविधा पहुंचाने वाली आयुष्मान योजना क्रियान्वित की जा रही है ।
प्रदेश के नेतृत्व की देश में पहचान
इस तरह की अनेक जनहित कार्य की योजनाओं के सफल क्रियान्यन के कारण प्रदेश के नेतृत्व की देश में पहचान बनी है । यह प्रदेश आदिवासी प्रदेश के रूप में जाना जाता है । अतीत में हमारे आदिवासी भाई बहिनों ने तो त्रेता युग में श्रीराम वनगमन के समय में अपने मधुर व्यवहार से श्रीराम, श्रीसीता एवं उनके अनुज लक्ष्मण को रोककर न केवल उनसे आत्मीय संबंध बना प्रभु को प्रसन्न किया बल्कि गांव की वधुटियों ने तो अपने भोलेपन का भाव प्रदर्शित कर जगत जननी सीता को आशीर्वाद भी प्रदान किया था । मध्यप्रदेश के गोंड जनजाति का तो स्वर्णिम इतिहास रहा है।
बीमारू राज्य से विकासशील की श्रेणी में आया
हमारे मुख्यमंत्रियों की परम्परा में शिवराजसिंह चौहान ने अपनी सूझबूझ, कल्पनाशीलता और अपने कर्तव्यबोध के चलते इसे बीमारू राज्य के घेरे से बाहर निकालकर विकासशील प्रदेश की श्रेणी में ला दिया । इसमें न केवल सुशासन का प्रभाव बल्कि जनता जनार्दन का भी पूर्ण सहयोग प्राप्त हुआ है । अतीत में शांति के टापू कहे जाने वाले इस राज्य ने सामाजिक आर्थिक, धार्मिक एवं राजनैतिक क्षेत्र में हम सभी का मार्गदर्शन किया है । हमारे वर्तमान राज्यपाल मंगूभाई पटेल सामाजिक समरसता और भेदभाव रहित वातावरण देने के लिये अपने कार्यकाल में पूर्व माननीय राज्यपालों की परंपरा को और आगे बढ़ा रहे हैं । अपनी जमीन की जड़ों का मजबूत करता हुआ यह प्रदेश जनता जनार्दन के आशीर्वाद से पुष्पित और पल्लवित हो इन्हीं शुभकामनाओं के साथ हम विकास और प्रगति के पथिक बनें ।
(लेखक पूर्व राज्यसभा सांसद और तुलसी मानस प्रतिष्ठान, भोपाल के कार्याध्यक्ष हैं।)