डॉ. वेदप्रताप वैदिक। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया मोहन भागवत ने यह बिल्कुल ठीक कहा है कि शादी की खातिर धर्म-परिवर्तन नहीं किया जाना चाहिए। अक्सर यह देखा जाता है कि जब किसी हिंदू और मुसलमान लड़के और लड़की के बीच शादी होती है तो उनमें से कोई एक अपना धर्म-परिवर्तन करवा लेता है। कई बार तो यह भी देखा गया है कि शादी भी इसीलिए की जाती है कि किसी का धर्म-परिवर्तन करवाना है। यह तो धर्म-परिवर्तन नहीं, धर्म-हनन है। यह अधर्म नहीं तो क्या है?
लालच आधारित धर्मांतरण ने खून की नदियां बहाई हैं
शादी का लालच तो रुपयों और ओहदों के लालच से भी बुरा है। धर्म-परिवर्तन वही किसी हद तक ठीक माना जा सकता है, जो बहुत सोच-समझकर, पढ़-लिखकर और लालच व भय के बिना किया जाए। दुनिया में ज्यादातर धर्म-परिवर्तन भय, लालच या धोखे से किए जाते हैं। ईसाईयत और इस्लाम का इतिहास ऐसी घटनाओं से भरा पड़ा है। यदि ऐसी घटनाएं स्वयं ईसा मसीह या पैगंबर मुहम्मद के सामने होतीं तो क्या वे उन्हें उचित ठहराते? बिल्कुल नहीं। तो उनके अनुयायी यही सब कुछ करने पर क्यों तुले रहते हैं? इसका कारण उनकी अंधभक्ति और अज्ञान है। इसी कारण यूरोप और पश्चिम एशिया में खून की नदियां बहती रही हैं। इन मुल्कों में महत्वाकांक्षी लोगों ने मजहब को सत्ता और अय्याशी के साधन के रूप में इस्तेमाल किया।
मजहब मजबूरी और मोहब्बत आजादी है
भारत भी इस प्रवृत्ति का शिकार कई बार हुआ, लेकिन अब जो आधुनिक भारत है, उसे अपने आप को इस अंधकूप में गिरने से बचाना होगा। दो व्यक्तियों में यदि पति-पत्नी का संबंध बनता है और उसका आधार परस्पर प्रेम और पसंदगी है तो उससे बड़ा धर्म कोई नहीं है। सारे धर्म और मजहब उसके आगे छोटे पड़ जाते हैं। मज़हब तो माँ-बाप का दिया होता है और मोहब्बत तो खुद की पैदा की हुई होती है। मजहब मजबूरी है और मोहब्बत आजादी है। इस आजादी को आप मजबूरी का गुलाम क्यों बनाएं? पति और पत्नी, दोनों को अपना-अपना नाम, काम और मजहब बनाए रखने की आजादी क्यों नहीं होनी चाहिए? मेरे ऐसे दर्जनों मित्र देश और विदेशों में हैं, जिन्होंने अंतरधार्मिक शादियां की हैं, लेकिन उनमें से किसी ने भी अपना धर्म-परिवर्तन नहीं करवाया। भारत में तो धर्म से भी ज्यादा जातियों ने कहर ढाया है। धर्म तो बदल सकता है लेकिन आप जाति कैसे बदलेंगे? अंतरजातीय विवाह ही जातिवाद को खत्म कर सकता है। यदि भारत में अंतरधार्मिक और अंतरजातीय विवाह बड़े पैमाने पर होने लगें तो राष्ट्रीय एकता तो मजबूत होगी ही, लोगों के जीवन में समरसता और आनंद का अतिरिक्त संचार भी तेजी से होगा।