रवि अवस्थी@भोपाल
केंद्रीय संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया यदि यह कहते हैं कि डॉ.मोहन यादव देश के ऐसे पहले मुख्यमंत्री हैं जो पहली ही मुलाकात में उद्यमियों को लुभाने में सफल रहे। वह समस्या की जड़ तक पहुंचकर उसका त्वरित निराकरण भी करते हैं।
सिंधिया गलत नहीं हैं। वाकई, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने अपने अल्प शासन काल में जो सफल नवाचार किए, उनमें कई अनुकरणीय कहे जा सकते हैं। इनमें औद्योगिक निवेश को बढ़ावा देने अंचलवार रीजनल इंडस्ट्रियल कॉन्क्लेव की सफलतम श्रृंखला भी एक है। मौजूदा साल में ही अब तक हुई इस तरह की तीन कॉन्क्लेव के जरिए मध्यप्रदेश की धरती पर करीब दो लाख करोड़ के निवेश प्रस्ताव मिल चुके हैं। इनमें कई पर काम भी शुरू हो गया है। यह सिलसिला जारी है। वर्षांत तक दो और बड़ी कॉन्क्लेव बुंदेलखंड और विंध्य में आयोजित की जानी हैं।
औद्योगिक निवेश किसी भी राज्य के आर्थिक विकास की रीढ़ माना जाता है। विशेषकर मध्यप्रदेश जैसा कृषि प्रधान राज्य जो देश का हृदय प्रदेश होने से बंदरगाहों जैसे संसाधनों से वंचित है। जहां करारोपण या राज्य के खनिज संसाधनों का दोहन ही इसकी आर्थिक शक्ति का प्रमुख स्त्रोत हो, वहां औद्योगिक निवेश के लिए वर्ष में सिर्फ एक ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट को पर्याप्त नहीं माना जा सकता। वर्ष 2007 के बाद से मध्यप्रदेश में अब तक इस तरह की सात ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट हुईं, लेकिन इनमें मिले 10 फीसद निवेश प्रस्ताव ही यहां की धरा पर उतर सके। सिर्फ आठ माह पहले मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने डॉ.मोहन यादव ने अतीत के इस कटु अनुभव से सबक लिया। उन्होंने प्रदेश के समग्र औद्योगिक विकास के लिए स्थानीय परिस्थिति और अन्य अनुकूलन की अवधारणा पर आंचलिक कॉन्क्लेव की श्रृंखला शुरू की और उनका यह प्रयोग अब तक सफल रहा है।
गर्भकाल …
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मुख्यमंत्री ने पहली कॉन्क्लेव जब उज्जैन में की तो यही माना गया कि अन्य मुख्यमंत्रियों की तरह उनका फोकस भी सिर्फ अपने गृह नगर पर है, लेकिन जबलपुर में दूसरी कॉन्क्लेव का आयोजन कर डॉ.यादव ने आलोचकों की न केवल इस गलतफहमी को दूर किया, बल्कि दोनों ही कॉन्क्लेव में मिले करीब 1.80 लाख करोड़ के निवेश प्रस्ताव हासिल कर अपनी कार्यकुशलता को भी साबित किया। इसके लिए उन्होंने उन शहरों में भी समिट की जो विशेष प्रकार के उद्योगों के लिए जाने जाते हैं। देश के नामचीन उद्योगपतियों से मुलाकात कर डॉ.यादव उन्हें प्रदेश में निवेश के लिए राजी करने में भी सफल रहे।
दरअसल, प्रदेश में औद्योगिक निवेश में बाधा का एक बड़ा कारण यहां के तंत्र की जटिलताएं रहीं। जो उद्यमियों को इतना बेजार कर देती थीं कि वह थक हारकर निवेश से ही तौबा कर लेता था। यही वजह है कि बीते दो दशक में प्रदेश को करीब तीस लाख करोड़ रुपए के निवेश प्रस्ताव तो मिले लेकिन इनमें से सिर्फ 10 फीसद ही जमीन पर उतर पाए।
इस समस्या से निपटने के लिए तत्कालीन सरकार ने भी सिंगल विंडो जैसे उपाय किए। औद्योगिक नीति में बदलाव हुए, लेकिन अपेक्षित सफलता हासिल नहीं हो सकी। इसे देखते हुए मुख्यमंत्री डॉ.यादव ने मंत्रालय से इतर जिलों में ही फेलिसिएशन सेंटर्स की शुरुआत कर इन्वेस्टर्स पोर्टल भी तैयार कराया। सरकार की इस पारदर्शी कार्यशैली ने उद्यमियों को आकर्षित किया और बात बन गई।
सुशासन की ओर बढ़ते कदम
यूं भी सुशासन के लिए स्पष्ट नीति व कामकाज में पारदर्शिता बेहद अहम है। इनके अभाव में आप दिखावे के तौर पर लाख जतन करते रहिए, इससे न तो प्रदेश का भला होगा न ही आमजन का। मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने महज आठ माह के शासनकाल में यह दिखा दिया कि मंशा ठीक हो और कामकाज करने की इच्छा शक्ति हो तो कोई भी समस्या सुशासन में बाधक नहीं बन सकती। औद्योगिक विकास हो या सामाजिक न्याय क्षेत्र। मुख्यमंत्री डॉ.यादव ने इस दिशा में अब तक जो निर्णय लिए, वे उनकी दूरदृष्टि व दूरगामी सोच को परिलक्षित करते हैं। डॉ.यादव के फैसलों में उनके संगठन के सूत्र वाक्य अंत्योदय की झलक भी देखी जा सकती है।
राष्ट्रद्रोहियों को कड़ा संदेश
मसलन, पहली ही कैबिनेट बैठक में यदि वह उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने व विद्यार्थियों की समस्या दूर करने कॉलेजों में डिजी लॉकर्स जैसी सुविधा शुरू करने का निर्णय लेते हैं तो आमजन, विशेषकर ग्रामीणों की समस्या दूर करने सायबर तहसीलों की स्थापना भी कराते हैं, ताकि किसानों को आसानी से उनकी जमीनों से जुड़े अभिलेख मिल सके। वह नामांतरण व राजस्व से जुड़े मामलों के निराकरण के लिए राज्यव्यापी अभियान चलाते हैं। लोगों को ध्वनि प्रदूषण से निजात दिलाने वह लाउड स्पीकर की तेज आवाज पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लेते हैं तो खुले में मांस के विक्रय पर भी प्रतिबंध लगाया जाता है। हालांकि, उनके इन शुरुआती फैसलों को 'हिंदू हार्ड कोर' वाली सियासत से जोड़कर देखा जाता है, लेकिन राष्ट्रवादी सोच से ओतप्रोत डॉ.यादव इसकी परवाह नहीं करते। वह खुलकर सनातन धर्म की रक्षा की पैरवी करते हैं तो दो टूक लहजे में राष्ट्रद्रोहियों को कड़ा संदेश देने में भी नहीं चूकते।
महिला, किसान और अंत्योदय पर जोर
सामाजिक न्याय क्षेत्र की बात करें तो मुख्यमंत्री डॉ. यादव महिला सशक्तिकरण के लिए प्रतिबद्ध हैं तो किसानों की समस्याओं से भी वाकिफ हैं। मध्यप्रदेश संभवतया पहला राज्य है, जिसने मोटे अनाज के उत्पादन पर प्रति किग्रा दस रुपए का अनुदान देने का निर्णय लिया। यह फैसला भी मुख्यमंत्री डॉ.यादव ने अपनी दूसरी कैबिनेट बैठक में लिया। वहीं, दूध उत्पादकों को लाभ पहुंचाने की गरज से पांच रुपए प्रति लीटर अतिरिक्त राशि देने का फैसला भी वह लेते हैं। मध्यप्रदेश में गौ पालन व संवर्धन के लिए कदम उठाते हुए गौशालाओं में खुराक राशि दोगुना करने, गौशालाओं का निर्माण, सड़कों पर घूमते निराश्रित पशुओं और इनसे होने वाले सड़क हादसों भी उनकी चिंता का विषय है।
अपने अब तक के कार्यकाल में शायद ही कोई ऐसी कैबिनेट बैठक रही हो, जब किसानों के हित में निर्णय न लिए गए हों। प्रदेश में सिंचाई क्षमता बढ़ाने इनसे जुड़े प्रस्तावों को मंजूरी, बिजली व्यवस्था में सुधार जैसे कदम भी डॉ.यादव ने अपने इस अल्प शासनकाल में उठाए। वर्षों से विवादों में उलझी कालीसिंध-पार्वती-चंबल सिंध लिंक परियोजना को सुलझाकर इस मामले में किए गए अंतर्राज्यीय समझौते को उनकी बड़ी सफलता माना गया। प्रदेश में बंद पड़ी विवादित मिल्स के श्रमिकों के हित में लिए गए निर्णय व तेंदूपत्ता संग्राहकों की मजदूरी में एक हजार रुपए का इजाफा, उनकी गरीब कल्याण की सोच का ही परिणाम हैं।
पूर्ववर्ती के काम को आगे बढ़ाया
आमतौर पर नया शासक पूर्ववर्ती सरकार के फैसलों के इतर अपनी नई लाइन खींचने का जतन करता है, लेकिन मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने इससे परहेज किया। महिलाओं के सशक्तिकरण से जुड़ी योजनाएं हों या किसानों से जुड़े काम, डॉ.यादव अपने पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में शुरू कार्यों को बखूबी आगे बढ़ा रहे हैं। वहीं, संगठन से भी उनका बेहतर समन्वय है। एक मंच से वह अपनी सरकार चलाने की कार्यशैली को स्वयं विनोदी अंदाज में उद्धृत भी कर चुके हैं। यानी उनका भरोसा समन्वय बनाकर काम करने में है। यही नहीं, सत्ता व दायित्वों के विकेंद्रीकरण में भी वह पीछे नहीं। विधायकों को उनके विधानसभा क्षेत्रों के लिए सौ करोड़ रुपए तक के विकास कार्यों का रोडमैप बनाने प्रेरित करना, जिला सरकार की अवधारणा को आगे बढ़ाना, संभागस्तर पर पहुंचकर कामकाज की समीक्षा, आंचलिक स्तर पर औद्योगिक विकास, जिले के प्रभारी मंत्रियों को संबंधित जिलों में कामकाज की पूर्ण स्वतंत्रता और विधायकों की मांगों को मंच से सहजता के साथ मंजूरी देना आदि इसके उदाहरण हैं। एक उत्कृष्ठ मुखिया की यही पहचान है।
चुनौतियां कम नहीं
डॉ.यादव मध्यप्रदेश के पहले पीएचडी धारक मुख्यमंत्री हैं। उच्च शिक्षित होने के साथ वे आध्यात्मिक ज्ञान से भी परिपूर्ण हैं। 'द सूत्र' के एक कार्यक्रम में फिल्म अभिनेता आशुतोष राणा के साथ साक्षात्कार में मुख्यमंत्री ने जिस खूबी के साथ योग और जीवन दर्शन की व्याख्या की, यह उनके आध्यात्मिक ज्ञान को प्रदर्शित करता है। यही नहीं, डॉ.यादव इस दर्शन को जी भी रहे हैं। स्वयं को स्वस्थ और हर पल ऊर्जावान बनाए रखने के लिए विरासत में मिले संस्कारों को उन्होंने पद की व्यस्तता के बीच भी नहीं छोड़ा। इन सबसे बढ़कर उनका हंसमुख स्वभाव, सहज, सरल तथा विनोदपूर्ण भाषण शैली... किसी भी नेता के ये गुण उसे मॉस लीडर बनाने में सहायक होते हैं।
कहते हैं, शीर्ष पर पहुंचने से ज्यादा कठिन इस पर बने रहना होता है। किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री के लिए केंद्र और अपने मंत्रिमंडल सहयोगियों, जनप्रतिनिधियों से सामंजस्य बनाते हुए जनापेक्षाओं पर खरा उतरना किसी चुनौती से कम नहीं होता। ये चुनौतियां मध्यप्रदेश के 19वें मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव के समक्ष भी हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। इस लेख में उनके निजी विचार हैं।)