आखिर मणिपुर की अराजक भीड़ को हिंसा का ईंधन कहां से मिल रहा है

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Dr. Girija Kishor Pathak
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आखिर मणिपुर की अराजक भीड़ को हिंसा का ईंधन कहां से मिल रहा है

3-4 मई 23 का एक लोमहर्षक वीडियो 19 जुलाई को पूरी दुनिया में वायरल हो गया। लोकतंत्र में नारी अत्याचार की पराकाष्ठा। शब्द लिखने में भी अंगुलियों के पोर कांप रहे हैं। 25 दिन बाद एफआईआर और 77 दिन में महज एक अपराधी की गिरफ्तारी की जानकारी ने राज्य की कानून व्यवस्था और सत्ता के प्रति भारतीयों के विश्वास को डगमगा दिया। मूक रहकर चीर हरण का दृश्य देखती ये सत्तायें और सियासी किरदार नारी अस्मिता, अस्तित्व और सम्मान की रक्षा करने में असफल हैं।  यही नहीं गत सप्ताह भीड़ ने पुलिस महानिरीक्षक बाडर अफेयर एवं नारकोटिक्स कबीब के. आईपीएस की कार पर हमला कर आग लगा दी और एक सुरक्षाकर्मी को आहत कर दिया। कबीब कार में से उतर गए थे, इसलिए बच गए, लेकिन प्रश्न यह उठता है कि भीड़ को राज्य एवं राष्ट्र की वैधानिक शक्ति के विरोध का ईंधन कहां से मिल रहा है।





मणिपुर के सीएम का चौंकाने वाला बयान





3 मई की इस शर्मसार करने वाली घटना के विषय में मुख्यमंत्री मणिपुर का यह कथन चौकाने वाला है कि मैंने कल ही वीडियो देखा और घटना पर अपराधियों के विरुद्ध त्वरित कठोर कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं। आखिर मुख्यमंत्री के पास इतना बड़ा इंटेलीजेंस का अमला रहता है जिसका काम ही उन्हें रोज की घटनाओं से अवगत कराना होता है फिर आज तो मणिपुर के हालत और चिंताजनक हैं तो पल-पल की रिपोर्ट आती होगी। लूटे गए सरकारी हथियार और गोला-बारूद ढाई माह बाद भी बरामद होने शेष हैं। फिर मुख्यमंत्री की इस बात को कौन मानेगा कि घटना कल ही पता लगी। हिंसा उपद्रव को रोकने और कानून व्यवस्था बहाल करने में राज्य की हालत ढाई माह में चले अढ़ाई कोस जैसी ही है। अगर यह सच है तो केन्द्र को इस विफलता का मंथन करना चाहिए। पर राष्ट्रपति शासन भी कोई ठोस विकल्प नहीं समझ में आता।





पीएम ने घटना पर जताया था आक्रोश





भारत के प्रधानमंत्री ने घटना पर आक्रोश और खेद व्यक्त किया और सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने भी इस अमानवीय घटना पर अपनी तल्ख टिप्पणी दी। मणिपुर में विपरीत परिस्थितियों के बावजूद कानून व्यवस्था और न्याय की जिम्मेवारी से सरकार नहीं बच सकती। यह बात अलग है कि घटना का वीडियो बना और 76 दिन तक दबा रहा और 20 मई को शुरू होने वाले संसद सत्र के पहले दिन उसे वायरल कर दिया गया। इसका राजनीतिक पहलू हो सकता है, लेकिन मणिपुर सरकार की ढाई माह की कार्रवाई अत्यधिक लापरवाही पूर्ण और अक्षमता का परिचायक है। वहां जातीय हिंसा में हजारों अपराध पंजीबद्ध होने की बात सामने आई है, लेकिन यह तो संगीनतम अपराध था। इसमें कार्रवाई न होना राजनीतिक ही नहीं लॉ इन्फोर्समेंट एजेन्सियों को भी शर्मसार करने वाला है।





जातीय हिंसा की चपेट में मणिपुर





आजादी के बाद भारत के अनेक राज्यों में अस्मिता की रक्षा के नाम पर अनेक संगठन बने। इनमें से कुछ संगठनों ने अपनी मांगों की पूर्ति के लिए हिंसा का सहारा लिया। नागा, मिजो, बोडो, कूकी, नक्सली के अतिरिक्त असम, पंजाब और कश्मीर में अलग-अलग तरह के पृथकतावादी आंदोलन यहां चले। आज 22 हजार 327 वर्ग किलोमीटर का राज्य मणिपुर जातीय हिंसा की चपेट में है। मणिपुर के जातीय संघर्ष के परिप्रेक्ष्य में 1966 की मिजोरम की घटना पर प्रकाश डालना बहुत प्रासंगिक है। मिजो नेशनल फ्रंट ने पूर्वी पाकिस्तान और चीन की मदद से मिजोरम के एक बड़े भाग पर कब्जा कर लिया था। 8 बटालियन बनाकर जेल से कैदी रिहा कर दिए। आइजोल में मिजोरम को संप्रभु राज्य घोषित कर मिजो झंडा फहराया। इंदिरा जी नई-नई प्रधानमंत्री बनी थीं। उनके पास 2 विकल्प थे या तो सेना उनसे जमीन पर लड़े या हवाई हमले से उनके कैंप नष्ट किए जाएं। जमीनी लड़ाई में हजारों लोग मारे जाते। ‌उन्होंने उग्रवादियों के कैंप एयरफोर्स से नष्ट करवाए। मिजो नेशनल फ्रंट ने हथियार डाले। आज मिजोरम शान्तिपूर्ण राज्य है। इसके उलट 1990 का कश्मीर के अलगाववाद और भीषण नरसंहार को राज्य नियंत्रित करने में असफल रहा। परिणाम से सब अवगत हैं।





मणिपुर में कूकी और मैतेई समुदाय के बीच हिंसा





मणिपुर में हिंसा विशेष रुप से कूकी और मैतेई समुदाय के बीच फैली है। मणिपुर में लगभग 53 प्रतिशत मैतेई, 24 प्रतिशत नागा, 16 प्रतिशत कूकी, 8 प्रतिशत मुसलमान निवास करते हैं। कूकी आदिवासी झूमिंग खेती करते हैं। झूमिंग का मतलब हर साल बदल-बदलकर जंगल काटकर खेती करना। 90 प्रतिशत पहाड़ी भू-भाग में बहुतायत नागा और कूकी ही रहते हैं। मैतेई, नागा, कूकी, मुसलमान और अन्य लोग मिश्रित रूप में शेष 10 प्रतिशत भूभाग इंफाल की घाटी में रहते हैं। ‌समुदायों के मध्य संघर्ष का कारण ये लोग जमीनों पर असमान हक, कमजोर भू-राजस्व कानून, सांस्कृतिक, सामाजिक, शैक्षिणक, व्यवसायिक असमानता, म्यांमार के शांगांग और चिन संभाग और बांग्लादेश के चियांग हिल ट्रैक से कूकी समुदाय का मणिपुर में बेतहाशा प्रवेश को मानते हैं। कुकी के साथ म्यांमार में गृहयुद्ध के हालात हैं। सैनिक सरकार उन्हें खदेड़ रही है। उनके लिए सरल प्रवेश मणिपुर में है। लगभग यही हाल बांग्लादेश का है। कूकी समुदाय मणिपुर, मिजोरम, म्यांमार और बांग्लादेश के सारे कुकी समाज का वृहद कूकी संप्रभु राष्ट्र जालेनगाव जोराम ( KUKI HOMELAND ) बनाना चाहता है। ‌मणिपुर के भू-राजस्व कानून के तहद मैतेई या अन्य समुदाय के लोग 90 प्रतिशत ट्राइबल क्षेत्र में भूमि नहीं खरीद सकते। लेकिन ट्राइबल 10 प्रतिशत भूभाग में जमीन खरीद सकते हैं। ‌90 प्रतिशत भू-भाग में भी चुराचांदपुर को छोड़कर कहीं कूकियों के पास भू अधिकार के पट्टे नहीं हैं। ‌सारी जमीन इनके मुखिया/राजा जिसे चिपटन कहते हैं के नाम रहती है। ‌मैतेई हिन्दू धर्म को तथा कूकी, नागा क्रिस्चियन धर्मावलंबी हैं।





मणिपुर का जातीय संघर्ष नया नहीं





जातीय संघर्ष मणिपुर में कोई नया नहीं है। नेशनल कॉनफ्लिक्ट मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार 1993 में नागा और कुकी समुदाय के बीच बड़ा संघर्ष हुआ था जिसमें लगभग 400 कूकी मारे गए थे। 8 अप्रैल, 1989 को 'पीपुल्स लिबरेशन आर्मी' (पीएलए) ने मणिपुर की राजधानी इम्फाल के पास घात लगाकर भारतीय पुलिस सेवा की अधिकारी वंदना मल्लिक की हत्या कर दी थी। 1993 में मई और सितम्बर महीनों के बीच 'नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड' के हथियारबंद चरमपंथियों के हमलों में सुरक्षाबलों के 120 के आसपास जवान और अधिकारी मारे गए थे।





मणिपुर में कानून व्यवस्था चरमराई





मूलतः झगड़े जमीन पर कब्जे को लेकर होते हैं। कूकी समुदाय के हथियारबंद गिरोह कूकी नेशनल आर्मी और जोमी रिवोल्यूशनरी आर्मी ( ZRA & KNA ) हैं। 2008 में त्रिपक्षीय समझौते में संघर्ष विराम लागू हुआ था। मार्च 2023 में नई सरकार ने इसे इसलिए रद्द कर दिया कि ये संगठन वन विनाश और अफीम की खेती में संलग्न होकर वन विभाग के विरुद्ध खड़े हो रहे थे। ‌कुछ हद तक यह आरोप सच है क्योंकि 3 मई को जो आंदोलन ऑल ट्राइबल स्टूडेंटस यूनियन ऑफ मणिपुर ( ATSUM ) द्वारा हिल एरिया कमेटी के समर्थन ( HAC ) से मैतेई को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के उच्च न्यायालय के प्रकिया निर्देश के विरुद्ध आयोजित किया था, उसमें सबसे ज्यादा वन चौकियां जलाई गईं। इंफाल में लगभग 4 हजार हथियार पुलिस के कोत से गायब होने की सूचना है। लगभग एक सैकड़ा लोगों की जान गंवाने अपार सार्वजनिक संपत्ति स्वाहा कर दी गई। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 30 मई को स्वदेशी जनजातीय नेताओं के फोरम (आईटीएलएफ), कुकी छात्र संगठन (केएसओ) और अन्य नागरिक समाज संगठनों जैसे विभिन्न समूहों के साथ तीन दौर की बातचीत की। उन्होंने बीजेपी के 5 कुकी विधायकों से भी मुलाकात की। कुकी समाज से आम लोगों की सुरक्षा के लिए और सुरक्षाकर्मियों को भेजने के आश्वासन के साथ अगले 15 दिनों तक शांति बनाए रखने का अनुरोध किया। इस पर ‌आईटीएलएफ के सचिव मुआन टॉम्बिंग ने प्रतिक्रिया दी कि हमने मणिपुर से पूर्ण अलगाव की मांग की, राजनीतिक और भौगोलिक दोनों। हमने राष्ट्रपति शासन की भी मांग की क्योंकि राज्य में कानून व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है।





मणिपुर में टारगेट किलिंग और संपत्ति का नुकसान जारी





उच्च न्यायालय मणिपुर के निर्देश को सर्वोच्च न्यायालय 1 साल के लिए स्टे दे चुका है। संपूर्ण प्रयासों के बाद भी कूकी मैतेई उपद्रवी मान नहीं रहे हैं। टारगेट किलिंग और संपति का नुकसान जारी है। कुलदीप सिंह सेवा निवृत आईपीएस को वहां सलाहकार नियुक्त किया है। फिर भी स्थिति अविश्वास और नफरत की है। उपद्रवियों पर नियंत्रण राज्य का मुख्य दायित्व है लापरवाही का परिणाम 1990 का श्रीनगर का नृशंस नरसंहार है। इतिहास तो बस सत्तासीन लोगों की कुंडली भर लिखता है।





तत्काल समाधान परक कठोर कदम समय की मांग





कोई भी समाज दीर्घकाल तक तनाव, हिंसा, जातीय संघर्ष में नहीं जी सकता। यह साश्वत समाधान भी नहीं है। मणिपुर में भी दोनों समुदायों के शान्तिप्रिय लोगों को तत्काल टेबल पर बैठना ही होगा। अब तो कठोर चरणबद्ध कार्रवाई अपेक्षित है। दिल्ली या अन्य शीर्ष स्थलों पर बैठे कूकी या मैतेई बुद्धिजीवियों से चर्चा कीजिए तो उनके अपने-अपने तर्क हैं, लेकिन वे सह अस्तित्व और शान्ति की बात तो करते हैं, लेकिन अपने समुदाय के हितों का प्रोटेक्शन चाहते हैं। मणिपुर कैडर एक सेवा निवृत आईपीएस प्रियो कुमार से चर्चा की तो वे इसे राजनीतिक मुद्दा बताते हैं। समाधान भी राजनीतिक होगा ऐसा उनका मत है। जो भी हो शांतिपूर्ण सह अस्तित्व के लिए तत्काल समाधान परक कठोर कदम समय की मांग है।





मणिपुर में शांति के लिए 10 कदम उठाने जरूरी





पहला





कूकी समुदाय के हथियारबंद गिरोह कूकी नेशनल आर्मी और जोगी रिवोल्यूशनरी आर्मी ( ZRA & KNA ) और  नागा, मैतेई सशस्त्र हथियारबंद अपराधियों की पहचान। इनकी शेष समुदाय से अलग पहचान करना तथा उनके विरुद्ध कठोर सैनिक पुलिस कार्रवाई। हथियारबंद बंकरों का नष्टीकरण। लूटे गए हथियारों की जब्ती।





दूसरा





मैतेई और नागा कूकी आदिवासी समुदायों के शान्तिप्रिय प्रतिष्ठित लोगों के साथ अनवरत वार्ता।





तीसरा





म्यांमार के शांगांग और चिन संभाग और बांग्लादेश के चियांग हिल ट्रैक से कूकी समुदाय के भारत में प्रवेश पर कठोर अंकुश।





चौथा





घाटी और पहाड़ी क्षेत्र में धीरे-धीरे परिवहन की बहाली।





पांचवां





धार्मिक और व्यक्तिगत संपत्तियों का पुनर्निर्माण।





छठवां





कूकी मैतेई समुदाय के कंपोजिट कल्चर की पुनर्स्थापना।





सातवां





मणिपुर भू-राजस्व कानून में संशोधन और उसे लागू करना। 10 प्रतिशत घाटी और 90 प्रतिशत भूमि पहाड़ी है। कूकी, नागा सामान्यतः पहाड़ी क्षेत्र में रहते हैं। चुराचांदपुर को छोड़कर कही कूकियों के पास भू-अधिकार के पट्टे नहीं है। ‌सारी जमीन इनके मुखिया जिसे चिपटन कहते हैं क्षेत्र नाम रहती है। ‌कूकी समुदाय को चिपटन की जगह पट्टे देना।





आठवां





मणिपुर का 90 प्रतिशत भू-भाग जंगल है। आरोप है कि कूकी जंगलों को काटकर‌ बेतहाशा अफीम की खेती करते हैं। यह क्षेत्र ड्रग ट्रैफिकिंग का सेंटर बन गया है। दुर्गम क्षेत्र है वन विभाग की टुकड़ियों पर ये लोग हमला कर देते हैं।‌ सेटेलाइट तस्वीरों से इस पर अंकुश लगाया जा सकता है।





नौवां





मणिपुर पुलिस फोर्स में कूकी या मैतेई समुदाय के लोग हैं। दोनों समुदायों के लोग इन पर पक्षपात का आरोप लगा रहे हैं। अत: सैन्य और अर्धसैनिक बलों को शांति बहाली में शामिल किया जा सकता है।





दसवां





मोहल्ला और ग्रामीण स्तर पर सिविल सोसाइटी के लोगों की ग्राम रक्षा और शांति समितियों का गठन कर उनको नई भूमिका देनी चाहिए।





मणिपुर के हालातों पर चिंता जता चुका है यूरोपियन यूनियन





यूरोपियन यूनियन की संसद मणिपुर पर अपनी चिंता व्यक्त कर चुका है। अमेरिका समस्या के समाधान आवश्यकता होने पर मदद की बात कह चुका है। देश की जनता आक्रोशित है, लोग उसे व्यक्त भी कर रहे हैं, लेकिन जिनको समाधान निकालना है वे भी गुस्से का इजहार ही करेंगे तो समाधान कौन निकालेगा। उदारवादी दार्शनिक जे एस मिल ने 'राज्य को एक आवश्यक बुराई बताया था, लेकिन हम इस बुराई को अपने ऊपर इसलिए स्वीकार करते हैं कि वह हमारी सुरक्षा की गारंटी लेता है।' राजनीतिक दलों की तू-तू, मैं-मैं, आरोप-प्रत्यारोप में राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल के साथ मणिपुर की घटना को सियासी हितों के डिटरजेंट में घोला जा रहा है। एक लोकतंत्र में मध्यप्रदेश की तरह किसी गरीब के ऊपर पेशाब करने, पश्चिम बंगाल में स्थानीय चुनावों में लगभग 62 निर्दोषों की हत्या, राजस्थान में बलात्कार और हत्या और मणिपुर में शासकीय कोत से हजारों हथियार गोला-बारूद लूटने, लगभग 150 की हत्या, सैकड़ों धार्मिक स्थलों की तोड़फोड़, महिलाओं का बलात्कार, निर्वस्त्र कर घुमाने, हत्या जैसे अपराधों पर अंकुश तो उस राज्य के सत्तारूढ़ राजनीतिक दल को ही लगाना होगा। विपक्ष तो अंगुली उठाएगा ही। फिर यह तो चुनावी साल है। राजनीतिक दलों को तो तू-तू, मैं-मैं और आरोप-प्रत्यारोप से सत्ता की सीढ़ी का रास्ता मिलता है, लेकिन मणिपुर की भू-सामरिक और डेमोग्राफिक स्थिति भिन्न है। वहां शांति राष्ट्रीय हित की मांग है। सभी राजनीतिक दलों को तू-तू, मैं-मैं और वोट बैंक के हितों से ऊपर उठकर  खुले मन से सौहार्द्र और शांति स्थापित करने में सेना, पुलिस और मणिपुर प्रशासन को मदद करनी चाहिए। साथ ही भारतीय सेना, अर्धसैनिक बल, असम राइफल्स राज्य पुलिस और प्रशासन के विरुद्ध इस हिंसक भीड़ को कहां से ईंधन मिल रहा है, इसकी समीक्षा राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अति-आवश्यक है।





( डॉ. गिरिजा किशोर पाठक रिटायर्ड IPS, स्तंभ लेखक एवं चिंतक हैं )



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