भारत में गुलामी की गहरी काली और लंबी रात के घोर अंधकार के बीच भारतीय संस्कृति सजीव रही। यदि भारतीय संस्कृति सजीव रही तो यह उन महान विभूतियों के कारण संभव हुआ जिन्होंने अपना पूरा जीवन और भविष्य समाजिक जागरण के लिए समर्पित कर दिया। प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, पत्रकार और लेखक सखाराम गणेश देउस्कर (Sakharam Ganesh Deuskar ) ऐसे व्यक्तित्व थे। जिनकी एक पुस्तक देश की बात ने अंग्रेजी सत्ता की नींद ही उड़ा दी थी।
1869 में हुआ था सखाराम गणेश देउस्कर का जन्म
ऐसे जीवन दानी सखाराम गणेश देउस्कर का जन्म 17 दिसम्बर 1869 को देवघर के पास करौं नामक गांव में हुआ था। यह क्षेत्र अब झारखंड में है। लेकिन जब देउस्कर का जन्म हुआ था तब यह बंगाल प्रांत का अंग था। देउस्कर के पूर्वज महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिला अंतर्गत देउस गांव के मूल निवासी थे। अपने समय के सुप्रसिद्ध सेनापति बाजीराव पेशवा के राष्ट्र जागरण में सहभागी रहे हैं उन्ही संदर्भ में बंगाल आए और यहीं बस गए। इसी से उनके परिवार परंपरा की पहचान देउस गांव के नाम से देउस्कर के रुप में बनी और यही उनका उपनाम बना। पिता गणेश देउस्कर वैदिक विद्वान थे। लेकिन जब सखाराम पांच वर्ष के थे तब माता का निधन हो गया। इनका पालन पोषण बुआ ने किया। पिता के संस्कार और बुआ की शिक्षा से सखाराम की रूचि बालवय में ही मराठी साहित्य, संस्कृत,भारतीय ग्रंथों और विशेषकर वेदों के अध्ययन में बढ़ गई थी। इसके साथ ही उन्होने बंगाली सीखी। एक प्रश्न उन्हे सदैव तंग करता था कि जब भारत की संस्कृति इतनी समृद्ध है तो देश परतंत्र क्यों हुआ। इस प्रश्न का उत्तर तलाशने के लिए उनकी रुचि इतिहास पढ़ने में बढ़ी।
बाल गंगाधर तिलक को बनाया राजनीतिक गुरु
वे इतिहास का अध्ययन करते और उसकी विशेषताओं और चूक से अपने सहपाठियों को अवगत कराते। इसके साथ वे किशोर वय से ही समाज जागरण अभियान में भी सक्रिय हुए। वे शिवाजी महाराज और पेशवाओं के संघर्ष जुड़ी छोटी छोटी कहानियां बनाकर सुनाने लगे। अपनी समाज सेवा और सामाजिक जागरण के चलते वे बाल गंगाधर तिलक के संपर्क में आए और उन्होंने तिलक को राजनीति में अपना गुरु माना। आजीविका के लिए 1893 में शिक्षक बने। लेकिन शिक्षकीय कार्य के साथ उनका लेखन और सामाजिक जागरण कार्य यथावत रहा। वे बच्चों को शिक्षण कार्य के साथ स्वत्व और स्वाभिमान जागरण की कहानियां भी सुनाते। उनका लेखन बंगाली और मराठी भाषा में होता था। जो विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगा। उनके लेखन के प्रमुख रूप से तीन विषय होते थे। एक भारतीय संस्कृति की महत्ता, दूसरा स्वाभिमान युक्त जीवन के सूत्र और तीसरा विदेशी सत्ताओं द्वारा भारत का शोषण करने के संदर्भ। उनके लेखन और सामाजिक जागरण कार्य के चलते उन्हें बंगाल का तिलक भी कहा जाने लगा।
सखाराम गणेश देउस्कर की हुई थी गिरफ्तारी
1894 में हार्ड नामक एक नए मजिस्ट्रेट की नियुक्ति हुई। हार्ड को जनसमस्या से कोई मतलब न था वह अंग्रेजी सत्ता को मजबूत करने और भारतीयों से वसूली करने में बहुत सख्ती करता था। भारतीयों के साथ उसका व्यवहार बहुत अपमानजनक और क्रूरता से भरा होता था। हार्ड के अत्याचार के विरुद्ध देउस्कर ने लेख लिखा जो कोलकाता से प्रकाशित होने वाले हितवादी नामक समाचार पत्र में प्रकाशित हुआ। इससे चिढ़कर हार्ड ने उनको शिक्षक के नौकरी से निकाल दिया और गिरफ्तारी का आदेश दे दिया।
देउस्कर ने अपनाया हितवादी समाचार पत्र
इस तरह से नौकरी छोड़कर देउस्कर कलकत्ता आ गए और उसी हितवादी समाचारपत्र में काम करने लगे, जिसमें उनके लेख छपते थे। कुछ दिनों पश्चात वे इस समाचार पत्र के संपादक बने। देउस्कर बांग्ला के साथ हिंदी, संस्कृत और मराठी भाषा में भी सिद्धहस्त थे। उनके प्रयास हितवादी का हिंदी संस्करण हितवार्ता का प्रकाशन भी आरंभ हो गया। इन दोनों समाचारपत्रों के साथ उनकी रचनाएं प्रदीप, साहित्य संहिता, बंग दर्शन, आर्यावर्त्त, वेद व्यास, प्रतिभा आदि पत्र पत्रिकाओं में भी प्रकाशित होने लगीं। उनकी रचनाओं का उद्देश्य भारतीय समाज को अपने अतीत और वर्तमान का ज्ञान कराकर स्वत्व जागरण करना होता था। लेखन कार्य के साथ देउस्कर ने समान विचार के बुद्धिजीवियों से संपर्क कर कलकत्ता में बुद्धिवर्धिनी सभा नामक एक संस्था का गठन किया। इसकी अध्यक्षता उन्होंने स्वीकार की। इस संस्था द्वारा समाज जीवन में स्वभाषा और स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने का अभियान चलाया जाने लगा। इसके साथ देउस्करजी ने बंगाली भाषा में एक ग्रन्थ देशेर कथा की रचना की। इस ग्रंथ का मूल भाव भारत की पराधीनता का दर्द था जिसकी बंगाल के क्रांतिकारी आंदोलन में भूमिका महत्वपूर्ण रही। स्वराज्य शब्द का प्रयोग पहली बार इसी ग्रंथ देशेर कथा में हुआ जो स्वतंत्रता आंदोलन का मंत्र बना। बाबूराव विष्णु पराड़कर ने इस ग्रंथ का हिन्दी अनुवाद देश की बात नाम से किया। यह ग्रंथ जब्त हुआ और देउस्कर गिरफ्तार भी हुए पर इससे न उनका मनोबल गिरा और न लेखन रुका ।
सखाराम गणेश देउस्कर की प्रमुख रचनाएं
देश की बात के अतिरिक्त सखाराम गणेश देउस्कर की अन्य प्रमुख रचनाओं में महामति रानडे 1901, झासीर राजकुमार 1901, बाजीराव 1902, आनन्दी बाई 1903, शिवाजी महत्व 1903, शिवाजी शिक्षा 1904, शिवाजी 1906, कृषकेर सर्वनाश 1904, तिलकेर मोकद्दमा ओ संक्षिप्त जीवन चरित 1908, आदि हैं।
23 नवंबर 1912 को हुआ था सखाराम गणेश का निधन
1905 में जब अंग्रेजों ने साम्प्रदायिक आधार पर बंगाल के विभाजन का निर्णय लिया तब इसका विरोध करने के लिए जो समूह सबसे पहले सामने आया उनमें सबसे प्रमुख देउस्कर प्रमुख थे। इस आंदोलन में भी गिरफ्तार हुए। रिहाई के बाद उन्होंने लेखन कार्य फिर से प्रारंभ किया। साल 1910 में देउस्कर अपने गांव लौट आए और वहीं शिक्षण कार्य आरंभ किया। इसके साथ उन्होंने भारतीय परंपराओं पर प्रवचन देना भी आरंभ किए। वे राष्ट्र जागरण के अपने संकल्प को पूरा न कर सके। गांव लौटे उन्हे मुश्किल से दो साल ही हुए थे कि मात्र 43 वर्ष की आयु में 23 नवंबर 1912 को उनका निधन हो गया। वे भले अल्पायु में संसार से विदा हो गए हों पर उनका साहित्य बंगाली और मराठी भाषी क्षेत्रों में मानों मार्ग दर्शन का मूल मंत्र बना रहा। उनकी रचनाएं स्वाधीनता संग्राम सेनानियों के लिए ही नहीं स्वाधीनता के बाद भी समाज जागरण का एक आदर्श रहीं।अंग्रेजी काल में उनकी कुछ रचनाओं पर प्रतिबंध लगा रहा जो स्वाधीनता के बाद ही हट सका।
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