जबलपुर से नील तिवारी
कहते हैं स्कूल शिक्षा का मंदिर होता है...लेकिन ये कलयुग है...इस कलयुग में अब हर जगह लूट मची है। ऐसी ही लूट इस वक्त पूरे प्रदेश में मचा रखी है शिक्षा माफिया ने। अब मैंने शिक्षा माफिया कहा है..तो इसमें आप प्राइवेट स्कूल, किताब बेचने वाले दुकानदार और किताब छापने वाले पब्लिशर्स को भी शामिल कर लीजिए। क्योंकि अप्रैल चल रहा है यानी स्कूलों में नया सेशन शुरू हो चुका है या फिर होने वाला है। ऐसे में बच्चों के माता-पिता अपने बच्चों के लिए किताबें, स्कूल ड्रैस और बैग खरीदने के लिए तमाम दुकानों के चक्कर लगा रहे हैं....और शिक्षा माफिया की नजर हर साल इन्हीं पैरेंट्स पर रहती है। सरकार और प्रशासन तो तमाम दावे कर रहा है कि स्कूल वाले पैरेंट्स को किसी एक दुकान से किताबें खरीदने के लिए मजबूर नहीं कर सकते...अगर ऐसा किया तो स्कूल के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी...लेकिन क्या सिर्फ कार्रवाई का डर दिखा देने से इन सब को रोका जा सकता है। किताब बेचने वाले दुकानदार नकली किताब तक बेच रहे हैं और इस मिलीभगत में स्कूलों का भी पूरा हाथ है... हाल ही में जबलपुर ( Jabalpur ) में नकली किताब छापने वाले पब्लिशर्स के यहां छापा पड़ने के बाद द सूत्र की टीम ने इन किताबों को चेक किया तो लूट का तरीका हमारे सामने आया। एक ही सिलेबस की हुबहू 2 किताबें लेकिन दोनों के दाम अलग...यानी पैरेंट्स की हैसीयत और स्कूल के हिसाब से ये दुकानदार और पब्लिशर्स किताबों के दाम तय करते हैं...उदाहरण के तौर पर क्लास थर्ड की हिंदी की किताब कम महंगे स्कूल के हिसाब से 265 रुपए की बेची जा रही है...वहीं यही किताब महंगे स्कूलों के हिसाब से 345 रुपए की बेची जा रही है। अब आपको ये समझाने की कोशिश करते हैं कि आखिर ये पूरी लूट हो कैसे रही है...
स्कूल का नया सेशन शुरू होते ही स्कूल वाले स्टूडेंट्स से किताबें, बैग और स्कूल ड्रैस किसी खास दुकान से ही खरीदने का दबाव बनाते हैं। पहले स्कूल एक खास पब्लिशर्स को चुनता है जिसकी किताबों की बिक्री में स्कूल का कमीशन तय होता है। अब पब्लिशर्स इस कमीशन की भरपाई के लिए किताबों में प्रिन्ट रेट बढ़ा देता है और और कुछ खास किताब बेचने वालों से अपना कमिशन सेट कर इनकी बिक्री करवाता है। अब अगर पैरेंट्स इस खास पब्लिशर्स की किताबों को खरीदने बाज़ार जाते हैं तो उन्हें मजबूरन इन्ही दुकानों से महंगे दामों पर किताबें खरीदनी पड़ती हैं।
ये तो कुछ भी नहीं है...नियम तो ये कहता है कि किताब छापने वाले पब्लिशर्स को अपनी किताब के लिए इंटरनेशनल स्टैंडर्ड नंबर यानी आईएसबीएन नंबर लेना होता है...जिसमें किताब की पूरी जानकारी होती है। लेकिन ये पब्लिशर्स नकली आईएसबीएन नंबर के साथ किताब को प्रिंट करते हैं...और ये पूरा खेल स्कूल की मिली भगत के बिना कैसे हो सकता है...इतना ही नहीं ये नकली किताबें हूबहू असली किताबों की तरह छापी जाती है...एक उदाहरण से इसे भी समझने की कोशिश कीजिए की...अभी जो छापा मारा गया था उसमें नकली आईएसबीएन की किताब जो फ्रेंड्स पब्लिकेशन आगरा में छपी थी जिसका नाम स्निग्धा होना चाहिए पर हूबहू वही किताब अमोदिनी के नाम से मार्केट में बेची जा रही है। अब जब ये पूरा खेल सामने आया तो जबलपुर कलेक्टर दीपक सक्सेना ने एक व्हाट्सएप नंबर जारी कर दिया...जिसमें पैरेंट्स अपनी पहचान छिपाकर शिक्षा माफिया के खिलाफ शिकायत कर सकते हैं...इसके बाद एक ही दिन में उनके पास 200 शिकायते आ गईं...जिसे देखकर कलेक्टर भी दंग रह गए..और जबलपुर ( Jabalpur ) में एक पुस्तक मेले का आयोजन करवा दिया...
अब जबलपुर जिला प्रशासन की सख्ती के बाद से इस इन माफियाओं पर जबलपुर में तो नकेल कसी हुई नजर आ रही है पर कमोबेश यही हाल पूरे प्रदेश में है और इस नेक्सस के जरिए लगातार पैरेंट्स को लूटा जा रहा है। यानी जबलपुर कलेक्टर ने कम से कम इन माफियाओं पर नकेल कसने की कोशिश तो की...अगर यही काम पूरे प्रदेश में हो जाए..तो शायद वो माता पिता जो बेचारे दिहाड़ी मजदूरी करते हैं...या फिर इतनी हैसियत नहीं रखते कि महंगी महंगी किताबें खरीदकर अपने बच्चों को दे सकें..उन्हें थोड़ी राहत तो जरूर मिलेगी।