मकबूल फिदा हुसैन फिल्मों के पोस्टर बनाते थे, 40 के दशक के शोहरत मिली, फक्कड़ी मिजाज के थे, जानें क्यों नंगे पैर रहने लगे?

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आज पिटारे में मक़बूल फिदा हुसैन यानी एमएफ हुसैन की कहानी है। 9 जून 2011 को लंदन में उनका निधन हो गया था। मक़बूल साहब 17 सितंबर 1915 को महाराष्ट्र के पंढरपुर में पैदा हुए थे। काफी छोटे थे, तब ही मां दुनिया से चली गईं। इसके बाद उनके पिता इंदौर चले गए, जहां हुसैन की शुरुआती पढ़ाई हुई। 20 साल की उम्र में हुसैन बंबई गये और उन्हें जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स में दाखिला मिल गया। शुरुआत में वे बहुत कम पैसो में फिल्मों के होर्डिंग्स बनाते थे। कम पैसे मिलने की वजह से वे दूसरे काम भी करते थे, जैसे खिलौने की फैक्ट्री में काम करते थे, जहां उन्हें अच्छे पैसे मिलते थे।

एक कलाकार के तौर पर उन्हें 1940 के दशक में ख्याति मिली। 1952 में उनकी पहली एग्जीबिशन स्विट्जरलैंड के ज्यूरिख में लगी। इसके बाद उनकी कलाकृतियों की कई प्रदर्शनियां यूरोप और अमेरिका में लगीं। 1966 भारत सरकार ने उन्हे पद्मश्री से सम्मानित किया। उसके एक साल बाद उन्होने अपनी पहली फिल्म बनाई- थ्रू द आइज़ ऑफ अ पेंटर (चित्रकार की दृष्टि से)। यह फ़िल्म बर्लिन उत्सव में दिखाई गई और उसे 'गोल्डन बियर' अवॉर्ड मिला।  

हुसैन के कई किस्से हैं। कामना प्रसाद एक राइटर हैं। कामना जी ने एक इंटरव्यू में बताया कि सड़क पर एक शख्स अपनी काली कार को धक्का दे रहा था। वो अपनी कार में अकेले थे और वो स्टार्ट नहीं हो रही थी। मैंने उनकी बगल में अपनी कार ये सोच कर रोक दी कि शायद उन्हें मदद की जरूरत हो। वो फौरन आकर मेरी कार में मेरी बगल में बैठ गए। जब मैंने उनकी तरफ़ देखा, तो मेरे मुंह से निकला, 'ओ माई गॉड, यू आर एम एफ हुसैन। हुसैन ने कहा- जी।

सुनीता कुमार एक मशहूर पेंटर हैं। उनके पति नरेश कुमार इंडियन डेविस कप टीम के कप्तान थे। सुनीता के मुताबिक, मेरी हुसैन से पहली मुलाकात दिल्ली की एक पार्टी में हुई थी। मैंने उन्हें अगले दिन होने वाली नेशनल टेनिस कॉम्पिटीशन का फाइनल देखने के लिए बुला लिया। हुसैन ने माल एंडर्सन के जीतने पर शर्त लगा ली। मैंने विजय अमृतराज के जीतने पर दांव लगाया। तय हुआ कि जो शर्त हारेगा वो अपने हाथ की बनाई पेंटिंग दूसरे को देगा। विजय अमृतराज मैच जीत गए। लेकिन मेरी हिम्मत नहीं हुई कि मैं हुसैन से अपना वादा पूरा करने के लिए कहूं। हम लोग ओबेरॉय होटल में ठहरे हुए थे। जब हम बाहर जाने लगे तो रिसेप्शिनिस्ट ने कहा कि आप के लिए हुसैन साहब एक पैकेट छोड़ गए हैं। मैंने सोचा कि शायद मैच दिखलाने के लिए कोई थैंक यू नोट होगा। जब मैंने पैकेट खोला, तो ये देख कर चकित रह गई कि उसमें घोड़े की एक पेंटिंग थी। रंग अभी तक गीले थे, क्योंकि ऑयल पेंट बहुत जल्दी सूखता नहीं। हुसैन ने रातभर पेंट कर वो पेंटिंग मुझे गिफ्ट की थी।

हुसैन साहब फक्कड़ किस्म के थे औ तबीयत में गजब की आवारगी थी। कई बार वो उनके घर से एयरपोर्ट जाने के लिए निकले और वहां से वापस घर आ गए। एक बार एयरपोर्ट जाते हुए उन्होंने कार रुकवा दी और ड्राइवर से बोले कि मैं यहीं मैदान में सोना चाहता हूं। उन्होंने अपना बैग निकाला और उसे तकिया बनाकर सो गए।

राम मनोहर लोहिया भी हुसैन के गहरे दोस्त थे। एक बार लोहिया, हुसैन को जामा मस्जिद के पास करीम होटल ले गए। लोहिया को मुग़लई खाना बहुत पसंद था। वहां लोहिया ने उनसे कहा, "ये जो तुम टाटा और बिड़ला के ड्रॉइंग रूम में लटकने वाली तस्वीरों से घिरे हो, उससे बाहर निकलो। रामायण को पेंट करो। लोहिया की मौत के बाद बदरी विशाल के मोती भवन को रामायण की करीब 150 पेंटिंग्स से भर दिया।

हुसैन ने 1963 के बाद से यानी 48 की उम्र से जूते पहनना छोड़ दिया था। इसके पीछे भी एक कहानी है। बीबीसी को दिए इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि मशहूर कवि गजानन माधव मुक्तिबोध मेरे दोस्त थे। मैंने उनकी एक पेंटिंग भी बनाई थी। जब उनका देहांत हुआ तो मैं उनके पार्थिव शरीर के साथ श्मशान घाट गया था। मैंने उसी समय अपनी चप्पलें उतार दी थी, क्योंकि मैं जमीन की तपन को महसूस करना चाहता था। मेरे ज़हन में एक और ख़्याल आया, वो करबला का था। जब मेरी मां का देहांत हुआ था, तब मैं सिर्फ डेढ़ साल का था। मेरे पिताजी कहा करते थे कि मेरे पैर मेरी मां की तरह दिखते हैं। मैंने कहा, तब उस पैर में जूते क्यों पहनूं? 

हिंदू देवी-देवताओं की नग्न पेंटिंग्स को लेकर हुसैन का खासा विरोध हुआ। उनकी एक्जीबिशन में तोड़फोड़ की गई। धमकियों की वजह से उन्होंने भारत छोड़ दिया। पहले कतर गए, फिर ब्रिटेन गए। भारत लौटकर नहीं आए। बीबीसी ने इंटरव्यू में उनसे सवाल किया कि हिंदू देवी-देवताओं की न्यूड पेंटिंग्स क्यों बनाईं? इस पर हुसैन बोले- इसका जवाब अजंता और महाबलीपुरम के मंदिरों में है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने जो अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, उसे पढ़ लीजिए। मैं सिर्फ कला के लिए जवाबदेह हूं और कला सार्वभौमिक है। नटराज की जो छवि है, वो सिर्फ भारत के लिए नहीं है, सारी दुनिया के लिए है। महाभारत को सिर्फ साधु-संतों के लिए नहीं लिखा गया है। उस पर पूरी दुनिया का हक है।     

हुसैन माधुरी दीक्षित के जबर्दस्त फैन थे। माधुरी के लिए एक फिल्म गजगामिनी बनाई। फिर उनका दिल तब्बू पर आ गया। तब्बू के लिए फिल्म 'मीनाक्षी-ए टेल ऑफ थ्री सिटीज' बनाई। यही नहीं, हुसैन साहब ने विद्या बालन से कहा था कि वे उनकी न्यूड पेंटिंग बनाना चाहते हैं। इस पर भी खासी कंट्रोवर्सी हुई थी। हुसैन साहब को फोर्ब्स ने भारत का पिकासो बताया था। बस...यही थी आज की कहानी