काबुल. अफगानिस्तान पर कब्जा कर चुका तालिबान अब नई इस्लामी सरकार बनाने की तैयारी कर रहा है। ईरान की तर्ज पर तालिबान के सबसे बड़े धार्मिक नेता शेख हिबतुल्ला अखुंदजादा को देश का सबसे बड़ा नेता घोषित करने की तैयारी में है। अखुंदजादा उन गिने-चुने आतंकियों में से एक है, जिसकी जानकारी दुनिया के पास बेहद कम है। वह आज तक कभी भी सार्वजनिक रूप से लोगों के सामने नहीं आया। ईरान में धार्मिक नेता का पद सबसे बड़ा माना जाता है।घोषणा कब होगी, ये फिलहाल साफ नहीं है। माना जा रहा है कि 3 दिन में ऐलान संभव है। सरकार में महिलाओं और साथी पक्षों की भागीदारी को लेकर अलग-अलग कयास लगाए जा रहे हैं। अपनी छवि को सुधारने के लिए तालिबान कुछ चौंकाने वाली घोषणाएं भी कर सकता है।
अखुंदजादा को तालिबान के कई लोगों देखा नहीं
अखुंदजादा को उसके ही संगठन के बहुत ही कम लोग देख पाते हैं। तालिबान के कई बड़े नेताओं को भी उसके ठिकाने के बारे में नहीं पता है। वह रोजमर्रा की जिंदगी में क्या कर रहा है, इसकी जानकारी भी तालिबानी लड़ाकों के पास नहीं होती। हालांकि, इस्लामिक त्योहारों पर वीडियो मैसेज के जरिए वह आतंकियों को पैगाम जरूर भेजता है।
2016 में संभाली थी तालिबान की कमान
अखुंदजादा ने 2016 में तालिबान की कमान संभाली थी। इसके बाद से वह अफगानिस्तान में ही रह रहा है, लेकिन इसकी जानकारी किसी भी देश की खुफिया एजेंसी को नहीं लग पाई। इससे पहले भी तालिबान अपने सर्वोच्च नेताओं को इसी तरह से छिपाकर रखता आया है।
तालिबान की चुनौतियां भी कम नहीं
तालिबान के सामने अब 3.8 करोड़ अफगान आबादी वाले देश पर शासन करने की चुनौती है। अफगानिस्तान बहुत ज्यादा अंतरराष्ट्रीय मदद पर निर्भर है। तालिबान के सामने यह भी चुनौती है कि वह ऐसी आबादी पर इस्लामी शासन के कुछ रूप कैसे थोपेगा जो 1990 के दशक के अंत की तुलना में कहीं ज्यादा शिक्षित और महानगरों में बसी है। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो तालिबान अफगानिस्तान में शासन के लिए राजनीतिक व्यवस्था के ईरानी मॉडल को अपना सकता है। कंधार में 4 दिन से तालिबान के शीर्ष नेतृत्व के बीच बातचीत चल रही है। एक हफ्ते के भीतर सरकार के गठन की घोषणा होने की संभावना है।
प्रधानमंत्री की रेस में हैं ये नाम
एग्जीक्यूटिव आर्म की अगुआई प्रधानमंत्री करेंगे, जिनके अधीन मंत्रिपरिषद होगी। इस पद के लिए संभावित नामों में अब्दुल गनी बरादर या मुल्ला उमर के बेटे मुल्ला याकूब शामिल हैं। मुल्ला उमर ने 1996 में अफगानिस्तान के इस्लामी अमीरात की स्थापना की थी और 1980 के दशक में सोवियत संघ के खिलाफ विरोध का नेतृत्व किया था। 9/11 के हमलों के बाद अफगानिस्तान पर अमेरिका के आक्रमण के बाद उमर को बाहर कर दिया गया था।
50 साल पुराना संविधान बहाल होगा
तालिबान ने 1964-65 के अफगान संविधान को बहाल करने की योजना बनाई है। इसे तत्कालीन अफगान राष्ट्रपति मोहम्मद दाऊद खान ने बनाया था। संविधान का बदलाव प्रतीकात्मक है, क्योंकि वर्तमान संविधान विदेशी सरकारों के तहत बनाया गया था।