सबसे पहले भारत ने लगाया था बैन, 33 साल से जान का दुश्मन है फतवा, आखिर रुश्दी के कौन से शब्द 34 साल बाद भी नहीं भूल पाए कट्टरपंथी 

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Praveen Sharma
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सबसे पहले भारत ने लगाया था बैन, 33 साल से जान का दुश्मन है फतवा, आखिर रुश्दी के कौन से शब्द 34 साल बाद भी नहीं भूल पाए कट्टरपंथी 

DELHI. विवादित रायटर सलमान रुश्दी (salman rushdi) बीते 33 सालों से कट्टरपंथियों के निशाने पर बने हुए थे। रुश्मी अपनी किताब छपने के बाद बीते 33 सालों से जान बचाकर जी रहे थे। मौत का डर हर पल साथ था तो मौत के सौदागर हर समय फतवा हाथ में लेकर उनका पीछा कर रहे थे। आखिर रुश्दी ने ऐसा क्या लिख दिया था कि कट्टरपंथियों को 33 साल बाद भी हजम नहीं हो पाए। क्यों वे रुश्दी की जान के दुश्मन बने हुए हैं। हम यहां बता रहे हैं, सलमान रुश्दी के जीवन से जुड़ी हर वो बात, जो उन्हें हमेशा विवादों में बनाए रखे है।





बात की जाए उस किताब की जो उनकी जान की दुश्मन बन गई, उसका नाम है सटेनिक वर्सेज जो उन्होंने 1988 यानी आज से 34 साल पहले प्रकाशित हुई थी। इस किताब के आते ही सलमान रुश्दी विवाद से घिर गए और कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गए। रुश्दी पर पैगंबर की बेअदबी के आरोप लगाते हुए कट्टरपंथियों ने फतवा जारी कर दिया। ईरान की इस्लामिक क्रांति के नेता अयातुल्ला खुमैनी ने 1989 में यह फतवा जारी किया था। कट्टरपंथियों ने रुश्दी की इस किताब में जिन शब्दों को ईश निंदा माना था, उसमें सबसे अहम लाइन थी, श्शुरुआत से ही आदमी ने गलत को सही ठहराने के लिए ईश्वर का इस्तेमाल किया। पैगंबर की बेअदबी मानते हुए कट्टरपंथी देश-दुनिया में हर जगह रुश्दी को टारगेट बनाए हुए थे। फतवा जारी होने के 33 साल बाद अब अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में सलमान रुश्दी पर जानलेवा हमला हुआ है। न्यूयॉर्क पुलिस द्वारा दी गई जानकारी के तहत शुक्रवार सुबह 11 बजे स्थानीय चौटाउक्वा इंस्टीटयूशन में हमलावर तेजी से मंच पर दौड़ा और सलमान रुश्दी पर चाकू से हमला कर दिया। चाकू सलमान रुश्दी के गर्दन पर लगा और वह मंच पर ही गिर पड़े। शनिवार को भी रुश्दी की हालत चिंता जनक बनी हुई है। हालांकि अब जान का खतरा नहीं है, लेकिन उनकी एक आंख लगभग खराब हो गई है, और उसका ऑपरेशन किया जा रहा है। डॉक्टर्स रुश्दी की आंख को लेकर ज्यादा आशांवित नहीं हैं, इलाज जारी है।





हिंदी में किताब आते ही इंडिया में बैन





रुश्दी की सटेनिक वर्सेज उपन्यास का हिंदी वर्जन शैतानी आयतें के नाम से है, टेनिक वर्सेज का हिंदी में अर्थ भी यही होता है। खासबात यह है कि हिंदी में किताब आने के बाद ही विवाद नेे तूल पकड़ा था। इस किताब के नाम पर ही मुस्लिम धर्म के लोगों ने आपत्ति दर्ज कराई थी। माहौल बिगड़ने की आशंका को भांपते हुए सबसे पहले भारत ने ही इस उपन्यास को बैन किया था। उस वक्त देश में राजीव गांधी की सरकार थी। भारत के अलावा पाकिस्तान और कई अन्य इस्लामी देशों ने इसे प्रतिबंधित कर दिया। फरवरी 1989 में रुश्दी के खिलाफ मुंबई में मुसलमानों ने बड़ा विरोध प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन पर पुलिस की गोलीबारी में 12 लोग मारे गए और आधा सैकड़ा से अधिक लोग घायल हुए थे। इसके अलावा भी देश-दुनिया में रुश्दी के खिलाफ प्रदर्शन हुए। रुश्दी की किताब श्सैटेनिक वर्सेजश् को लेकर दुनिया भर के कई देशों में लगातार हुए हिंसक विरोध में 59 लोगों मारे जा चुके हैं। इनमें इस किताब के प्रकाशक और दूसरे भाषा में अनुवाद करने वाले लोग भी शामिल हैं। हमलों में जान गंवाने वालों में जापानी अनुवादक हितोशी इगाराशी भी शुमार हैं। इगाराशी ने रुश्दी की किताब टेनिक वर्सेज की अपनी भाषा में अनुवाद किया था। इसके कुछ दिनों बाद ही उसकी बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। इटैलियन अनुवादक और नॉर्वे के प्रकाशक पर भी जानलेवा हमले हो चुके हैं।





इस किस्से को माना गया पैगंबर की बेअदबी





रुश्दी ने अपनी इस किताब में एक किस्सा लिखा है, जो पूरी तरह से काल्पनिक बताए जाते हैं। रुश्दी ने अपनी किताब में इस किस्से को दो फिल्म कलाकारों के जरिए विस्तार दिया है। इसमें बताया गया है कि दो कलाकार हवाई जहाज से मुंबई से लंदन जा रहे हैं। इनमें एक फिल्मी दुनिया का सुपरस्टार जिबरील है और दूसरा वॉयस ओवर आर्टिस्टष् सलादीन है। बीच रास्ते में इस प्लेन को कोई सिख आतंकी हाइजैक कर लेता है। इसके बाद विमान अटलांटिक महासागर के ऊपर से गुजर रहा होता हैए तभी पैसेंजर से आतंकियों की बहस होने लगती है। गुस्से में आतंकवादी विमान के अंदर बम विस्फोट कर देता है। इस विस्फोट के दौरान जिबरील और सलादीन दोनों समुद्र में गिरकर बच जाते हैं। इसके बाद दोनों की जिंदगी बदल जाती है। फिर एक दिन एक धर्म विशेष के संस्थापक के जीवन से जुड़े कुछ किस्से पागलपन की ओर जा रहे जिबरील के सपने में आता है। इसके बाद वह उस धर्म के इतिहास को एक बार फिर नई तरह से स्थापित करने की सोचता है। इसके आगे रुश्दी ने अपने कहानी के किरदार जिबरील और सलादीन के किस्से को कुछ इस अंदाज में लिखा है कि इसे ईशनिंदा माना गया।





पहले भी निशाने पर आ चुके हैं रुश्दी





इस किताब को ईश निंदा मानते हुए रुश्दी के खिलाफ ईरान की इस्लामिक क्रांति के नेता अयातुल्ला खुमैनी ने उनके खिलाफ 1989 में मौत का फतवा जारी किया था। इस फतवे के जारी होते ही सलमान पर हमले भी शुरू हो गए थे। पहला हमला 3 अगस्त 1989 को सेंट्रल लंदन के एक होटल पर मानव बन के जरिए विस्फोट किया गया। सलमान रुश्दी का मारने की कोशिश पूरी थी, लेकिन वे इस हमले में बाल.बाल बच गए। बाद में मुजाहिद्दीन ऑफ इस्लाम ने इस घटना की जिम्मेदारी ली थी। इसके बाद से सलमान रुश्दी हर समय जान बचाकर और पुलिस के साये में जिंदगी गुजार रहे थे। करीब 10 साल बाद यानी 1998 में ईरानी सरकार ने सार्वजनिक तौर साफ कर दिया था कि वो सलमान की मौत का समर्थन नहीं करते। हालांकिए फतवा अपनी जगह पर कायम रहा।





आतंकियों के हिट लिस्ट में हैं शामिल





कई बार हमलों के बाद भी रुश्दी अपनी इस किताब को लेकर लगातार आतंकियों के निशाने पर बने रहे। 2006 में हिजबुल्ला संगठन के प्रमुख ने कहा था कि सलमान रुश्दी ने जो ईशनिंदा की है उसका बदला लेने के लिए करोड़ों मुस्लिम तैयार हैं। पैगंबर के अनादर का बदला लेने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। आतंकी संगठन अलकायदा द्वारा भी 2010 में एक हिट लिस्ट जारी की गई थी। इसमें इस्लाम धर्म के अपमान करने के आरोप में सलमान रुश्दी को भी जान से मारने का फरमान दिया गया था।





महंगा पड़ गया फतवे को अनदेखा करना





33 साल पहले फतवा जारी होने के बाद शुरूआती 10.15 साल तो रुश्दी काफी बच कर जी रहे थे, लेकिन पिछले कुछ सालों से उन्होंने फतवे को भूलकर आजाद जिंदगी शुरू कर दी थी। रुश्दी न्यूयॉर्क सिटी में खुलकर रहने लगे थे। तीन साल पहले 2019 में वो अपने एक नॉवेल को प्रमोट करने के लिए मैनहटन के एक प्राइवेट क्लब में भी पहुंचे थे दिखे थे। भीड़ वाले इस आयोजन में वो मेहमानों के बीच काफी देर तक बने रहे। लगातार बंदिशें तोड़कर जीने के कारण ही वे हमलावर का निशाना बन गए।





चार शादी करने वाले रुश्दी की पर्सनल लाइफ भी विवादों से भरपूर





मुंबई में 19 जून 1947 को जन्मे सलमान रुश्दी एक कश्मीरी मुस्लिम परिवार से हैं। बाद में उनका परिवार ब्रिटेन में बस गया।शुरू से ही लेखन के शौकीन रुश्दी ने शिक्षा पूरी करने के बाद लंदन में एक एडवरटाइजमेंट राइटिंग करते हुए 1975 में  ग्राइमस नाम से पहली किताब पब्लिश की। अपने दूसरे ही उपन्यास मिडनाइट्स चिल्ड्रन के लिए बुकर और बेस्ट ऑफ द बुकर्स अवार्ड प्राप्त करने वाले की रुश्दी की किताबें जितनी विवादित रही हैं, उतनी ही विवादित उनकी पर्सनल लाइफ भी रही है। रुश्दी अब तक चार शादी कर चुके हैं। इनमें अपनी उम्र से आधी उम्र वाली भारतीय मूल की अमेरिकी एक्ट्रेस और मॉडल पद्मालक्ष्मी से शादी की थी। रुश्दी ने जब 2004 में पद्मलक्ष्मी से शादी की थी तब वो महज 28 साल की थी। जबकि रुश्दी 51 साल के थे। शादी के तीन साल बाद जुलाई 2007 को पद्मा से भी रुश्दी ने तलाक ले लिया था। पद्मालक्ष्मी ने सैक्स को लेकर रुश्दी पर कई गंभीर आरोप लगाए थे। इसके अलावा रुश्दी की जिंदगी में कई महिलाओं को लेकर भी विवाद उठते रहे हैं। 







 



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