भारत ने आर्थिक और ऊर्जा भागीदारी में श्रीलंका के साथ डील फाइनल कर चीन को मुंह तोड़ जवाब दिया है।भारत और श्रीलंका अगले कुछ दिन में एक बेहद अहम समझौता करने जा रहे हैं। भारत अब श्रीलंका में करीब 100 साल पुराने त्रिंकोमाली ऑयल फार्म को नए सिरे से बनाएगा। इस इलाके को ‘चाइना-बे’ यानी चीन की खाड़ी भी कहा जाता है।
नए सिरे से बनाया जाएगा त्रिंकोमाली ऑयल फार्म: श्रीलंका के नॉर्थ-ईस्ट में त्रिंकोमाली राज्य है। यहां 99 ऑयल टैंक्स का एक फार्म है। हर टैंक में 12 हजार किलोलीटर ऑयल स्टोर किया जा सकता है। दूसरे विश्व युद्ध के आसपास इसे ब्रिटेन ने बनवाया था। वक्त के साथ ये टैंक्स खराब हो चुके हैं। इन्हें नए सिरे से बनाने के लिए ही भारत-श्रीलंका डील करने करने जा रहे हैं। श्रीलंका के एनर्जी मिनिस्टर उदय गमनपिला और भारतीय विदेश मंत्रालय ने कन्फर्म कर दिया है कि कुछ ही दिन में भारत-श्रीलंका ऑयल टैंक फार्म डील पर दस्तखत करेंगे।
त्रिंकोमाली इसलिए भारत के लिए है खास: रिपोर्ट के मुताबिक पूरा त्रिंकोमाली राज्य और यहां के संसाधन भारत के लिए सुरक्षा के लिहाज से बेहद अहम हैं। यही वजह है कि भारत ऑयल टैंक फार्म डील करने के लिए ओपन और बैकडोर डिप्लोमैसी के जरिए पूरी शिद्दत से मेहनत कर रहा था। इसके जरिए भारत अब चीन के कब्जे में आ चुके हम्बनटोटा पोर्ट को काउंटर बैलेंस कर सकता है।
चीन पर नजर रख सकत है भारत: 1987 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और श्रीलंकाई राष्ट्रपति जयवर्धने ने भारत-श्रीलंका अकॉर्ड पर दस्तखत किए थे। वास्तव में ऑयल टैंक फार्म डील इसी का हिस्सा था। उस वक्त सिविल वॉर से जूझ रहा श्रीलंका इस पर काम नहीं कर पाया। ऐसे में श्रीलंका धीरे-धीरे चीनी कर्ज के जाल में फंसता गया। उसे अपना हम्बनटोटा पोर्ट तक 99 साल के लिए गिरवी रखना पड़ा। श्रीलंका में चीन की पैठ भारत के लिए बहुत बड़ा खतरा है, क्योंकि श्रीलंका और भारत की समुद्री सीमाएं काफी करीब हैं। ऐसे में सुरक्षा के लिहाज से भारत के लिए ये डील बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है।