NEW DELHI/TOKYO. जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे (Japan Former PM Shinzo Abe) को 8 जुलाई को नारा शहर में गोली मार दी गई। बाद में इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। हत्या की खबर से वाराणसी के लोग भी सदमे में हैं। सारनाथ स्थित जापानी मंदिर में आबे को मौन सलामी दी गई। गंगा आरती में भी आबे को श्रद्धांजलि दी जाएगी। पीएम नरेंद्र मोदी और जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की दोस्ती जगजाहिर है। प्रधानमंत्री रहते हुए जब आबे भारत आए थे तो मोदी उन्हें 12 दिसंबर 2015 को वाराणसी लेकर आए थे। दोनों प्रधानमंत्रियों ने दशाश्वमेध घाट पर गंगाजल हाथ में लेकर विश्व की मंगलकामना का संकल्प लिया था।
बनारस में अभूतपूर्व स्वागत से अभिभूत थे आबे
शिंजो आबे का भारतीय संस्कृति और सभ्यता के प्रति स्नेह सभी ने देखा था। दोनों ने मढ़ी में बैठकर एक घंटे से ज्यादा वक्त तक गंगा आरती देखी थी। तत्कालीन जापानी प्रधानमंत्री शिंजों की यह यात्रा भारत की विदेश नीति का अहम हिस्सा थी, जिसने दुनिया की महाशक्तियों को अपना अहसास दिलाया था। बनारस में हुए अभूतपूर्व स्वागत से शिंजो गदगद थे और देर तक खड़े रहकर लोगों का अभिवादन किया था। यही नहीं मोदी और शिंजो ने नदेसर पैलेस में अपने क्षेत्र के महारथी 68 खास लोगों से मुलाकात कर भविष्य की योजना का खाका भी खींचा था।
भारत जापान की दोस्ती का प्रतीक है रुद्राक्ष कंवेंशन सेंटर
भारत-जापान की सालों से चली आ रही दोस्ती के प्रतीक रुद्राक्ष कंवेंशन सेंटर की नींव 2015 में पीएम मोदी और आबे ने रखी थी। सेंटर को सांस्कृतिक व आधुनिक समागम के प्रमुख केंद्र के रूप में विकसित किया गया है। 186 करोड़ की लागत से तैयार सेंटर शिवलिंग के आकार में निर्मित है। इसमें जापानी और भारतीय दोनों ही प्रकार की वास्तुशैलियों का संगम दिखता है। रुद्राक्ष कन्वेंशन की डिजाइन जापान की कंपनी ओरिएंटल कंसल्टेंट ग्लोबल ने तैयार की है।
टोक्यो के राजनीतिक परिवार में हुआ था जन्म
शिंजो आबे का जन्म 21 सितंबर 1954 को टोक्यो में हुआ था। आबे देश के प्रभावशाली परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनका परिवार मूल रूप से यामागुशी प्रांत का रहने वाला है। यहीं उनके दादा कॉन आबे और पिता शिंटारो आबे का जन्म हुआ था। उनके परदादा विस्काउंट योशिमा इंपीरियल जापानी सेना के जनरल रह चुके थे। आबे की मां योको किशी जापान के पूर्व प्रधानमंत्री नोबुसेकु किशी की बेटी हैं। नोबुसेकु 1957 से 1960 तक जापान के प्रधानमंत्री रहे।
आबे ने ओसाका में अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी की थी। यहां की साइकेई यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस में ग्रेजुएशन किया। ग्रेजुएशन के बाद आगे की पढ़ाई के लिए आबे अमेरिका चले गए। अमेरिका की सदर्न कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से उन्होंने अपनी बाकी की पढ़ाई पूरी की।
स्टील प्लांट में काम किया
अमेरिका से वापस आने के बाद अप्रैल 1979 में आबे ने कोबे स्टील प्लांट में काम करना शुरू किया। 1982 में उन्होंने नौकरी छोड़कर राजनीति में एंट्री ली। राजनेता बनने से पहले उन्होंने सरकार से जुड़े कई पदों पर अपनी जिम्मेदारियां निभाई। 1993 में आबे के पिता निधन हो गया और फिर आबे ने चुनाव लड़ा। चुनाव में उन्हें जीत मिली और वो यामागुशी से सांसद चुने गए।
सबसे युवा पीएम
2006 में लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के आबे को प्रधानमंत्री चुना गया। तब उनकी उम्र 52 साल थी। वे 2007 तक देश के पीएम रहे। इस दौरान उनके नाम दो रिकॉर्ड दर्ज हुए। आबे ना सिर्फ युद्ध के बाद देश के सबसे युवा प्रधानमंत्री बने, बल्कि वह पहले ऐसे पीएम थे, जिनका जन्म सेकंड वर्ल्ड वॉर के बाद हुआ। इसके बाद वे दूसरी बार 26 दिसंबर 2012 से 16 दिसंबर 2020 तक लगातार प्रधानमंत्री रहे। वो देश के ऐसे प्रधानमंत्री रहे हैं, जिसने सबसे लंबे समय तक इस पद को संभाला। इस बीच वे बीमार हो गए। बीमारी बढ़ने के चलते उन्होंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। हालांकि, इस बीच वे लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष बने रहे।
शिंजो के बारे में ये भी खास
नॉर्थ कोरिया से विवाद सुलझाया : शिंजो आबे को नॉर्थ कोरिया के लिए उनके सख्त रवैये के लिए जाना जाता है। 2001 में नॉर्थ कोरियन नागरिकों ने जापान के नागरिकों को अगवा कर लिया था। आबे जापान की सरकार की ओर से मुख्य मध्यस्थ के तौर पर भेजे गए थे। आबे ने 2002 में नॉर्थ कोरिया के उस समय के प्रधानमंत्री और तानाशाह किम जोंग इल से मुलाकात की। उनके प्रयासों से संकट सुलझा और उनके चाहने वालों की संख्या बढ़ गई थी।
'लव फॉर कंट्री' : आबे ने जापान की राजनीति के साथ ही वहां की इकोनॉमी को भी एक नया रंग दिया। आबे की आर्थिक नीतियों ने एक नए शब्द 'आबेनॉमिक्स' को जन्म दिया। इसकी तर्ज पर ही भारत में पीएम नरेंद्र मोदी मोदी की आर्थिक नीतियों को 'मोदीनॉमिक्स' नाम दिया गया था। आबे ने मार्च 2007 में राइट विंग राजनेताओं के साथ मिलकर एक बिल का प्रस्ताव रखा था। इस बिल के तहत जापान के युवाओं में अपने देश और गृहनगर के लिए प्यार को बढ़ाने के लिए कई तरह की बातें थीं। बिल को 'लव फॉर कंट्री,' के नाम से पास कराया गया।
इस बीमारी से पीड़ित थे
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक शिंजो आबे अल्सरेटिव कोलाइटिस से भी पीड़ित थे, जिसके कारण उनके लिए कामकाज कठिन हो रहा था। अगस्त 2020 में यह दूसरा मौका था, जब अपने कार्यकाल में सेहत में गड़बड़ी के कारण उन्होंने पद से इस्तीफा दिया था। इससे पहले 2007 में भी वे इन्हीं कारणों का हवाला देते हुए करीब एक साल तक सत्ता से बाहर रहे।
अल्सरेटिव कोलाइटिस, क्रोनिक इंफ्लामेटरी बाउल डिजीज (आईबीडी) की स्थिति है, जिसमें पाचन तंत्र में सूजन और अल्सर (घाव) बन जाती है। अल्सरेटिव कोलाइटिस आपकी बड़ी आंत (कोलन) और मलाशय की अंदरूनी परत को प्रभावित करता है। अल्सरेटिव कोलाइटिस के कुछ मामले गंभीर और जानलेवा भी हो सकते हैं। समय पर इसके लक्षणों की पहचान कर इलाज करना जरूरी हो जाता है।