75 साल में PAK में कोई सरकार 5 साल नहीं चली, जानें कब और कैसे हटाए गए PM

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Atul Tiwari
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75 साल में PAK में कोई सरकार 5 साल नहीं चली, जानें कब और कैसे हटाए गए PM

इस्लामाबाद. पाकिस्तान की सियासत ने 9 अप्रैल की रात नई करवट ले ली। 4 साल पुरानी इमरान खान सरकार नेशनल असेंबली में अविश्वास प्रस्ताव हार गई। इसके साथ ही एक इतिहास लगातार कायम है। 1947 से अब तक पाकिस्तान का कोई प्रधानमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका।  कभी सेना ने तख्तापलट किया तो कभी कोर्ट ने प्रधानमंत्रियों को अयोग्य घोषित कर दिया। एक बार तो मौजूदा प्रधानमंत्री की हत्या कर दी गई। अब तक चार सेना प्रमुख पाकिस्तान की सत्ता पर कब्जा कर चुके हैं। इसके अलावा कई बार सेना द्वारा सत्ता हथियाने की कोशिश कर चुकी है। इस वजह से तीन दशक से ज्यादा समय तक पाकिस्तान में सेना का शासन रहा। जानिए,  बीते 75 साल में पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों को कब और कैसे सत्ता से बेदखल होना पड़ा…





विपक्ष को मिले 174 वोट गिरी इमरान की सरकार





पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग नहीं कराने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। कोर्ट ने अपने फैसले में इमरान खान को नेशनल असेंबली में नौ अप्रैल 2022 को अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान कराने के लिए कहा था। हालांकि देर रात जब मतदान हुआ तो इमरान खान की कुर्सी चली गई। इमरान पाकिस्तान के पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जो अविश्वास प्रस्ताव के जरिए पद से हटाए गए। अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग में विपक्ष को 174 वोट मिले। इसी के साथ इमरान खान की सरकार गिर गई। 342 सदस्यीय असेंबली में सरकार बनाने के लिए 172 सदस्यों की जरूरत होती है। विपक्ष को 174 वोट मिलने के साथ ही शहबाज शरीफ के प्रधानमंत्री बनने का रास्ता साफ हो गया है। शहबाज शरीफ पंजाब प्रांत के तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं।





कौन कब रहा, कैसे हटा





लियाकत अली खान





14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान अस्तित्व में आया। लियाकत अली खान देश के प्रधानमंत्री बने। लियाकत 4 साल 63 दिन तक प्रधानमंत्री रहे। वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। 6 अक्टूबर 1951 को रावलपिंडी के कंपनी बाग में एक सभा को संबोधित कर रहे लियाकत अली की हत्या कर दी गई।  





ख्वाजा निजामुद्दीन





लियाकत की हत्या के बाद ख्वाजा निजामुद्दीन ने पीएम की कुर्सी संभाली। करीब डेढ़ साल बाद ही उन्हें बर्खास्त कर दिया गया। निजामुद्दीन महज एक साल 182 तक ही पद पर रह सके। 17 अप्रैल 1953 को निजामुद्दीन को सत्ता से बेदखल कर दिया गया। तत्कालीन गवर्नर जनरल मलिक गुलाम मुहम्मद ने लाहौर और पूर्वी पाकिस्तान में फैले दंगों को काबू नहीं कर पाने के आरोप में निजामुद्दीन पर ये कार्रवाई की। 



 



मोहम्मद अली बोगरा





निजामुद्दीन को बर्खास्त करने के बाद गवर्नर जनरल गुलाम मोहम्मद ने मोहम्मद अली बोगरा को प्रधानमंत्री नियुक्त किया। बोगरा डिप्लोमैट थे। पाकिस्तान के अमेरिका से रिश्ते बेहतर करने में उनकी बड़ी भूमिका रही थी। बोगरा को जिन गुलाम मोहम्मद ने नियुक्त किया था, वो उनकी ही शक्तियां कम करने में लग गए। इसके लिए उन्होंने भारत स्वतंत्रता अधिनियम-1954 में बदलाव किए। 





नतीजा ये रहा कि उसी साल संविधान सभा को भंग कर दिया गया। सिंध हाईकोर्ट ने सरकार के इस फैसले गैरकानूनी बताया, लेकिन संघीय न्यायालय ने कोर्ट के फैसले को बदल दिया। कोर्ट ने संविधान सभा को ही गैरकानूनी थी, क्योंकि 6 साल तक किसी संविधान को अंतिम रूप नहीं दिया जा सकता। 





इस पूरी लड़ाई के दौरान बोगरा एक अंतरिम सरकार चलाते रहे। इस सरकार की कैबिनेट का गठन राष्ट्रपति ने किया था। बोगरा की अंतरिम सरकार में सेना प्रमुख अयूब खान रक्षा मंत्री थे। 1955 में पाकिस्तान में चुनाव हुए और मुस्लिम लीग को बहुमत मिला। बोगरा गठबंधन के जरिए सत्ता में आ गए। गुलाम मोहम्मद की जगह इस्कंदर मिर्जा के राष्ट्रपति बनते ही बोगरा को इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा। 2 साल 3 महीने 25 दिन तक सत्ता में रहने के बाद बोगरा को 12 अगस्त 1955 को पद छोड़ना पड़ा। 





चौधरी मोहम्मद अली





बोगरा के बाद चौधरी मोहम्मद अली ने कुर्सी संभाली। 1956 में बने पाकिस्तान के संविधान को बनाने में मोहम्मद अली की भूमिका अहम थी। इसके बाद भी पाकिस्तान का अधिराज्य का दर्जा खत्म हुआ। हालांकि, अली महज एक साल 31 दिन ही प्रधानमंत्री रह सके। उनकी पार्टी मुस्लिम लीग ही उनके खिलाफ हो गई। मंत्रियों ने सामूहिक रूप से इस्तीफे दे दिए। अली को इस्तीफा देने को कहा गया। उन्हें पद ही नहीं, पार्टी तक छोड़नी पड़ी।





हुसैन शहीद सुहरावर्दी





मोहम्मद अली के इस्तीफे के बाद राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा ने अवामी लीग के सुहरावर्दी को सरकार बनाने के लिए बुलाया। गठबंधन के जरिए सत्ता में आए सुहरावर्दी को 13 महीने बाद ही रिजाइन देना पड़ा। 1957 में जब उनके सहयोगियों ने उनका साथ छोड़ दिया तो राष्ट्रपति मिर्जा ने उन्हें इस्तीफा देने को कह दिया।  





इब्राहिम इस्माइल चुंदरीगर





ये 18 अक्टूबर 1957 को पाकिस्तान रिपब्लिकन पार्टी, कृषक श्रमिक पार्टी और निजाम-ए-इस्लाम पार्टी की मदद से प्रधानमंत्री बने। हालांकि, महज 2 महीने से भी कम समय में ही उन्होंने बहुमत खो दिया। उन्हें चुनावी प्रक्रिया में बदलाव की कोशिश का खामियाजा भुगतना पड़ा। 





फिरोज खान नून 





चुंदरीगर के बाद रिपब्लिकन पार्टी के फिरोज खान नून प्रधानमंत्री बने। हालांकि, 10 महीने बाद ही राष्ट्रपति मिर्जा ने जनरल अयूब खान के साथ मिलकर देश में सैन्य शासन लगा दिया। ये पहला मौका था, जब पाकिस्तान में सैन्य तख्तापटल हुआ था। नून केवल 9 महीने 21 दिन ही पद पर रह पाए। 





13 साल का आर्मी रूल





1958 में लगा सैन्य शासन एक दशक से ज्यादा चला। 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध, पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान के शहरी इलाकों में बढ़ते विद्रोह के कारण मार्च 1969 में अयूब खान को सत्ता छोड़नी पड़ी। अयूब खान के बाद जनरल आगा मोहम्मद याह्या खान पाकिस्तान पर शासन करने वाले दूसरे सैन्य प्रमुख बने। खान 1971 तक देश के शासक रहे। इस तरह पाकिस्तान के अस्तित्व में आने के पहले 25 में से 13 साल वहां सैन्य शासन रहा।  





नूरुल अमीन





1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान पूर्वी पाकिस्तान के नेता नूरुल अमीन को जनरल याह्या खान ने 6 दिसंबर 1971 को प्रधानमंत्री नियुक्त किया। युद्ध में हार के बाद याह्या खान को इस्तीफा देना पड़ा। जुल्फिकार अली भुट्टो देश के राष्ट्रपति बने और नूरुल को महज 13 दिन बाद पद छोड़ना पड़ा। इसके दो दिन बाद नूरुल पाकिस्तान के पहले और अब तक के इकलौते उपराष्ट्रपति बने।  





जुल्फिकार अली भुट्टो





जनरल अयूब खान की कैबिनेट का हिस्सा रहे जुल्फिकार अली भुट्टो ने कैबिनेट से अलग होने के बाद पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) बनाई। दिसंबर 1970 में हुए चुनाव में उनकी पार्टी ने पश्चिमी पाकिस्तान में बहुमत हासिल किया। हालांकि, पूर्वी पाकिस्तान की ज्यादातर सीटों पर जीतने वाली शेख मुजीब की अवामी लीग से  गठबंधन नहीं हो सका।    





1973 में जब संविधान फिर से लागू हुआ तो जुल्फिकार राष्ट्रपति पद छोड़कर प्रधानमंत्री बने। 1977 के चुनाव के बाद वह दोबारा सत्ता में लौटे, लेकिन नौ पार्टियों के पाकिस्तान नेशनल अलायंस ने उनके ऊपर वोट में हेरफेर का आरोप लगाया। देश में हो रही हिंसा और अशांति ने सेना को फिर से सत्ता में आने का मौका दे दिया। 5 जुलाई 1977 को जनरल जिया-उल-हक ने तख्तापलट कर दिया। उन्होंने 1973 के संविधान को फिर से निलंबित कर दिया। इस तरह 3 साल 10 महीने 21 प्रधानमंत्री रहे जुल्फिकार अली भुट्टो को सत्ता से बेदखल होना पड़ा।  





पूर्व प्रधानमंत्री को फांसी दी गई





सत्ता पर कब्जा करने के बाद जनरल जिया ने सभी राजनीतिक पार्टियों पर प्रतिबंध लगा दिया। 1979 में जुल्फीकार भुट्टो को हत्या के आरोप में फांसी पर चढ़ा दिया गया। भुट्टो की पार्टी के बाकी नेता या तो जेल भेज दिए गए या फिर निर्वासित हो गए। करीब 8 साल बाद जनरल जिया ने मार्शल लॉ हटाने का ऐलान किया। इसके साथ पाकिस्तान में नए संसदीय युग की शुरुआत हुई।  





मोहम्मद खान जुनेजो





1985 में हुए गैर-दलीय चुनाव में मोहम्मद खान जुनेजो अपनी सीट से जीते और राष्ट्रपति जनरल जिया ने उन्हें सरकार बनाने के लिए बुलाया। राष्ट्रपति जिया से रिश्ते खराब होने के बाद जुनेजो को कानून-व्यवस्था खराब होने के आधार पर पद से हटा दिया गया। जुनेजो 3 साल दो महीने और पांच दिन पद पर रहे।  





बेनजीर भुट्टो





जनरल जिया की मौत के बाद 1988 में फिर से चुनाव हुए। राजनीतिक पार्टियों ने फिर से चुनाव लड़ा। 2 दिसंबर 1988 को बेनजीर भुट्टो प्रधानमंत्री बनीं। बेनजीर देश की पहली महिला और सबसे युवा प्रधानमंत्री थीं। 6 अगस्त 1990 को राष्ट्रपति ने भ्रष्टाचार और परिवारवाद के आरोपों के चलते भुट्टो सरकार को बर्खास्त कर दिया। 





1993 में भुट्टो दूसरी बार सत्ता में लौटीं। भाई मुर्तजा की हत्या, 1995 के असफल तख्तापलट और घूस कांड, जिसमें उनका और उनके पति आसिफ अली जरदारी का नाम आया। ये वो वजहें थी जिन्होंने बेनजीर की सत्ता को खत्म किया। लगातार बढ़ते विवादों के बीच राष्ट्रपति ने उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया। भुट्टो 4 साल 8 महीने 7 दिन प्रधानमंत्री रहीं।  





नवाज शरीफ





नवाज पाकिस्तान में सबसे लंबे समय तक राज करने वाले प्रधानमंत्री हैं। 1990 के चुनाव में जीत के बाद नवाज पहली बार प्रधानमंत्री बने। तत्कालीन राष्ट्रपति गुलाम इशाक खान ने संविधान के 8वें संशोधन में मिली शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए 18 अप्रैल 1993 को नेशनल असेंबली को भंग करके अंतरिम प्रधानमंत्री की नियुक्ति कर दी। शरीफ सुप्रीम कोर्ट गए। फैसला शरीफ के पक्ष में आया। सेना के दबाव में जुलाई 1993 में शरीफ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। 





1997 में शरीफ चुनाव जीतकर दूसरी बार सत्ता में आए। इस बार वो 3 साल से भी कम वक्त के लिए प्रधानमंत्री रहे। 1999 में सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ ने तख्तापलट कर दिया। 2013 में शरीफ को तीसरी बार बहुमत मिला। वो फिर प्रधानमंत्री बने। हालांकि, जुलाई 2017 में पनामा पेपर्स मामले के चलते सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया। इस बार भी वो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। कुल मिलाकर शरीफ 9 साल से ज्यादा वक्त तक देश के प्रधानमंत्री रहे। शरीफ को अयोग्य घोषित किए जाने के बाद बाकी कार्यकाल शाहिद खाकान अब्बासी ने पूरा किया। 





मुशर्रफ के सैन्य शासन में 3 PM  





1999 में परवेज मुशर्रफ के तख्तापलट के बाद के सैन्य शासन में मीर जफरुल्ला खान जमाली, चौधरी शुजात हुसैन और शौकत अजीज प्रधानमंत्री रहे। 2007 में फिर से संसदीय चुनाव हुए।  





यूसुफ रजा गिलानी





2007 के चुनाव के दौरान बेनजीर भुट्टो की हत्या हो गई। चुनाव में बेनजीर की पार्टी को जीत मिली और यूसुफ रजा गिलानी प्रधानमंत्री बने। 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने गिलानी को अयोग्य करार दे दिया। उस वक्त गिलानी के कार्यकाल के 9 महीने बचे थे। गिलानी को स्विस अधिकारियों को राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले फिर से शुरू करने के लिए पत्र लिखना था। उन्होंने ऐसा नहीं किया और इसकी वजह से उन्हें सत्ता गंवानी पड़ी।  इसके बाद बाकी कार्यकाल पीपीपी के राजा परवेज अशरफ ने पूरा किया। 





इमरान खान





2018 के चुनावों में जीत के बाद इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ सत्ता में आई। अगस्त 2018 में इमरान ने शपथ ली थी। 4 साल पूरे होने के पहले ही इमरान अविश्वास प्रस्ताव हार गए। लिहाजा पाकिस्तान के किसी भी प्रधानमंत्री का कार्यकाल पूरा नहीं करने का रिकॉर्ड कायम है।



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