LONDON. पिकिस्तान की मलाला यूसुफजई अपना 25वां जन्मदिन मना रही हैं। मलाला के जन्मदिन को अंतरराष्ट्रीय मलाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। मलाला पाकिस्तान में लड़कियों की शिक्षा को लेकर आवाज उठाने वाली युवा कार्यकर्ता हैं। मलाला की इस पहल की सारी दुनिया में सराहना की गई। इंटरनेशनल लेवल पर मलाला को ये सम्मान ऐसे ही नहीं मिला इसके उन्हें जिंदगी और मौत के बीच जूझना पड़ा था। जानिए क्या है मलाला की कहानी..
तालीबानी आतंक के खिलाफ मलाला की पहल
मलाला यूसुफजई का जन्म साल 1997 में पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत की स्वात घाटी में हुआ था। मलाला यूसुफजई जहां पैदा हुईं, वहां 2007 से लेकर 2009 तक तालिबानियों का आतंक मचा था। तालिबानी आतंक के डर से उस प्रांत की लड़कियां घर से बाहर तक नहीं निकलती थीं। साथ ही वहां की लड़कियों का स्कूल जाना और पढ़ाई करना पूरी तरह बंद हो चुका था। ऐसे में मलाला ने हिम्मत कर अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ी। उस वक्त मलाला महज 8 साल की थीं।
मलाला तालिबानियों से बेखौफ होकर लड़कियों की एज्यूकेशन के लिए काम करती थीं। 2009 में एक प्रतिष्ठित न्यूज चैनल को डायरी लिखने के बाद मलाला पूरी दुनिया के सामने आईं। मलाला की इस पहल से बौखलाए तालिबानियों ने 2012 में बस के अंदर मलाला यूसुफजई के सिर में गोली मार दी। छोटी सी मलाला गंभीर रूप से घायल हुईं और उन्हें इलाज के लिए ब्रिटेन ले जाया गया।
टीटीपी ने ली थी हमले की जिम्मेदारी
मलाला यूसुफजई पर हुए हमले की सारी जिम्मेदारी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) ने ली थी। जब मलाला ठीक हुईं तो उनकी पहल और बहादूरी की सराहना दुनिया भर में हुई।
नोबल पीस प्राईज की हकदार मलाला
मलाला को अंतरराष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार (International Children's Peace Prize) और 2013 में नोबेल शांति पुरस्कार (Nobel Peace Prize) समेत कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। 2012 में सबसे प्रचलित शख्सियतों (most popular personalities) में मलाला यूसुफजई का नाम आया था। साथ ही संयुक्त राष्ट्र (United Nations) ने मलाला के बर्थडे (12 जुलाई) को अंतरराष्ट्रीय मलाला दिवस (International Malala Day) घोषित किया।