DELHI: सरोगेट मां रहती है कैलिफॉर्निया में, एम्ब्रियो एक्सपोर्ट करने हाईकोर्ट में याचिका दायर

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The Sootr CG
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DELHI: सरोगेट मां रहती है कैलिफॉर्निया में, एम्ब्रियो एक्सपोर्ट करने हाईकोर्ट में याचिका दायर

DELHI. जिंदा मानव भ्रूण (Embryo) को कैलिफोर्निया (california) भेजने की मांग को लेकर एक पिटीशन दिल्ली हाईकोर्ट में दायर की गई है। इस पिटीशन में कोर्ट से रिक्वेस्ट की गई है कि इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) को नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (NOC) जारी करने का आदेश दिया जाए। इस याचिका पर सुनवाई 20 जुलाई के बाद होनी है।



एक गाएनेकोलॉजिस्ट के मुताबिक..



भ्रूण (Embryo) क्या होता है?



मां के गर्भ में 8वें हफ्ते से लेकर पैदा होने के पहले तक बच्चा भ्रूण (Embryo) के रूप में ही रहता है। यह भ्रूण एक औरत के फर्टिलाइज्ड एग (fertilized egg) से निकलकर यूट्रस की दीवार (uterus wall) पर चिपक जाता है। 



Embryo भेजने की मांग क्यों?



यह मामला सरोगेसी का है। पिटीशन फाइल करने वाले के एडवोकेट परमिंदर सिंह का कहना है कि सरोगेट मां कैलिफोर्निया (california) में रहती है। इस भ्रूण को कैलीफोर्निया एक्सपोर्ट करना बहुत जरूरी है। बहुत कोशिशों के बाद सरोगेट मां के साथ दोबारा समझौता किया गया है। ऐसे में जरा-सी भी देरी मामला बिगाड़ सकती है। ऐसे में सरोगेट मदर सरोगेसी के लिए मना भी कर सकती है।



सरोगेसी क्या है?



सरोगेसी को आम भाषा में ‘किराए की कोख’ कहते हैं। ऐसे मामले तब आते हैं जब कोई कपल पेरेंट नहीं बन पाते। तो वह कपल बच्चा पैदा करने के लिए दूसरी महिला के गर्भाशय (Uterus) का सहारा लेता है। इस प्रक्रिया को लीगल ढंग से किया जाता है। कपल और सरोगेट मदर के बीच एक लीगल एग्रीमेंट बनाया जाता है। इस प्रोसेस के जरिए बच्चा पैदा करने और गर्भ में बच्चा पालने को ही सरोगेसी कहते हैं। दूसरे के बच्चे को अपने गर्भ में पालने वाली महिला को सरोगेट मदर कहते हैं।



सरोगेसी की प्रक्रिया 



सरोगेसी में महिला का ऐग (Egg) और पुरुष के स्पर्म (Sperm) को टेस्ट ट्यूब (Test tube) के जरिए मिलाया जाता है। फिर इसे सरोगेट मदर के गर्भ (Uterus) में डाला जाता है।



सबसे पहले माता-पिता के ऐग (Egg) और स्पर्म (Sperm) को मिलाया जाता है। अगर उस कपल में से कोई एक या दोनों ही बच्चे को जनम नहीं दे सकते तब डोनर मदर के और मेल के स्पर्म (Sperm) की हेल्प ली जाती है। इस बच्चे के लीगल पेरेंट्स वह कपल होता है जो सरोगेसी के कराते हैं। इस प्रक्रिया के चलते प्रेग्नेंसी से लेकर डिलीवरी और मेडिकल जरूरतों के लिए सरोगेट मदर का खर्च वह कपल उठाता है।



सरोगेसी के टाइप्स



सरोगेसी दो तरह की होती है, (1) जेस्टेशनल सरोगेसी और (2) ट्रेडिशनल सरोगेसी। जेस्टेशनल सरोगेसी में पेरेंट बनने वाले कपल के ऐग (Egg) और स्पर्म को फर्टिलाइज करके सरोगेट मां के यूट्रस (Uterus) में टेस्ट ट्यूब (Test tube) की मदद से रखा जाता है। इस प्रोसेस में सरोगेट मदर बच्चे की बॉयोलॉजिकल (Biological) मदर नहीं होती।



वहीं ट्रेडिशनल सरोगेसी में डोनर का स्पर्म (Sperm) सरोगेट मां के ऐग (Egg) से मैच किया जाता है। इस प्रोसेस में स्पर्म (Sperm) को सीधे सरोगेट मदर के यूट्रस में एग से मैच कराते हैं। इंट्रायूटरिन इनसेमिनेशन प्रोसेस (Intrauterine Insemination Process) के जरिए इसे पूरा किया जाता है। इसमें बच्चे की बायोलॉजिकल मदर सरोगेट मदर ही होती है। भारत में सरोगेसी का खर्च करीब 10 से 25 लाख रुपए के बीच है। वहीं फॉरन कंट्रीज में इसका खर्च लगभग 60 लाख रुपए तक है।



जानिए कानूनी दांव-पेंच..



जिंदा भ्रूण एक्सपोर्ट करना है गैर-कानूनी



मेडिकली जिंदा भ्रूण को देश से बाहर भेजना पॉसिबल है, लेकिन कानूनन ऐसा करना इलीगल है। अगर भ्रूण को एक्सपोर्ट करने परमिशन आसानी से दे दी गई तो यह कर्मिशयलाइज्ड हो जाएगा। दूसरे ऑर्गेन की तरह इसकी भी तस्करी होने लगेगी। कुछ लोग पैसे कमाने के लिए इसे जरिया बना सकते हैं।



यह नियम पहले से नहीं था। असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी रेगुलेशन एक्ट (ART 2021) के तहत इस पर रोक लगाई गई। अब सवाल उठता है कि क्या किसी भी स्थिति में एम्ब्रियो को एक्सपोर्ट करने की मनजूरी नहीं दी जाएगी? दरअसल, जिन माता-पिता ने पिटिशन फाइल की है, उन्होंने कैलिफॉर्निया की सरोगेट मदर को ART 2021 लागू होने से पहले चुना था।



सरोगेसी रेगुलेशन बिल (surrogacy regulation bill) 2020 में लोकसभा में पास हुआ। जिसमें सरोगेसी के नियम बदल गए थे और कमर्शियलाइजेशन (commercialization) पर रोक लगाई थी। 



किस तरह मिलेगी भ्रूण एक्सपोर्ट करने की परमिशन



वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के फॉरेन ट्रेड रुल (Foreign Trade Rule of Ministry of Commerce and Industry) के मुताबिक केंद्र सरकार (Central government) ने भ्रूण एक्सपोर्ट करने की परमिशन दी है, लेकिन इसके लिए एक्सपोर्ट करने की ठोस वजह बतानी होगी। इसके साथ ही इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) से नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट यानी NOC लेना भी जरूरी है।


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