कीव/मॉस्को. रूस ने यूक्रेन पर हमले तेज कर दिए हैं। युद्ध का आज (13 मार्च) को 18वां दिन है। 24 फरवरी को रूस ने यूक्रेन पर हमले शुरू किए थे। यूक्रेन के करी हर क्षेत्र में हवाई हमले की चेतावनी जारी की गई है। यहां रेड अलर्ट के सायरन बज रहे हैं। यूक्रेन के उमान, खारकीव, क्रामटोर्स्क, स्लोवियनस्क, विन्नित्सिया, राजधानी कीव, पोल्टावा, जाइटॉमिर, खमेलनित्स्की, ल्विव, ओडेसा, वोलिन, जेपोरिजिया, बेरेजिव्का, इजमेल, किलिया, युजने, चेर्नोमोर्स्क, बिलाइवका, और अवदिवका में सायरन सक्रिय कर दिए गए हैं। साथ ही कीव, रिव्ने, चर्नीहीव, टेरनोपिल, डीनिप्रो, चर्कासी और सुमी ओब्लास्ट इलाकों में लोगों से तत्काल मेट्रो शेल्टर में जाने के लिए कहा गया है।
जानकारी के मुताबिक, रूसी सेना कीव के सेंटर प्वॉइंट से महज 16 किलोमीटर दूर है। हालांकि, यूक्रेनी छापामार दलों के साथ रूसी सेना की फाइट चल रही है, लेकिन रूसी सेना भारी पड़ रही है। कीव के करीब रूसी सेना के हमले में 1 बच्चे समेत 7 लोगों की मौत हो गई है। वहीं, अमेरिका ने यूक्रेन को करीब 1500 करोड़ रुपए के अतिरिक्त हथियार और इक्विपमेंट देने की घोषणा की है। व्हाइट हाउस ने 12 मार्च को कहा कि इन हथियारों में एंटीटैंक व एंटीएयरक्राफ्ट मिसाइल्स भी शामिल हैं।
लोगों को निकलने में परेशानी: यूक्रेन की उपप्रधानमंत्री आइरिना वेरेसचुक ने कहा, बमबारी के कारण नागरिकों को बचाकर निकलना और मुश्किल होता जा रहा है। लोगों को सुरक्षित निकालने के लिए आपसी सहमति से मानव गलियारे खोले गए थे, लेकिन बीते दो दिनों से रूसी हमला तेज हो गया। हालांकि, राष्ट्रपति वेलोडिमिर जेलेंस्की के एक सलाहकार ने बताया कि नागरिकों को लेने के लिए 79 बस और दो ट्रक सुमी रवाना हुए हैं। इसी तरह जेपोरिजिया से मैरियूपोल के लिए भी बसें व ट्रक भेजे गए हैं।
उधर, संयुक्त राष्ट्र संघ ने रूसी घेराबंदी के कारण बुरी स्थिति का जिक्र करते हुए कहा कि मैरियूपोल में गोलाबारी के कारण बाहर निकल पाने में नाकाम लोगों के बीच अब जरूरी चीजों के लिए मारपीट शुरू हो गई है।
सैन्य एयरबेस तबाह: रूसी सेना ने यूक्रेन के वेसिलकीव में एक सैन्य एयरबेस को 8 मिसाइलें दागकर नष्ट कर दिया है। वहीं कीव में एक तेल डिपो व एक हथियार डिपो भी तबाह हो गया है। यूक्रेन ने कहा, रूसी हमले में 79 बच्चों की मौत हुई है। रेडक्रॉस ने यूक्रेन को रूसी सैनिकों के लिए बॉडी बैग सौंपे हैं, ताकि उनके शव वापस भेजे जा सकें। हालांकि युद्ध में जान गंवाने वाले सैनिकों की स्वदेश वापसी पर अभी तक कोई समझौता नहीं हो पाया है।