श्रीलंका के PM विक्रमसिंघे की दो टूक- हमारे पास 1 दिन का पेट्रोल, देश बचाना मकसद

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Atul Tiwari
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श्रीलंका के PM विक्रमसिंघे की दो टूक- हमारे पास 1 दिन का पेट्रोल, देश बचाना मकसद

Colombo. श्रीलंका बुरे आर्थिक संकट से जूझ रहा है। हाल ही में पीएम की कुर्सी संभालने वाले रानिल विक्रमसिंघे ने 16 मई को दिए देश के नाम संबोधन में कहा कि श्रीलंका में सिर्फ एक दिन का पेट्रोल बचा है। मेरा पहला मकसद देश को बचाना है, ना कि किसी व्यक्ति, परिवार या समूह को। साफतौर पर उनका इशारा पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे और उनके परिवार की ओर था।





विक्रमसिंघे ने देश की जनता को चेताते हुए कहा है कि आने वाले कुछ महीनों में हमारी जिंदगी और मुश्किल में होगी। मैं किसी सच को छिपाना और जनता से झूठ नहीं बोलना चाहता। हालांकि ये बातें डरावनी हैं, लेकिन सच्चाई अब यही है। हालांकि श्रीलंका के पीएम ने विदेशी मदद की भी उम्मीद जताई है।





देश को बहुत नुकसान उठाना पड़ेगा





विक्रमसिंघे ने कहा कि श्रीलंकन एयरलाइंस को 2021 में 45 अरब श्रीलंकाई रुपए का नुकसान हुआ। 31 मार्च 2022 तक यह नुकसान बढ़कर 372 अरब श्रीलंकाई रुपए तक पहुंच गया। अगर हम श्रीलंकाई एयरलाइंस का निजीकरण भी कर दें तो भी हमें काफी नुकसान होगा। इन नुकसानों को श्रीलंका की मासूम जनता को उठाना पड़ेगा, जिन्होंने कभी एक विमान में कदम भी नहीं रखा। लोगों से अपील है कि वो दो महीने मेरा साथ दें। 14 लाख कर्मचारियों को सैलरी देने के लिए फंड्स नहीं हैं।





श्रीलंका में बदतर हालत





श्रीलंका सरकार को खर्च चलाने के लिए 2.4 ट्रिलियन श्रीलंकाई रुपए की जरूरत है, जबकि सरकार को मिलने वाला रेवेन्यू महज 1.6 ट्रिलियन ही है। जबसे श्रीलंका में संकट शुरू हुआ है, यह पहला मौका जब सरकार की ओर से इस सच्चाई को स्वीकारा गया है कि उसका विदेशी मुद्रा भंडार खत्म होने के कगार पर है, जिसकी वजह से वह तेल और बाकी जरूरी चीजें खरीद नहीं पा रही।





1948 से श्रीलंका अब तक के सबसे बुरे आर्थिक हालात से गुजर रहा है। श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार खत्म हो गया है, जिसकी वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार से जरूरी सामान नहीं खरीद पा रहा। इस वजह से ना तो उसके पास पेट्रोल बचा है और ना कुकिंग गैस। वहीं, बिजली कटौती और बढ़ती महंगाई ने श्रीलंका में आम लोगों का जीना दूभर कर दिया है। वहीं, आर्थिक संकट के साथ ही श्रीलंका में राजनीतिक संकट भी बढ़ गया है। महिंदा राजपक्षे के पीएम पद से इस्तीफा देने के बाद राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे पर भी इस्तीफे का दबाव बढ़ गया है, हालांकि उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया है। महिंदा और गोटाबाया भाई हैं।





श्रीलंका पर फिर से लिट्‌टे का खतरा





श्रीलंका पर लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम यानी लिट्‌टे (LTTE) के हमले का खतरा मंडरा रहा है। हाल ही में भारतीय खुफिया एजेंसियों ने श्रीलंका के रक्षा मंत्रालय को इसे लेकर इनपुट दिए हैं। भारतीय इनपुट के मुताबिक, 18 मई को लिट्‌टे किसी बड़ी घटना को अंजाम दे सकता है।





विपक्ष बोला- देश की मौजूदा स्थिति 1991 के भारत जैसी





श्रीलंका में विपक्ष के सांसद हर्षा डी सिल्वा ने देश की मौजूदा स्थिति को भारत में 1991 में छाए आर्थिक संकट के समान बताया है। उन्होंने कहा कि श्रीलंका इस संकट से बाहर निकल पाएगा और ऐसा तभी होगा जब यहां के राजनीतिक दल एक साथ खड़े हों। उस समय भारतीय राजनीतिक दल एकजुट थे, जिसकी वजह से वे संकट से बाहर आ गए। श्रीलंका में भी ऐसा तब ही होगा, जब यहां के राजनीतिक दल एक साथ खड़े होंगे। अगर पार्टियां अलग हो जाती हैं तो योजना विफल हो जाती है। यहां के राष्ट्रपति को राजनीतिक दलों को एक साथ आने के लिए तैयार करना होगा।



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