भारत का पड़ोसी देश श्रीलंका अब तक के सबसे बड़े आर्थिक संकट से जूझ रहा है। आर्थिक संकट से उबरने के लिए श्रीलंका की रानिल विक्रमसिंघे सरकार ने सरकारी एयरलाइन बेचने का फैसला किया है। प्रधानमंत्री की तरफ से इसका प्रस्ताव रखा गया है। इसके साथ ही सरकार ने नई करेंसी छापने का भी फैसला लिया है। फिलहाल, सरकार के पास कर्मचारियों को तनख्वाह देने के लिए पैसा नहीं है।
स्थिति को संभालने की जद्दोजहद
आर्थिक और सियासी मोर्चे पर जूझ रहे श्रीलंका ने दो साल पहले राष्ट्रपति को सत्ता की सारी शक्तियां सौंपकर बहुत भारी गलती की थी। राजपक्षे परिवार ने उसे इतिहास के सबसे बुरे दौर में पहुंचा दिया। अब इस गलती को सुधारने की कोशिश हो रही है, लेकिन बहुत सोच-समझकर कदम उठाए जा रहे हैं। अब संविधान में एक बेहद अहम संशोधन किया जा रहा है। इसका सीधा मकसद सत्ता और शक्तियों का सही बंटवारा है, ताकि कोई हुक्मरान मनमर्जी या तानाशाही न कर सके।
देश में सियासी उठापटक
कुछ महीने पहले देश में आर्थिक संकट शुरू हुआ। अब दिवालिया होने का खतरा है। धीरे-धीरे यह साफ होता चला गया कि राजपक्षे परिवार ने अपने सियासी रसूख का बेहद गलत इस्तेमाल किया। राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे। कैबिनेट मिनिस्टर्स में भी घोर भाई-भतीजावाद। देश दिन-ब-दिन गर्त में जाता रहा और राजपक्षे परिवार ऐश-ओ-आराम की जिंदगी बिता रहा। पानी जब गले तक आ गया तो राष्ट्रपति गोटबाया ने भाई महिंदा को प्रधानमंत्री पद से हटा दिया। प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे की अगुआई में नई यूनिटी सरकार बनी। इसका विस्तार बाकी है।
तंगी का बड़ा कारण
श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में टूरिज्म सेक्टर का बड़ा रोल है, लेकिन कोरोना की मार से यह पहले ही ठप पड़ा है। टूरिज्म देश के लिए फॉरेन करेंसी का तीसरा बड़ा सोर्स है। इसके कमजोर पड़ने से देश का विदेश मुद्रा भंडार लगभग खाली हो चुका है। करीब 5 लाख श्रीलंकाई सीधे पर्यटन पर निर्भर, जबकि 20 लाख अप्रत्यक्ष रूप से इससे जुड़े हैं। श्रीलंका की GDP में टूरिज्म का 10% से ज्यादा योगदान है।