SEOUL/TAIPEI. ताइवान यात्रा खत्म करने के बाद अमेरिका के निचले सदन हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव की स्पीकर नैंसी पेलोसी 3 अगस्त को साउथ कोरिया पहुंच गईं। पेलोसी 2 अगस्त को देर रात ताइवान पहुंची थीं। पेलोसी के पहुंचते ही चीन आगबबूला हो गया और ताइवान पर कई प्रतिबंध लगा दिए। इतना ही नहीं चीनी सेना ने 21 सैन्य विमानों से ताइवान के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में उड़ान भरकर अपनी ताकत दिखाई। इससे पहले पेलोसी बाकायदा अमेरिकी फाइटर प्लेन्स के घेरे में ताइपे पहुंची थीं। यह 25 साल में यूएस हाउस स्पीकर की पहली विजिट थी।
पेलोसी के रवाना होने के थोड़ी ही देर बाद 27 चीनी लड़ाकू विमान ताइवान के हवाई क्षेत्र में पहुंचे। पेलोसी के दौरे के ऐलान के बाद से ही चीन लगातार अमेरिका और ताइवान को धमकाता रहा है।
पाक, नॉर्थ कोरिया चीन के साथ
IMF और FATF के जाल में फंसे पाकिस्तान ने बुधवार को नेंसी की ताइवान दौरे का विरोध किया। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने कहा- हम वन चाइना पॉलिसी का समर्थन करते हैं। पहले भी चीन के साथ खड़े थे और आगे भी खड़े रहेंगे। नॉर्थ कोरिया ने भी नेंसी पेलोसी की ताइवान विजिट की निंदा की। नॉर्थ कोरिया के विदेश मंत्रालय का कहना है कि अमेरिका चीन के आंतरिक मामलों में दखल दे रहा है।
उधर, पेलोसी के ताइवान पहुंचने से नाराज चीन ने कहा- कुछ अमेरिकी नेता चीन-US के रिश्ते बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं। जो भी चीन के खिलाफ जाएगा, उसे इसकी सजा मिलेगी। चीन ने ताइवान के चारों ओर मिलिट्री ड्रील करने की बात कही है। इसे लेकर जापान ने चिंता जाहिर की है।
चीन की धमकियां
अभी के लिए युद्ध की परिस्थिति से बचने का प्रयास जरूर है, लेकिन चीन की तरफ से अमेरिका और ताइवान दोनों को चेतावनी दी जा रही है। लगातार कहा जा रहा है कि ऐसी दखलअंदाजी से गंभीर नतीजे आएंगे। चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा कि अमेरिका का यह रुख आग से खेलने जैसा है। यह बहुत ही खतरनाक है। जो आग से खेलेंगे, वे खुद जलेंगे। इस सब के अलावा चीन मिलिट्री अभ्यास के अपने वीडियो भी वायरल करवा रहा है। जो रणनीति डोकलाम विवाद के समय भारत के साथ रखी गई थी, उसी तर्ज पर ताइवान को भी डराया जा रहा है। लेकिन इस बार क्योंकि ताइवान को अमेरिका का पूरा समर्थन मिल रहा है, ऐसे में चीन की धमकियों के बावजूद भी झुकने के बजाय जवाबी कार्रवाई पर जोर दिया जा रहा है।
अमेरिका की भूमिका पर सवाल
वैसे इस पूरे विवाद में अमेरिका की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। कहने को तो अमेरिका, ताइवान के साथ खड़ा नजर आ रहा है, दावा भी कर रहा है कि उसकी सुरक्षा की जाएगी, लेकिन कुछ महीने पहले ऐसा ही भरोसा यूक्रेन को भी दिया गया था। युद्ध शुरू होने से पहले रूस के खिलाफ यूक्रेन को भड़काया गया था, लेकिन जब असल में मदद की जरूरत पड़ी तो अमेरिका ने पाबंदियां लगाने के अलावा कोई बड़ा ठोस कदम नहीं उठाया। ऐसे में अब जब चीन और ताइवान के बीच में तनातनी बढ़ी है, अमेरिका के आश्वासन जमीन पर समीकरण बदल सकते हैं।