कीव/मास्को. रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया है। रूसी सैनिक टैंक और अन्य भारी उपकरणों के साथ यूक्रेन में घुस गए हैं। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडाइमिर जेलेंस्की के सलाहकार ने रूस के हमले में 40 यूक्रेनी सैनिकों के मारे जाने की पुष्टि की है। उन्होंने बताया कि दर्जनभर से ज्यादा सैनिक घायल भी हुए हैं। यूक्रेन ने देश में बदलते हालात को देखते हुए मार्शल लॉ लागू कर दिया है। रूस की इस सैन्य कार्रवाई के पीछे नाटो भी एक प्रमुख वजह माना जा रहा है। इसके अलावा यूक्रेन के डोनेत्स्क और लुहांस्क शहरों पर रूस का दावा भी युद्ध की बड़ी वजह है। आइए समझते हैं कि दोनों देशों के बीच की तल्खी कैसे युद्ध में तब्दील हो गई।
रूस नहीं चाहता की यूक्रेन नाटो में शामिल हो: बड़े लंबे समय से यूक्रेन के नाटो में शामिल होने की चर्चा चल रही है। हालांकि, यूक्रेन ने नाटो में शामिल होने को लेकर कोई अंतिम फैसला नहीं किया है। अगर यूक्रेन नाटो में शामिल होता है। ऐसी स्थिति में नाटो की सेना यूक्रेन की सीमाओं पर स्थायी तौर पर मौजूद रहेगी। रूस नहीं चाहता है कि नाटो की तैनाती रूसी सीमा पर हो। सोवियत संघ का हिस्सा रहे एस्टोनिया और लातविया देश नाटो के सदस्य हैं। अगर यूक्रेन भी नाटो में शामिल होता है। ऐसे स्थिति में रूस हर तरफ से अपने दुश्मन देशों से घिर सकता है। इसलिए रूस नहीं चाहता है कि नाटो का विस्तार हो। रूस चाहता है कि 1997 के बाद जो भी देश नाटो में शामिल हुए हैं, वहां से सैन्य संगठन अपनी सेनाओं और सैन्य उपकरणों को हटा ले।
क्या है नाटो: इसकी स्थापना साल 1949 में हुई थी। नाटो उत्तर अटालांटिक संधि संगठन उत्तरी अमेरिका और यूरोपीय देशों का एक सैन्य संगठन है। नाटो का उद्देश्य राजनीतिक और सैन्य माध्यमों से अपने सदस्यों की स्वतंत्रता और सुरक्षा की गारंटी देना है। सेकंड वर्ल्ड वॉर के बाद बने इस संगठन का उस समय मुख्य उद्देश्य सोवियत संघ के बढ़ते दायरे को सीमित करना था। नाटो जब बना तो अमेरिका, ब्रिटेन, बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फ्रांस, आइसलैंड, इटली, लक्जमबर्ग, नीदरलैंड्स, नॉर्वे और पुर्तगाल इसके 12 संस्थापक सदस्य थे। वर्तमान में इसके सदस्यों की संख्या 30 है। नॉर्थ मैसेडोनिया साल 2020 में इसमें शामिल होने वाले सबसे नया मेंबर है। अगर यूक्रेन भी नाटो में शामिल होता है तो किसी विवाद की स्थिति में नाटो अपनी सेना भेजकर उसकी मदद करेगा, रूस को इसी बात का डर है।
क्रीमिया पर कर लिया कब्जा: साल 2014 में यूक्रेन और रूस के बीच विवाद के लिए अहम रहा। उसी साल यूक्रेन में सत्ता परिवर्तन हुआ। सोवियत संघ से अलग होने के बाद ये पहला मौका था, जब यूक्रेन में रूस विरोध सरकार बनी। यूक्रेन में विद्रोह को देखते हुए साल 2014 में ही रूस ने यूक्रेन पर हमला बोला और क्रीमिया पर कब्जा कर लिया। इसके बाद हालात और बिगड़ने शुरू हो गए। 18 मार्च 2014 को रूस ने क्रीमिया को औपचारिक तौर पर मिला लिया।
डोनेत्स्क और लुहांस्क की स्थिति: डोनबास यूक्रेन का मुख्य शहर है, यहां कई खनिजों का भंडार है। ये यूक्रेन के बड़े स्टील उत्पादक केंद्रों में से है। यहां की आबादी करीब 20 लाख है। वहीं, लुहांस्क जिसे पहले वोरोशिलोवग्राद के नाम से जाना जाता था, यूक्रेन के लिए कोयले का अहम भंडार है। यह शहर भी डोनबास क्षेत्र का हिस्सा है और इसकी सीमा भी रूस के साथ लगती है। इस शहर का उत्तरी हिस्सा ब्लैक सी से लगता है। डोनेत्स्क और लुहांस्क जिस डोनबास राज्य का हिस्सा हैं, वह रूस और यूक्रेन के बीच तनाव की मुख्य जड़ रहा है। सोवियत संघ के टूटने के बाद डोनबास यूक्रेन का हिस्सा बना। रूस का दावा है कि डोनबास की ज्यादातर आबादी रूसी भाषा बोलती है और लिहाजा उसे यूक्रेन के राष्ट्रवाद से बचाया जाना जरूरी है।