आर्थिक तंगी से जूझ रहे श्रीलंका में अब विरोध के सुर तेज होते जा रहे हैं। इमरजेंसी लगने के बाद से लोग अब हिंसक प्रदर्शन पर उतर आए हैं। आपातकाल और कर्फ्यू का कोई डर लोगों में नजर नहीं आ रहा है। दरअसल विरोध प्रदर्शन की वजह से 54 लोगों की गिरफ्तारी हुई थी, जिन्हें छुड़ाने के लिए 600 वकील कोर्ट जा पहुंचे। आखिरकार कोर्ट को 48 लोगों को छोड़ना पड़ा। वहीं, राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे अब विपक्ष से गुहार करते दिख रहे हैं कि वे सरकार के साथ मिलकर देश को इस संकट से उबारे।
देश में विरोध हुआ तेज
श्रीलंका में इस समय हालात काफी तनावपूर्ण हैं। आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक रूप से देश बिलकुल अस्थिर हो चुका है। लोग पिछले एक हफ्ते से लगातार सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। पहले उन्होंने खामोशी से प्रदर्शन किया, लेकिन अब विरोध जताते हुए सभी राष्ट्रपति से पद छोड़ने की मांग कर रहे हैं। प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा में तैनात स्पेशल टास्क फोर्स के बीच झड़प भी हुई।
सरकार नहीं हटने तक करेंगे विरोध
श्रीलंका में राष्ट्रपति ने अपने अधिकारों का इस्तेमाल करके आपातकाल लगा दिया है। सोशल मीडिया पर प्रतिबंध है और कर्फ्यू भी लगा है। बावजूद इसके लोग सड़कों पर निकल रहे हैं। यानी आपातकाल और कर्फ्यू बेअसर हो गए हैं। इससे ये भी जाहिर होता है कि जब तक ये सरकार नहीं जाएगी तब तक लोग प्रदर्शन करते रहेंगे। हालांकि प्रधानमंत्री को छोड़कर पूरी कैबिनेट ने इस्तीफा जरूर दे दिया है।
विदेशों में भी चल रहा विरोध
दुनियाभर में रहने वाले श्रीलंकाई नागरिक भी इस मुहिम में हिस्सा ले रहे हैं। वो प्रदर्शन कर रहे हैं और श्रीलंका के लोगों के प्रति अपना समर्थन जाहिर दिखा हे हैं। ऐसे में दुनियाभर में भी गोटबाया के इस्तीफे की मांग तेज हो गई है।
तंगी का बड़ा कारण
श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में टूरिज्म सेक्टर का बड़ा रोल है, लेकिन कोरोना की मार से यह पहले ही ठप पड़ा है। टूरिज्म देश के लिए फॉरेन करेंसी का तीसरा बड़ा सोर्स है। इसके कमजोर पड़ने से देश का विदेश मुद्रा भंडार लगभग खाली हो चुका है। करीब 5 लाख श्रीलंकाई सीधे पर्यटन पर निर्भर, जबकि 20 लाख अप्रत्यक्ष रूप से इससे जुड़े हैं। श्रीलंका की GDP में टूरिज्म का 10% से ज्यादा योगदान है।