ISLAMADAD. पाकिस्तान इस समय अपने सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहा है। आर्थिक संकट से घिरे पाकिस्तान में सियासी ड्रामा जमकर चल रहा है। मंगलवार (9 मई) को पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद पाकिस्तान में बवाल मच गया। इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक- ए-इंसाफ (पीटीआई) के समर्थकों ने जमकर उपद्रव मचाया। हालांकि पाकिस्तान की सियासत में यह कोई पहला मौका नहीं है, जब देश के किसी पूर्व प्रधानमंत्री को इस तरह गिरफ्तार किया गया है। इससे पहले भी पाकिस्तान में अलग-अलग समय पर सात पूर्व प्रधानमंत्रियों पर यह गाज गिरती रही है। इनमें से एक प्रधानमंत्री को तो फांसी तक दे दी गई, तो दूसरे की हत्या कर दी गई। जानते हैं किस पूर्व प्रधानमंत्री के साथ पाकिस्तान में क्या सलूक हुआ।
हुसैन शहीद सुहरावर्दी
पाकिस्तान के कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना के करीबियों में शामिल रहे हुसैन शहीद मुल्क के पांचवें प्रधानमंत्री थें। वह सितंबर 1956 से अक्टूबर 1957 तक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे। उन्होंने जनरल अयूब खान की सरकार का समर्थन करने से इनकार कर दिया था। इसके बाद उन्हें इलेक्टिव बॉडीज डिस्क्वालिफिकेशन ऑर्डर (Ebdo) के जरिए राजनीति से प्रतिबंधित कर दिया गया, लेकिन बाद में जुलाई 1960 में कानून के उल्लंघन का आरोप लगाकर गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें गिरफ्तार कर बिना किसी ट्रायल के कराची की सेंट्रल जेल में बंद कर दिया गया था।
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जुल्फिकार अली भुट्टो
जुल्फिकार अली भुट्टो अगस्त 1973 से जुलाई 1977 तक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पद पर रहे। उन्हें 1974 में एक राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी की हत्या की साजिश रचने के आरोप में सिंतबर 1977 में गिरफ्तार किया गया था। बाद में लाहौर हाईकोर्ट के जस्टिस ख्वाजा मोहम्मद अहमद सामदानी ने उन्हें यह कहकर रिहा कर दिया कि उनकी गिरफ्तारी का कोई आधार नहीं है। लेकिन मार्शल लॉ रेगुलेशन 12 के तहत उन्हें तीन दिन बाद दोबारा गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद उन्हें 4 अप्रैल 1979 को फांसी की सजा दे दी गई।
बेनजीर भुट्टो
बेनजीर भुट्टो दो बार पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनी। वह पहली बार दिसंबर 1988 से अगस्त 1990 तक और दोबारा अक्टूबर 1993 से नवंबर 1996 तक देश की वजीर-ए-आजम रहीं। वह अपने भाई के जनाजे में हिस्सा लेने के लिए अगस्त 1985 में पाकिस्तान आई थीं, लेकिन उन्हें 90 दिनों के लिए नजरबंद कर लिया गया था। उन्हें अगले साल 1986 में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर कराची में एक रैली में सरकार की आलोचना करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री को 1999 में भ्रष्टाचार के आरोप में पांच साल की सजा सुनाई गई थी। इसके बाद वह सात साल निर्वासन में रहीं, लेकिन 2007 में वतन वापसी के बाद आत्मघाती हमले में उनकी हत्या कर दी गई थी।
यूसुफ रजा गिलानी
यूसुफ रजा गिलानी 2008 में गठबंधन सरकार के प्रधानमंत्री थे। उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में अरेस्ट वारंट जारी किया गया था। उन पर फर्जी कंपनियों के नाम पर पैसों के लेनदेन का आरोप लगा था। 2012 में उन्हें पद से हटाना पड़ा था।
नवाज शरीफ
नवाज शरीफ को 1999 में कारगिल युद्ध के बाद सत्ता गंवानी पड़ी थी। वह तीन बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने। परवेज मुशर्रफ सरकार के दौरान नवाज शरीफ दस सालों के लिए निर्वासन में जाने को मजबूर हुए। पाकिस्तान लौटने पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उनके निर्वासन की बाकी बची अवधि पूरी करने के लिए उन्हें सऊदी अरब भेज दिया गया।
शाहिद खाकान अब्बासी
शाहीद खाकान अब्बासी जनवरी 2017 से मई 2018 तक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे हैं। उन्हें जुलाई 2019 में एनएबी की टीम ने गिरफ्तार कर लिया था। उनप र 2013 के एलएनजी के इम्पोर्ट कॉन्ट्रैक्ट में भ्रष्टाचार करने का आरोप था। जिस समय ये कॉन्ट्रैक्ट दिए गए थे, तब अब्बासी पेट्रोलियम मंत्री थे। उन्हें फरवरी 2020 में जमानत मिली थी।
इमरान खान
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को नौ मई 2023 को गिरफ्तार कर लिया गया था। उन्हें एनएबी और पाक रेंजर्स ने अरेस्ट किया। उन्हें भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। उनकी गिरफ्तारी के बाद से उनके समर्थकों ने कई शहरों में प्रदर्शन किया। इस दौरान हिंसा की घटनाएं भी सामने आईं।
पाक में लंबे समय तक सेना का शासन रहा
पाकिस्तान में आजादी (1947) के बाद से 76 साल में 35 साल आर्मी का शासन रहा। जानें, कैसी रही पाकिस्तान में सत्ता और आर्मी की ताकत...
सबसे पहले आए अयूब खान
1947 में भारत से अलग होकर पाकिस्तान बन तो गया लेकिन 11 साल बाद ही जनरल मुहम्मद अयूब खान ने सत्ता हथिया ली और दो साल बाद 1960 में खुद को पाकिस्तान का राष्ट्रपति ऐलान कर दिया। किस्तान पर अयूब खान का राज 9 साल तक चला। इस दौरान भारत के हाथों पाकिस्तान की करारी हार (1965) से अयूब खान की सत्ता पर पकड़ कमजोर होने लगी और 1969 में जनरल याह्या खान ने उन्हें हुकूमत से बेदखल करके पाकिस्तान की बागडोर अपने हाथों में ले ली। लेकिन उसी याह्या खान के जमाने में पूर्वी पाकिस्तान का बांग्लादेश के रूप में जन्म हुआ और भारत के हाथों पाकिस्तान को करारी शिकस्त मिली।
भुट्टो लोकतंत्र लाए, लेकिन...
इसके बाद पाकिस्तान में एक बार फिर लोकशाही की बयार चली और जुल्फिकार अली भुट्टो चुनकर प्रधानमंत्री बने, लेकिन जिस जनरल जिया-उल-हक को उन्होंने आर्मी चीफ बनाया, उसी जिया उल हक ने 1978 में भुट्टो का तख्तापलट करके खुद ही पाकिस्तान की कमान संभाल ली। इतना ही नहीं, सालभर बाद ही भुट्टो को फांसी पर लटका दिया गया।
1988 में जियाउल हक की प्लेन क्रैश में मौत होने तक पाकिस्तान में फौजी हुकूमत रही। बाद में चुनाव तो कई बार हुए, लेकिन पाकिस्तान हमेशा लड़खड़ाता ही रहा।
नवाज को हटाकर मुशर्रफ आए
दुनिया ने एक बार फिर पाकिस्तान में फौजी हुकूमत तब देखी, जब 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को बेदखल करके आर्मी चीफ परवेज मुशर्रफ ने सत्ता हथिया ली।
ऐसे बढ़ी सेना की ताकत
आजादी के कुछ सालों बाद ही पाकिस्तान कई समस्याओं से दो-चार हुआ। विभाजन, दंगे और शरणार्थियों की वजह से देश पर बोझ लगातार बढ़ रहा था। वहीं कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना की मौत और लियाकल अली खान की हत्या के बाद देश में राजनीतिक संकट खड़ा हो गया। इतिहास कहता है कि नेतृत्व के अभाव में मुस्लिम लीग की पकड़ भी पहले से कमजोर हो गई। इन सबकी वजह से देश में सेना और नौकरशाही की शक्तियां बढ़ीं, जिनका देश के राजनीतिक इतिहास पर प्रभाव पड़ना शुरू हुआ। इसके साथ ही शुरुआती सालों में ही संविधान भंग कर दिया गया था और सैन्य शासन देश पर थोप दिया गया था। इसका मतलब था- सेना जो कहेगी, वो फैसले लिए जाएंगे। सीधे शब्दों में कहें तो सेना ही सत्ता को चलाने लग गई।
एक ओर राजनीतिक नेतृत्व का अभाव था, दूसरी ओर संस्थाएं कमजोर होती चली गईं। इसका परिणाम ये हुआ कि सेना और ताकतवर होती चली गई। आज तक कोई ऐसा पनप ही नहीं पाया, जो सरकार में रहते हुए सेना के ऊपर उठकर फैसले ले सके। जिसका भी कद राजनैतिक तौर पर बड़ा हुआ, उसे सत्ता से बेदखल कर दिया गया।
सियासी दलों की कमजोरी भारी पड़ी
जिस ऑल इंडिया मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान में सरकार बनाई थी, उसकी उन राज्यों में पकड़ मजबूत नहीं थी जो प्रांत पाकिस्तान का हिस्सा बने थे। शुरुआत के 3 साल के बाद ही पार्टी समय के साथ नहीं चल सकी और कुछ खास लोगों के इर्द-गिर्द कई समूहों में टूट गई। पार्टी और इससे अलग होने वाले व्यक्तियों, दोनों ही आम जनता में अपनी पैठ मजबूत नहीं कर पाए। पाकिस्तान में आजादी के 9 साल बीत जाने के बाद भी पाकिस्तान का संविधान नहीं बना था। बिना संविधान और अस्थिर राजनीति के बीच पाकिस्तान में 4 प्रधानमंत्री, 4 गवर्नर जनरल और एक राष्ट्रपति ने देश पर शासन भी कर लिया था।
1954 में संविधान सभा में बिल लाया गया, जिसके तहत गवर्नर जनरल को प्रधानमंत्री के परामर्श पर कार्य करना था, लेकिन गवर्नर जनरल ने बिल पारित होने से पहले ही मंत्रिमंडल को बर्खास्त कर दिया। सभा भंग कर दी गई और यह कहते हुए आपातकाल लगा दिया कि 'संस्थाएं काम नहीं कर पा रहीं। तब गवर्नर जनरल के असंवैधानिक कार्य को कोर्ट ने दोबारा वैधता दी। अक्टूबर 1954 में प्रधानमंत्री मोहम्मद अली बोगरा ने एक अन्य मंत्रिमंडल का गठन किया। जिसमें अयूब खान रक्षा मंत्री बने, क्योंकि वे उस समय कमांडर इन चीफ थे। संविधान लागू होने से पहले 17 अप्रैल से 12 अगस्त 1955 तक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे मोहम्मद अली बोगरा का इस्तीफा ले लिया गया।
सेना का खेल
23 मार्च 1956 को पाकिस्तान में जो संविधान लागू हुआ था, उसके 58 (2बी) में कुछ ऐसी बातें डाली गईं कि राष्ट्रपति वहां के प्रधानमंत्री को किसी भी वक्त बस यूं ही बुरा लगने पर सत्ता से निकाल बाहर कर सकते थे। तब राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा ने इसी ताकत का इस्तेमाल कर चार प्रधानमंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया था। राष्ट्रपति होने से पहले मिर्जा सेना के जनरल थे। मिर्जा ने इन 4 पीएम को बदला...
1. चौधरी मोहम्मद अली (12 अगस्त 1955 से 12 सितंबर 1956) 2. हुसैन शहीद सोहरावर्दी (12 अक्टूबर 1956 से 17 सितंबर 1957)3. इब्राहिम इस्माइल चुंद्रीगर (17 अक्टूबर 1957 से 16 दिसंबर 1957) 4. फिरोज खान नून (16 दिसंबर 1957 से 7 अक्टूबर1958)
पाकिस्तान में गजब अंधेरगर्दी
1953 से 1958 के बीच पाकिस्तान के 8 प्रधानमंत्री हटाए गए। 1953 में जो संविधान बना था, उसे दो साल बाद ही निरस्त कर दिया गया, क्योंकि गुलाम मोहम्मद के उत्तराधिकारी जनरल इस्कंदर मिर्जा (जो रक्षा मंत्री के सचिव भी हुआ करते थे) को लगा कि नए संविधान के अंतर्गत राष्ट्रपति पद के लिए उनका चुनाव नहीं हो सकता। इसलिए उन्होंने अक्टूबर 1957 में केंद्रीय और प्रांतीय सरकारों को खारिज कर दिया और मार्शल लॉ की घोषणा कर दी।
जनरल अयूब खान को चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ और मुख्य मार्शल लॉ प्रशासक बनाया था, लेकिन उनका यह दांव उन्हीं पर भारी पड़ा क्योंकि राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को अपने अंदर समेटे जनरल अयूब खान ने महज कुछ ही हफ्ते में राष्ट्रपति मेजर जनरल इस्कंदर मिर्जा की सरकार का तख्तापलट कर दिया। यह पहला मौका था जब पाकिस्तान सैन्य शासन के अधीन आया।
जनता को चुनाव के सपने, राज सेना का
पाकिस्तान में जितनी बार भी सैन्य शासन लगा, उतनी बार वहां की जनता को हसीन सपने दिखाए गए। कहा गया कि लोकतंत्र को मजबूत बनाने की कोशिश हो है। जल्द ही आम चुनाव कराने के सपने दिखाए गए, देश को आगे ले जाने की बातें कही गईं, लेकिन हकीकत कुछ और ही रही। पाकिस्तान में 1956 से 1971, 1977 से 1988 और फिर 1999 से 2008 तक सैन्य शासन रहा। जनरल अयूब खान, जनरल जिया उल हक और जनरल परवेज मुशर्रफ ने पाकिस्तान सरकार को गिराकर सैन्य शासन कायम किया।