'जलतरंग' तो सुना होगा, अब पढ़कर भी देखिए

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इस बार साहित्य सूत्र में मिलिए वरिष्ठ कथाकार और उपन्यासकार संतोष चौबे से, जिनसे उनकी रचना “जलतरंग” के बारे में खास बातचीत की है लेखक और पत्रकार डॉ. आरती ने।

सवाल- संगीत को केन्द्र बिंदु बनाकर कोई उपन्यास नहीं लिखा गया है और जलतरंग संगीत पर आधारित उपन्यास है, तो इसके पीछे क्या खास बात है?

जवाब –  ऐसा है कि में बचपन में जलतरंग बजाया करता था और उसके साथ सितार भी मेरा प्रिय बाद्य था और फिर धीरे–धीरे साहित्य में आना हुआ। पहले कविता-कहानी में आना हुआ, और अब चौथा उपन्यास भी आ गया है तो एक बड़ी प्रेरणा संगीत के दौरान मेरी ट्रेनिंग रही। अब बड़े शहरों के शोर ने संगीत की जो मिठास थी, वो अब कहीं न कहीं छीन-सी ली है, ऐसा मुझे लगता है। अब शोरगुल मोहल्लों में भी है, गांव में भी है तो मुझे लगा की इस विषय पर लिखना चाहिए।

सवाल- उपन्यास लिखते वक्त किस तरह का शोर रहा और किस तरह से इसे आगे बढ़ाया गया?

जवाब- जी बिल्कुल लिखते वक्त ये विचार करने योग्य विषय रहा कि इसके अध्यायों का नाम क्या होगा। और हाल के वर्षों में गद्य की गति के बारे में बहुत सारे विचार रखता हूं, तो लिखते वक्त मुझे रागों के बारे में विचार आया था। मैंने अध्यायों का ढांचा राग के नाम के हिसाब से तय किया और फिर गद्य की गति शुरू हो जाती है। जैसे गायक जब शुरू होता तो आलाप लेता है और अंत में झाला होता है, तो ऐसा करते ही मेरे अध्यायों की गति तय हो गई। और मुझे समझ आया की इन अलग-अलग राग में अपनी बात धैर्य और सुकून से रख सकता हूं। इस पुस्तक में संगीत की कथा के साथ-साथ एक प्रेम की कथा भी चल रही है, जो ये प्रेम कथा है, वो इस उपन्यास को गति प्रदान करती है।

सवाल- पिछले उपन्यासों में क्या पता कॉमरेड मोहन, राग केदार, रहा तो ये उम्मीद थी ऐसा ही कुछ लेखन आएगा तीसरी रचना में, तो क्या अब भविष्य में इन लेखनों का कोई एक्सटेन्शन आएगा।

जवाब- जी बिल्कुल मुझे लगता है कि जब भी सामाजिक आंदोलन खड़े होते हैं, तो उनसे प्रभावित होने वाली रचनाएं पक्ष या विपक्ष में रखीं जातीं हैं। तो इस तरह सामाजिक आंदोलनों का रचनात्मक क्षेत्र में बहुत स्थान होता है और मैं सामाजिक उद्यमिता को लेकर प्रयासरत हूं। भविष्य में ऐसे ही विषय को लेकर आया जाएगा और एक संदेह बना रहता है लेखक को। और इस दौरान पर्यावरण को लेकर बहुत आंदोलन हुए, कोविड के बाद मानवीय सभ्यता को लेकर बहुच सारे प्रश्न खड़े हुए। और शोर की बात करें तो बहुत सारी चीजें देखने में आती हैं, शहरों में जो पागलपन है। लोग कई बार सुसाइड तक कर लेते हैं, तो कुल मिलाकर जीवन शैली तक पर सवाल खड़े हुए हैं। और जीवन में जो आंतरिक मिठास है वो कहीं न कहीं खो गई है। तो जो ये उपन्यास है, वो इसी ताने बाने को बुनकर लिखा गया है।

सवाल- कला और विचार में कोई अंतरविरोध नहीं है लेकिन बीच में जो पूंजीवाद है, दरअसल उसमें अंतरविरोध है, तो उसके बारे में कुछ प्रकाश डाला जा सके तो?

जवाब- आज साहित्यकारों की लड़ाई दरअसल ये है कि वो साहित्य की वापिसी और उसके महत्व को स्थापित कर पाएं। और प्रेमचंद ने भी कहा है कि साहित्य राजनीति की मिसाल है, तो उसके सामने हमें खड़ा होना है, उसके पीछे नहीं छुपना है।