रजनीश ने 52 साल पहले वो शहर छोड़ दिया, जहां वो पढ़े, बढ़े; एक दिग्गज व्यंग्यकार ने ओशो को दुनिया को सबसे बड़ा फ्रॉड बताया था

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Harmeet
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रजनीश मोहन जैन यानी आचार्य रजनीश ने आज से ठीक 52 साल पहले 30 जून 1970 को जबलपुर को अलविदा कह दिया था। जब वे जबलपुर छोड़ कर बंबई जा रहे थे, तब उन्होंने जबलपुर की तारीफ करते हुए कहा था कि वे यहीं पनपे हैं, यहां पढ़े हैं, यहीं बढ़े हैं। उन्होंने कहा था कि पेड़ जितना ऊंचा चले जाएं, आसमान छूने लगे, लेकिन जड़ें तो उसकी जमीन में रहती हैं। जबलपुर में मेरी जड़ें हैं, इसलिए इस शहर में आता रहूंगा। इसके बाद वे जो जबलपुर से गए तो फिर कभी यहां नहीं लौटै। कृष्ण की तरह। कृष्ण भी जब भी जहां से गए, वहां लौटकर नहीं आए। रजनीश का भाषण 1970 में उनके जबलपुर छोड़ने से दो दिन पहले यानी 28 जून का हुआ था। रजनीश के जबलपुर को अलविदा कहने पर अखबार नवभारत ने हेड‍िंग लगाई थी- ‘’और सुकरात चला गया।‘’

28 जून 1970 को जबलपुर के शहीद स्मारक में रजनीश को विदाई देने के लिए एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था। इस कार्यक्रम में जबलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति डा. राजबली पांडे उपस्थि‍त थे। डा. राजबली पांडे ने अपने संक्ष‍िप्त भाषण में कहा-‘’पूरी सभ्यता आज एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है, जिसे आप यानी की रजनीश एक नया स्वरूप देना चाहते हैं। यद्यपि आप जबलपुर से जा रहे हैं, पर आप ने जो प्रेरणा, जो प्रेम हम सभी को दिया है, वह हमें सदा स्मरण रहेगा। आप का जन्म पूरी मानवता के लिए हुआ है, इसलिए आप का व्यक्त‍ित्व किसी भौगोलिक सीमा के बंधन में भी नहीं रह सकता। आप कृपया विदा होते समय हम सभी को वह संदेश दें, जिससे प्रेरणा ले कर हम नई राह तलाश सकें।‘’ 

रजनीश ने जब जबलपुर को अलविदा कहा तब वे एक सामान्य व्यक्त‍ि ही थे। गढ़ा रोड पर कमला नेहरू नगर में डॉ. हर्षें के नजदीक लाल बंगले में किराए से रहते थे। लोगों को वे खादी भंडार में खादी खरीदते मिल जाते तो महावीर वाचनालय में प्रवचन देते हुए भी। जबलपुर के आसपास वे आयोजकों की कार से प्रवचन या व्याख्यान देने जाते थे। जबलपुर में तरण तारण जयंती में भी वे शामिल होते थे। इस आयोजन में भी वे व्याख्यान देते थे। 1970 के पहले ही बंबई के फिल्म इंडस्ट्री के कुछ लोग रजनीश के सम्पर्क में आने लगे थे। 

जबलपुर में महेन्द्र कपूर नाइट का आयोजन रजनीश के बंबई संपर्कों के कारण संभव हुआ था। राइट टाउन स्टेडियम के एक कोने पवेलियन की तरफ महेन्द्र कपूर नाइट को देखने गए कुछ लोग बताते हैं कि शुरुआत में तो महेन्द्र कपूर की गायन प्रस्तुति का सिलसिला ठीक चलता रहा, लेकिन गाना ‘’ एक तारा बोले तुन तुन क्या कहे ये तुमसे सुन सुन’’ जैसे ही शुरू हुआ, कार्यक्रम स्थल पर बमचक मच गई। कुर्स‍ियां फ‍िंकने लगीं और भगदड़ मच गई। रजनीश को सामने आना पड़ा। उन्होंने लोगों से शांत होने की अपील की। रजनीश का व्याख्यान या प्रवचन सुनने वाले ज़रूर मंत्रमुग्ध हो जाते थे, लेकिन यहां कोई असर नहीं हुआ। 

अनुयायीवाद पर किया कड़ा प्रहार-रजनीश के व्याख्यान शहीद स्मारक में हफ्ते में एक या दो बार होने लगे थे। रजनीश के भाई अरविंद, हर मंगलवार को जीवन जाग्रति केन्द्र की ओर से रजनीश के व्याख्यान का आयोजन श्रीनाथ तलैया स्थि‍त आर्य समाज मंदिर में करते थे। रजनीश के अंग्रेजी में दिए गए व्याख्यानों का आयोजन स‍िविल लाइंस स्थि‍त लियोनार्ड थ‍ियोलॉजिकल कॉलेज में होता था। जबलपुर में ‘प्रेम और विवाह’, ‘गांधी के ऊपर पुनर्विचार’ और ‘कार्ल मार्क्स व बुद्ध’ विषय पर केन्द्र‍ित उनके व्याख्यान काफ़ी चर्चित व विवादास्पद रहे। रजनीश निडर व बेखौफ व्यक्त‍ि थे। उन्होंने इन व्याख्यानों में अनुयायियों पर कड़ा प्रहार किया था। 

रजनीश ने कहा था कि जिस प्रकार अनुयायी महापुरूषों को ऊपर उठाते हैं और वहीं अनुयायी उन्हें पतन की गर्त में गिरा देते हैं। रजनीश अनुयायीवाद के खि‍लाफ थे। हालांकि ये बात और है कि उनक जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज और एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग कॉलेज के विद्यार्थी उनके मुरीद थे। उनके व्याख्यान के पहले केएल सहगल की आवाज वाले एक व्यक्त‍ि भजन व गीत गाते थे। व्याख्यान की शुरूआत रजनीश ‘’मेरे प्रिय आत्मन’’ से करते और ‘’आप सब के हृदय में बैठे प्रभु को मेरा प्रणाम’’ से खत्म करते थे। व्याख्यान के बाद रजनीश शहीद स्मारक के बाहर खड़े हो जाते और लोगों से काफ़ी देर तक बात करते रहते थे। 

रजनीश ‘श’ नहीं बोल पाते थे। शेक्सपियर को सेक्सपियर बोलते थे। रजनीश के भाषणों में कई बार ‘इंसान खों गया है’, ‘हमारे भीतर की लालटेन बुझ गई है’ ‘इसके सौ कारण हैं, पर मुख्य कारण यह है’ जैसे वाक्य प्राय: आते थे। कुछ अंग्रेजी के शब्द भी उनके भाषण में आते थे। तब वे ‘श’ नहीं बोल पाते थे। ‘ज़’ का उच्चारण उनके लिए असंभव था। बोलते समय भाषण में उनकी आंखें बंद हो जाती थीं और लगता वे शून्य को संबोध‍ित कर रहे हों। बोलते वक्त वे लम्बे लम्बे ठहराव (पॉज़) लेते थे। 

रजनीश ने प्लेटो, अरस्तू, कन्फ्यूश‍ियस, ग्रीन, शंकर, अरविंदो, रसेल, बुद्ध, मार्क्स को बारीकी से पढ़ा था। उनके व्याख्यान में छोटे-छोटे वाक्य, उदाहरण, लतीफे, रोचक प्रसंग, आरोह‍ अवरोह, लयात्मकता, क्रांतिकारिता का आभास दिलाने वाली भाषा का जीवन दर्शन रहता था। इससे वे गजब आत्मविश्वास से लबरेज दिखते थे। उनकी व‍िश‍िष्टता स्वीकृत हो रही थी, वे असामान्य दिखने लगे थे और दिखाने भी लगे थे। जो असामान्य है, साधारण से हटकर है, वहीं उन्हें प्रिय था। व्याख्यान के दौरान रजनीश कहते थे कि लोग उनकी बात को इसलिए समझ नहीं पाएंगे क्योंकि वे 25वीं शताब्दी के हैं। वे पैदाइशी भगवान नहीं थे, लेकिन वे धीरे-धीरे आचार्य से भगवान की ओर बढ़ रहे थे। उन्होंने आस्था को मज़े में बदल दिया था।

जबलपुर के दो विचारक जो विरोधाभासी थे और अपने विचारों में चरम पर हैं, वे एक ही मोहल्ले में रहते थे। रजनीश नेपियर टाउन में शास्त्री ब्रिज मार्ग के एक तरफ और हरिशंकर परसाई दूसरी ओर रहते थे। ये दोनों समकालीन विचारक आपस में मिलते जुलते रहते थे। रजनीश ने एक बार परसाई का हवाला देते हुए कहा था कि हमारे शहर के मशहूर व्यंग्यकार हैं, उन्होंने मुझे यानी रजनीश को फ्रॉड की सूची में नंबर एक पर रखा है। यदि वे मुझे दूसरे या तीसरे नंबर पर रखते तो मुझे बहुत दुख होता। परसाई ने उस दौरान अपने एक व्यंग्य में लिखा था कि दुनिया में तीन फ्रॉड हैं- रजनीश, महेश योगी और खुद मैं यानी हरिशंकर परसाई। रजनीश जबलपुर में 1959 से 61 तक भालदारपुरा में, 6 महीने देवताल-गुप्तेश्वर में और 1961 से 68 तक नेपियर टाउन में देवकीनंदन जी के घर में रहे। उसके बाद गढ़ा रोड में कमला नेहरू नगर में डॉ. हर्षे के बंगले के बगल में लाल बंगले में रहने आ गए थे। 

रजनीश तीन बाबाओं से हुए प्रभावित-रजनीश जबलपुर के मग्गा बाबा, पागल बाबा और मस्ता बाबा से प्रभावित रहे। मग्गा बाबा तुलाराम चौक पर नीम के पेड़ के नीचे पड़े रहते थे। मग्गा बाबा का रूप रंग एकदम काला था। मग्गा बाबा को जबलपुर के रिक्शे वाले फ्री में यहां वहां घुमाते रहते थे।    

जीवन जाग्रति केंद्र में रजनीश को भीखम चंद जैन, अजित कुमार, डॉ. बिजलानी, अरुण जक्सी, भाई मेडीवाला, अरविंद जैन, दत्ता एडवोकेट सक्र‍िय सहयोग देते थे। ये लोग दो-दो रुपए चंदा करके शहीद स्मारक या अन्य किसी जगह रजनीश के भाषण के लिए बुक किया करते थे। रजनीश ने जबलपुर में जीवन जाग्रति केन्द्र की ओर से एक पत्रिका ‘युक्रांत’ का प्रकाशन किया था। वैसे रजनीश जबलपुर में जयहिन्द और नवभारत में पत्रकारिता कर चुके थे। नवभारत में तो वे सब एडीटर के रूप में कार्य कर चुके थे। युक्रांत का संपादन रजनीश के फुफेरे भाई अरविंद कुमार किया करते थे।